(विश्वात्मा पूज्य संत श्री आशारामजी बापू केवल भारत ही नहीं अपितु समस्त विश्व के कल्याण में रत रहते हैं। एक-एक दिन में सैंकड़ों-हजारों किलोमीटर देशाटन करके लोक-कल्याणार्थ वर्षभर में 200 से अधिक विभिन्न स्थानों में सत्संग-कार्यक्रम सफलतापूर्वक करना एक विलक्षण आध्यात्मिक विश्व-कीर्तिमान ही है। व्यक्ति एक राज्य से दूसरे राज्य में लम्बा सफर तय करके आता है तो थका-माँदा दिखने लगता है अथवा हवामान बदलने के कारण कभी बीमार भी हो जाता है। परंतु पूज्य बापू जी 72 वर्ष की आयु में भी ब्रह्मज्ञान के सत्संगवश एक ही दिन में 3-3 राज्यों से 4 से 5 स्थानों तक की यात्रा कर लेते हैं फिर भी स्वस्थ, तंदुरुस्त रहते हैं और हँसते मुस्कराते हुए, लोगों के कष्ट, पीड़ा, दुःख, बीमारी दूर करते हैं। ऐसे ओलिया बापूजी की स्वस्थता का राज क्या है ? इसे जानने की सभी को उत्सुकता रहती है। पूज्य बापू जी का जीवन तो एक खुली किताब है। आपश्री को जिससे भी लाभ होता है, उसे सबके सामने सत्संग में बता ही देते हैं। पूज्य बापू जी अपने स्वास्थ्य की कुंजियाँ खुद ही बता रहे हैं-)
“मेरे स्वस्थ रहने की कुंजी है। मैं आपको वह कुंजी बता देता हूँ। प्रतिदिन हम लगभग एक किलो भोजन करते हैं, दो किलो पानी पीते हैं और 21600 श्वास लेते हैं। 1600 लीटर हवा लेते और छोड़ते हैं, उसमें से हम 10 किलो खुराक की शक्ति हासिल करते हैं। एक किलो भोजन से जो मिलता है उससे 10 गुना ज्यादा हम श्वासोच्छवास से लेते हैं। ये बातें मैं शास्त्रों से सुनीं।
मैं क्या करता हूँ, गाय के गोबर और चंदन से बनी गौ-चंदन धूपबत्ती जलाता हूँ, फिर उसमें एरंड या नारियल का तेल अथवा देशी गाय के शुद्ध घी की बूँदें डालता रहता हूँ और कमरा बंद करके अपना नियम भी करता रहता हूँ। पहने हुए कपड़े उतारकर बस एक कच्छा पहनता हूँ और बाकी सब कपड़े हटा देता हूँ। मैं आसन-प्राणायाम करता हूँ तो रोमकूपों और श्वास के द्वारा धूपबत्ती से उत्पन्न शक्तिशाली प्राणवायु लेता हूँ। श्वास रोककर 11 दंड-बैठक करता हूँ, इससे मेरे को हृदयाघात (हार्ट-अटैक) नहीं होगा, उच्च या निम्न रक्तचाप नहीं होगा। श्वास रोककर 11 दंड-बैठक करने से पूरे शरीर की नस-नाड़ियों की बिल्कुल घुटाई-सफाई हो जाती है। फिर वज्रासन में बैठकर श्वास बाहर रोक देता हूँ और करीब 20 बार पेट को अंदर नाभि की ओर खींचता हूँ (अग्निसार क्रिया)। इसके बाद पाँच मिनट सर्वांगासन करता हूँ। फिर 5-6 मिनट पादपश्चिमोत्तानासन करता हूँ। उसके बाद सूर्य की किरणें मिलें इस प्रकार धूप में घूमता हूँ।
कभी-कभी अगर दिन को देर से खाया है या पेट थोड़ा भारी है अथवा यात्रा बहुत की है और थकान है तो रात को कुछ खाये बिना ही जल्दी सो जाता हूँ तो जो खाने-पीने की गड़बड़ी है अथवा थकान है, वह सब उपवास से ठीक हो जाती है। उपवास रखने से जीवनीशक्ति रोग और थकान को ठीक कर देती है।
लंघनं परं औषधम्।
मैं यह इसलिए बता रहा हूँ कि तुम भी उपवास का फायदा ले लो। फिर कभी शरीर ढीला-ढाला होता है तो सुबह ग्वारपाठे का रस पी लेता हूँ और कभी देखता हूँ ग्वारपाठे के रस की अपेक्षा 1 गिलास गुनगुने पानी में 25 तुलसी के पत्तों का रस और 1 नींबू ठीक रहेगा तो वह पी लेता हूँ। ऐसा करके पेट को और मस्तक को टनाटन रखता हूँ तो बाकी सब टनाटन हो जाता है। ग्वारपाठे से 220 से भी अधिक रोग मिटते हैं।
