वर्षा ऋतु विशेष

वर्षा ऋतु विशेष


(वर्षा ऋतुः 20 जून से 21 अगस्त)

ग्रीष्म ऋतु में दुर्बल हुआ शरीर वर्षा ऋतु में धीरे-धीरे बल प्राप्त करने लगता है। आर्द्र वातावरण जठराग्नि को मंद करता है। वर्षा ऋतु में वात-पित्तजनित व अजीर्णजन्य रोगों का प्रादुर्भाव होता है, अतः सुपाच्य, जठराग्नि प्रदीप्त करने वाला वात-पित्तनाशक आहार लेना चाहिए।

हितकर आहारः इस ऋतु में जठराग्नि प्रदीप्त करने वाले अदरक, लहसुन, नींबू, पुदीना, हरा धनिया, सोंठ, अजवायन, मेथी, जीरा, हींग, काली मिर्च, पीपरामूल का प्रयोग करें। जौ, खीरा, लौकी, गिल्की, पेठा, तोरई, जामुन, पपीता, सूरन, गाय का घी, तिल का तेल तथा द्राक्ष सेवनीय हैं। ताजी छाछ में काली मिर्च, सेंधा नमक, जीरा, धनिया, पुदीना डालकर दोपहर भोजन के बाद ले सकते हैं। उपवास और लघु भोजन हितकारी है। रात को देर से भोजन न करें।

अहितकर आहारः देर से पचने वाले, भारी तले, तीखे पदार्थ न लें। जलेबी, बिस्कुट, डबलरोटी आदि मैदे की चीजें, बेकरी की चीजें, उड़द, अंकुरित अऩाज, ठंडे पेय पदार्थ व आइसक्रीम के सेवन से बचें। वर्षा ऋतु में दही पूर्णतः निषिद्ध है। श्रावण मास में दूध व सब्जियाँ वर्जित हैं।

हितकर विहारः उबटन से स्नान, तेल की मालिश, हलका व्यायाम, स्वच्छ व हलके वस्त्र पहनना हितकारी है। वातारवरण में नमी और आर्द्ररता के कारण उत्पन्न कीटाणुओं से सुरक्षा हेतु आश्रमनिर्मित धूप वह हवन से वातावरण को शुद्ध तथा गौसेवा फिनायल या गोमूत्र से घर को स्वच्छ रखें। घर के आसपास पानी इकट्ठा न होने दें। मच्छरों से सुरक्षा के लिए घर में गेंदे के पौधों के गमले अथवा गेंदे के फूल रखें और नीम के पत्ते, गोबर के कंडे व गूगल आदि का धुआँ करें।

अपथ्य विहारः दिन में शयन, रात्रि जागरण, खुले में शयन, अति व्यायाम और परिश्रम, नदी में नहाना, बारिश में भीगना वर्जित है। कपड़े गीले हो गये हों तो तुरंत बदल दें।

कुछ खास प्रयोगः

500 ग्राम हरड़ चूर्ण व 50 ग्राम सेंधा नमक का मिश्रण बना लें। (उसमें 125 ग्राम सोंठ भी मिला सकते हैं।) 2-4 ग्राम यह मिश्रण दिन में 1-2 बार लेने से ʹरसायनʹ के लाभ प्राप्त होते हैं।

नागरमोथा, बड़ी हरड़ और सोंठ तीनों को समान मात्रा में लेकर बारीक पीस के चूर्ण बना लें। इस चूर्ण से दुगनी मात्रा में गुड़ मिलाकर बेर समान गोलियाँ बना लें। दिन में 4-5 बार 1-1 गोली चूसने से कफयुक्त खाँसी में राहत मिलती है।

1 से 3 लौंग भूनकर तुलसी पत्तों के साथ चबाकर खाने से सभी प्रकार की खाँसी में लाभ होता है।

वर्षा ऋतु में दमे के रोगियों की साँस फूले तो 10-20 ग्राम तिल के तेल को गर्म करके पीने से राहत मिलती है। ऊपर से गर्म पानी पियें।

भोजन के बाद पूर्व नींबू और अदरक के रस में सेंधा नमक डालकर पीने से मंदाग्नि व अजीर्ण में लाभ होता है।

कब्ज की तकलीफ होने पर रात में त्रिफला चूर्ण लें। रात का रखा हुआ आधा से एक लीटर पानी सुबह बासी मुँह पीने से कब्ज का नाश होता है।

