धर्म के दस लक्षणः धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रियनिग्रह, धी, विद्या, सत्य और अक्रोध ।
दस दिशाएँ- पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैर्ऋत्य, वायव्य, ईशान, अधः, ऊर्ध्व ।
दस इन्द्रियाँ- पाँच कर्मेन्द्रियाँ (हाथ, पैर, जिह्वा, गुदा, जननेन्द्रिय), पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ (आँख, नाक, कान, जिह्वा, त्वचा) ।
दस महाविद्याः काली, तारा, छिन्न मस्ता, धूमावती, बगलामुखी, कमला, त्रिपुरभैरवी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरसुंदरी और मातंगी ।
दश दिक्पालः दसों दिशाओं की रक्षा करने वाले दस देवता – पूर्व दिशा के इन्द्र, अग्नि कोण के अग्नि, दक्षिण दिशा के यम, नैर्ऋत्य कोण के नैर्ऋत्य, पश्चिम दिशा के वरुण, वायव्य कोण के मरुत, उत्तर दिशा के कुबेर, ईशान कोण के ईश, ऊर्ध्व दिशा के ब्रह्मा और अधः दिशा के रक्षक अनंत हैं ।
दशांग धूपः दस सुगन्धियों के मेल से बनने वाला एक धूप जो पूजा में जलाया जाता है । ये दस द्रव्य हैं – शिलारस, गुग्गुल, चंदन, जटामांसी, लोबान, राल, खस, नख, भीमसैनी कपूर और कस्तूरी ।
दश मूलः सरिवन, पिठवन, छोटी कटाई, बड़ी कटाई, गोखरू, बेल, पाठा, गम्भारी, गनियारी (शमी के समान एक काँटेदार वृक्ष) और सोनपाठा इन दस वृक्षों की जड़ें ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2011, पृष्ठ संख्या 21 अंक 228
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