सूर्य की किरणों में प्राणायाम करो-लम्बे श्वास लो और रोको, स्थलबस्ती करो तो 132 प्रकार की बीमारियाँ ऐसे ही मिटती हैं। लोग ताकत के लिए खूब बादाम खाते हैं लेकिन बेवकूफी है। बादाम, काजू या पिस्ता आदि अधिक नहीं खाने चाहिए। भिगोकर खाने से वे सुपाच्य बनते हैं और एक बादाम चबा-चबाकर उसे प्रवाही बनाकर पी लो तो 10 बादाम खाने की ताकत आती है। मैं महीने में 15-20 दिन एक बादाम तो चबा के ले ही लेता हूँ। पेशाब रुककर आना, ज्यादा आना अथवा रोक न पाना-ये तकलीफें बड़ी उम्र में होती हैं लेकिन इस प्रकार से एक बादाम चबाने वाले को नहीं होंगी। बड़ी उम्र में व्यक्ति को बहरापन हो जाता है। तो सिर में जो तेल डालते हैं वही तेल मैं कान में दो-दो बूँद, चार-चार बूँद डालता रहता हूँ। फिर लेटकर गाय के घी का नस्य लेता हूँ, जिससे दिमाग मस्त रहता है, सिरदर्द आदि की तकलीफें नहीं हो सकतीं, ज्ञानतंतु भी हृष्ट-पुष्ट रहते हैं, जवानी बरकरार रहती है।
यह सब इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि जो बड़े-बड़े अधिकारी हैं, वे लोग मेरे शिष्यों से पूछते हैं कि बापूजी क्या खाते हैं ?
अरे, लाला-लालियो ! खाने से सब कुछ नहीं होता। समझने से सब कुछ होता है। कितनी ही भारी चीज खाओ, उससे आपकी तबीयत बढ़िया होगी ऐसी बात नहीं है। पहले खाया हुआ पच जाय फिर दूसरा खाओ। खाने पर खाया तो सत्यानाश होगा। उस समय तो खा लेते हैं, बाद में शरीर भारी रहता है। ऐसी गलती तो कभी-कभी मैं भी करता हूँ। तो फिर मैं उपवास कर लेता हूँ और सुबह आसन-वासन करता हूँ ताकि पहले का खाया हुआ बिल्कुल पच जाय।
रात को देर से नहीं खाना चाहिए। मैं रात को भोजन नहीं करता हूँ। कभी 6 महीने में एकाध बार खाना खाया होगा, नहीं तो नहीं। रात को दूध ही पी लेता हूँ लेकिन 9 बजे के बाद लेता हूँ तो थोड़ा कम कर देता हूँ। ज्यों सूर्य अस्त होता है, त्यों हमारी जठराग्नि मंद होती जाती है। स्वस्थ रहना है तो सूर्यास्त के पहले रात्रि का भोजन कर लेना चाहिए। नहीं कर पाओ तो 7-8 बजे तक कर लेना चाहिए लेकिन ज्यों देर होती है त्यों भोजन सादा-हलका लो।
गर्मियों में पाचन कमजोर रहता है। उन दिनों में दालें, राजमाँ खाने वाला पक्का बीमार मिलेगा। गर्मी में मूँग की छिलके वाली दाल, वह भी 100 ग्राम तो 1 किलो पानी हो, उबाल-उबालकर 1100 ग्राम में से 1 किलो दाल बचे तो वह सुपाच्य है। बाकी तो मोटी दाल से शरीर भारी रहेगा।
कुछ समय अपने अंतरात्मा में शांत बैठा करो। दो मिनट भी निःसंकल्प बैठते हो तो बड़ी शक्ति प्राप्त होती है। मैं रात्रि को सोते समय भी थोड़ा सत्संग सुनते-सुनते विश्राम में चला जाता हूँ, निःसंकल्प होता हूँ। सुबह उठता हूँ तब भी रात्रि की ध्यानावस्था में शांत रहता हूँ। इससे मेरा आध्यात्मिक खजाना भी भरपूर रहता है और शरीर भी स्वस्थ रहता है। मेरे को छुपाने की आदत नहीं है, खुली किताब है। इन कुंजियों को अपनाकर आप भी शरीर स्वस्थ रखो और अपने मन-बुद्धि को परमात्मा में लगाकर इसी जन्म में निहाल-खुशहाल हो जाओ।”
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2012, पृष्ठ संख्या 14,15 अंक 238
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