मुनक्का एवं किशमिश

अंगूर को जब विशेषरूप से सुखाया जाता है तब उसे मुनक्का कहते हैं। अंगूर के लगभग सभी गुण मुनक्के में होते हैं। यह दो प्रकार का होता है – लाल और काला। मुनक्का पचने में भारी, मधुर, शीत, वीर्यवर्धक, तृप्तिकारक, वायु को गुदाद्वार से सरलता से निकलने वाला, कफ-पित्तहारी, हृदय के लिए हितकारक, श्रमनाशक, रक्तवर्धक, रक्तशोधक, मलशोधक तथा रक्तपित्त व रक्त-प्रदर में भी लाभदायी है।

किशमिश भी सूखे हुए अंगूर का दूसरा रूप है। इसमें भी अंगूर के सारे गुण विद्यमान होते हैं। दूध के लगभग सभी तत्त्व किशमिश में पाये जाते हैं। दूध के अभाव में इसका उपयोग किया जा सकता है। किशमिश दूध की अपेक्षा शीघ्र पचती है। मुनक्के के नित्य सेवन से थोड़े ही दिनों में रस, रक्त, शुक्र आदि धातुओं तथा ओज की वृद्धि होती है। वृद्धावस्था में किशमिश या मुनक्के का प्रयोग न केवल स्वास्थ्य की रक्षा करता है बल्कि आयु को बढ़ाने में भी सहायक होता है। किशमिश और मुनक्के की शर्करा शरीर में अतिशीघ्र पचकर आत्मसात् हो जाती है, जिससे शीघ्र ही शक्ति व स्फूर्ति प्राप्त होती है।

100 ग्राम किशमिश में 77 मि.ग्रा. लौह तत्त्व, 87 मि.ग्रा. कैल्शियम, 2 ग्रा. खनिज तत्त्व तथा 308 किलो कैलोरी ऊर्जा पायी जाती है।

किशमिश एवं मुनक्के के कुछ

स्वास्थ्य-प्रदायक प्रयोग

दौर्बल्यः अधिक परिश्रम, कुपोषण, वृद्धावस्था या किसी बड़ी बीमारी के बाद शरीर जब क्षीण व दुर्बल हो जाता है, तब शीघ्र बल प्राप्त करने के लिए किशमिश बहुत ही लाभदायी है। 10-12 ग्राम किशमिश 200 मि.ली. पानी में भिगोकर रखें व दो घंटे बाद खा लें।

रक्ताल्पताः मुनक्के में लौह तथा सभी जीवनसत्त्व (विटामिन्स) प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। 10-15 ग्राम काला मुनक्का एक कटोरी पानी में भिगोकर रखें। इसमें थोड़ा-सा नींबू का रस मिलायें। 4-5 घंटे बाद मुनक्का चबा-चबाकर खायें, इससे रक्ताल्पता मिटती है।

अम्लपित्तः किशमिश मधुर, स्निग्ध, शीतल व पित्तशामक है। इसे पानी में भिगोकर बनाया गया शरबत सुबह-शाम लेने से पित्तशमन, वायु-अनुलोमन व मल-निस्सारण होता है, जिससे अम्लपित्त में शीघ्र ही राहत मिलती है। रक्तपित्त, दाह व जीर्णज्वर में भी यह प्रयोग लाभदायी है। इसके सेवन के दिनों में आहार में पाचनशक्ति के अनुसार गाय के दूध तथा घी का उपयोग करें।

कब्जः किशमिश में उपस्थित मैलिक एसिड मल-निस्सारण का कार्य करता है। 25 से 30 ग्राम किशमिश व 1 अंजीर रात को 250 मि.ली. पानी में भिगोकर रखें। सुबह खूब मसलकर छान लें। फिर उसमें आधा चम्मच नींबू का रस व 2 चम्मच शहद मिलाकर धीरे-धीरे पियें। कुछ ही दिनों में कब्ज दूर हो जायगी।

शराब के नशे से छुटकाराः शराब पीने की इच्छा हो तब शराब की जगह 10 से 12 ग्राम किशमिश चबा-चबाकर खाते रहें या किशमिश का शरबत पियें। शराब पीने से ज्ञानतंतु सुस्त हो जाते हैं परंतु किशमिश के सेवन से शीघ्र ही पोषण मिलने से मनुष्य उत्साह, शक्ति और प्रसन्नता का अनुभव करने लगता है। यह प्रयोग प्रयत्नपूर्वक करते रहने से कुछ ही दिनों में शराब छूट जायेगी।

आवश्यक निर्देशः किशमिश, मुनक्का व अंजीर को अच्छी तरह से धोने के बाद ही उपयोग करें, जिससे धूल-मिट्टी, कीड़े, जंतुनाशक दवाई का प्रभाव आदि निकल जायें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2012, पृष्ठ संख्या 31, अंक 235

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