किसे छुपायें, किसे बतायें ?

किसे छुपायें, किसे बतायें ?


(पूज्य बापू जी की दिव्य अमृतवाणी)

नौ बातें अपने जीवन में गोपनीय रखनी चाहिएः

एक तो अपनी आयु गोपनीय रखनी चाहिए। जिस किसी को अपनी आयु नहीं बतानी चाहिए। महिलाओं को तो अपनी आयु बतानी ही नहीं चाहिए, पुरुषों को भी नहीं बतानी चाहिए। अपना धन गोपनीय रखना चाहिए। घर का रहस्य और अपना मंत्र गोपनीय रखना चाहिए। पति पत्नी का ससांरी व्यवहार, क्या औषधि खाते हैं, किया हुआ साधन-भजन, तप तथा दान करो तो वह भी गोपनीय रखना चाहिए  अपना अपमान भी नहीं जाहिर करना चाहिए। कहीं अपमान हो गया तो बेवकूफी नहीं करना कि ʹमेरा फलाने ने ऐसा अपमान किया, फलाना मेरा दुश्मन है।ʹ यह बात नहीं बतानी चाहिए, नहीं तो आपके ही लोग कभी आपके दुश्मन बन के उसका सहयोग लेंगे और आपको दबोच देंगे। बराक ओबामा, राष्ट्रपति (अमेरिका) अपने भाषण में बोलते हैं कि ʹमेरे विरोधी मुझे कुत्ता समझते हैं।ʹ उन्हें यह शास्त्रज्ञान होता तो वे ऐसा नहीं बोलते।

नौ बातों को तो बिल्कुल खुल्लम-खुल्ला कर दो, उनकी पोल खोल दिया करो। ऋण लेने की बात है तो आप खुली कर दो कि ʹमुझे यहाँ से, इस बैंक से ऋण लेना है, इससे कर्जा लेना है।ʹ ऋण चुकाने की बात सबको बता दो कि ʹमैंने इतना चुकाया है, इतना चुकाना बाकी है। इनका कर्जा मुझे देना है।ʹ इससे आपकी विश्वसनीयता बढ़ जायेगी। शास्त्र कहते हैं, विक्रय की वस्तु को भी खूब जाहिर कर दो कि ʹमुझे यह बेचना है।ʹ क्या पता और भी ज्यादा में खरीदने वाला कोई ग्राहक मिल जाय ! कन्यादान छुप के नहीं करना चाहिए, जाहिर में करना चाहिए। क्या पता दामाद कैसा हो ! दसों लोगों को कहो कि ʹफलाने के साथ मैं अपनी कन्या का संबंध करना चाहता हूँ।ʹ उसके पड़ोसियों को भी कहो। क्या पता कन्या का कहीं अमंगल छुपा हो तो वह प्रकट हो जाये।

आप अपना अध्ययन खुला रखिये कि ʹभाई ! हम तो इतना पढ़े हैं।ʹ इससे लोगों में आपकी विश्वसनीयता और सरलता जाहिर होगी। मैं तो तीसरी कक्षा तक ही पढ़ा हूँ, सच बोलता हूँ। लेकिन डी.लिट्. और पी.एच.डी. पढ़े हुए कई मेरे शिष्य हैं और करोड़ों में श्रोता हैं।

उत्तम वंश और खरीद को छुपाइये मत। एकांत में किया हुआ पाप छुपाइये मत। निष्कलंकता (अनिंदनीय कर्मों) को भी छुपाइये मत।

नौ व्यक्तियों का आप विरोध मत करिये। विरोध हो गया तो तुरंत मीठी भाषाँ से सँवार लीजिये। आपको जो रसोई बना के खिलाते हैं उनका विरोध लम्बे समय मत करिये। न जाने कुभाव से वे कुछ खिला दें तो ? तुरंत अपने रसोइये से समझौता कर लेना चाहिए। आप शस्त्रहीन हैं और सामने शस्त्रधारी है तो उससे अकेले में विरोध मत करिये। बोल दोः ʹहाँ भैया ! ठीक है बाबा !! ठीक है, तुम ठीक कहते हो।ʹ नहीं तो लट्ठधारी है, क्या पता ʹतू-तू, मैं-मैंʹ में दिखा दे कुछ ! उस समय सोच लो-

ʹज्ञानी के हम गुरु हैं, मूरख के हैं दास।

उसने दिखाया डंडा तो हमने जोड़े हाथ।।

फिर उसे कोई बड़ा मिलेगा तो अपने-आप ठीक हो जायेगा। हम क्यों सिरदर्द मोल लें !ʹ

जो आपके जीवन के रहस्य, मर्म जानते हों, उनसे भी आपको नहीं भिड़ना चाहिए। अपने स्वामी, बड़े अफसर, बड़े अधिकारी से भी नहीं भिड़ना चाहिए। भिड़ोगे तो क्या पता तबादला कर दे, कुछ आरोप लगा दे। मूर्ख मनुष्य से भी नहीं भिड़ना चाहिए। धनवान, सत्तावान और वैद्य (डाक्टरः से भी नहीं भिड़ना चाहिए। कवि और भाट से भी न भिड़ें, नहीं तो ये आपका कुप्रचार करेंगे। लेकिन आप संत हैं तो ? आपका तो स्वभाव नहीं है भिड़ने का, फिर भी कोई कुछ करता है तो सम रहकर सब परिस्थितियों के बापस्वरूप ईश्वर में रहना चाहिए। यह दसवीं बात मैंने मिलायी है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2012, अंक 235, पृष्ठ संख्या 11,13

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