जब मैं 8वीं कक्षा में पढ़ती थी तभी मैंने पूज्य बापू जी से सारस्वत्य मंत्र की दीक्षा ली थी। नियमित मंत्रजप, ध्यान के साथ-साथ पूज्य बापू जी के द्वारा आयोजित विद्यार्थी शिविरों में भी मैं भाग लेती रही। सत्संग में पूज्य बापू जी के श्रीमुख से सुनाः
‘उठो जागो और तब तक मत रूको जब तक उद्देश्य प्राप्त नहीं हो जाता। अनुशासन, तत्परता व बुद्धिमत्तापूर्ण प्रयास और आत्मविश्वास ही सफलता की कुँजी है।‘
गुरुदेव के इन प्रभावशाली वचनों ने मेरे मन को उत्साह और उमंग से भर दिया। मुझे लगा कि मैं जो चाहूँ बन सकती हूँ, जीवन के हर क्षेत्र में अवश्य सफल हो सकती हूँ क्योंकि पूज्य बापूजी से प्राप्त सारस्वत्य मंत्र एवं उनकी कृपा हमारे साथ है। मैंने डॉक्टर बनने का उद्देश्य बनाया और बापू जी की कृपा से सहज में ही डॉक्टर (एम.बी.बी.एस.) बन भी गयी। अब भी मैं समय निकाल कर बापू जी का सत्संग सुनती हूँ। सत्संग पर आधारित सत्साहित्य का अध्ययन करने से मुझे पीड़ित मानवता की सेवा करने की प्रेरणा हुई। मुझे लगा कि डॉक्टर बनने से मैं अधिक लोगों की सेवा नहीं कर पाँऊगी। फिर मैंने आई.ए.एस. की परीक्षा दी। संयम, तत्परता, धैर्य एवं सफलता की कुंजी देने वाले पूज्य बापू जी के आशीर्वाद से मेरा चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई.ए.एस.) में हो गया है। अब तो पूज्य बापूजी के श्रीचरणों में मेरी यही विनती है कि आपकी कृपा से मैं समाज-सेवा का कार्य खूब अच्छी तरह से कर सकूँ।
डॉ. प्रीति मीणा (आई.ए.एस.), बारां (राजस्थान)
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 29 अंक 213
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