गोपाष्टमीः 21 नवम्बर
वर्ष में जिस दिन गायों की पूजा-अर्चना आदि की जाती है वह दिन भारत में ʹगोपाष्टमीʹ के नाम से मनाया जाता है। जहाँ गायें पाली-पोसी जाती हैं, उस स्थान को गोवर्धन कहा जाता है।
गोपाष्टमी का इतिहास
गोपाष्टमी महोत्सव गोवर्धन पर्वत से जुड़ा उत्सव है। गोवर्धन पर्वत को द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक गाय व सभी गोप-गोपियों की रक्षा के लिए अपनी एक अंगुली पर धारण किया था। गोवर्धन पर्वत को धारण करते समय गोप-गोपिकाओं ने अपनी-अपनी लाठियों का भी टेका दे रखा था, जिसका उन्हें अहंकार हो गया कि हम लोग ही गोवर्धन को धारण किये हुए हैं। उनके अहं को दूर करने के लिए भगवान ने अपनी अंगुली थोड़ी तिरछी की तो पर्वत नीचे आने लगा। तब सभी ने एक साथ शरणागति की पुकार लगायी और भगवान ने पर्वत को फिर से थाम लिया।
उधर देवराज इन्द्र को भी अहंकार था कि मेरे प्रलयकारी मेघों की प्रचंड बौछारों को मानव श्रीकृष्ण झेल नहीं पायेंगे परंतु जब लगातार सात दिन तक प्रलयकारी वर्षा के बाद भी श्रीकृष्ण अडिग रहे, तब आठवें दिन इन्द्र की आँखें खुलीं और उनका अहंकार दूर हुआ। तब वे भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आये और क्षमा माँगकर उनकी स्तुति की। कामधेनु ने भगवान का अभिषेक किया और उसी दिन से भगवान का एक नाम ʹगोविंदʹ पड़ा। वह कार्तिक शुक्ल अष्टमी का दिन था। उस दिन से गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा, जो अब तक चला आ रहा है।
इस प्रकार गोपाष्टमी यह संदेश देती है कि ब्रह्मांड के सब काम चिन्मय भगवत्सत्ता से ही सहज में हो रहे हैं परंतु मनुष्य अहंकारवश सोचता है कि हमारे बल से ही यह चलता है – वह चलता है। इस भ्रम को दूर करने के लिए परमात्मा दुःख, परेशानी भेजते हैं ताकि मनुष्य सावधान होकर इस अहंकार से छूट जाये। जब वह अपने अहंकार को छोड़ परमात्मा की शरण जाता है तो सारी मुसीबतें दूर होकर उसे परमानंद की प्राप्ति सहज में हो जाती है।
गोपाष्टमी का महत्त्व
इस दिन प्रातःकाल गायों को स्नान कराके गंध-पुष्पादि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को गोग्रास देकर उनकी परिक्रमा करें तथा थोड़ी दूर तक उनके साथ जाने से सब प्रकार के अभीष्ट की सिद्धि होती है। गोपाष्टमी के दिन सायंकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका आतिथ्य, अभिवादन और पंचोपचार-पूजन करके उन्हें कुछ खिलायें और उनकी चरणरज को मस्तक पर धारण करें, इससे सौभाग्य की वृद्धि होती है।
भारतवर्ष में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े उल्लास से मनाया जाता है। विशेषकर गौशालाओं तथा पिंजरापोलों के लिए यह बड़े महत्त्व का उत्सव है। इस दिन गौशालाओं में एक मेला जैसा लग जाता है। गौ-कीर्तन-यात्राएँ निकाली जाती हैं। यह घर-घर व गाँव-गाँव में मनाया जाने वाला उत्सव है। इस दिन गाँव-गाँव में भंडारे किये जाते हैं।
विश्व के लिए वरदानरूपः गोपालन
देशी गाय का दूध, दही, घी, गोबर व गोमूत्र सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए वरदानरूप हैं। दूध स्मरणशक्तिवर्धक, स्फूर्तिवर्धक, विटामिन्स और रोगप्रतिकारक शक्ति से भरपूर है। घी ओज-तेज प्रदान करता है। इसी गोमूत्र कफ व वायु के रोग, पेट व यकृत (लिवर) आदि के रोग, जोड़ों के दर्द, गठिया, चर्मरोग आदि सभी रोगों के लिए एक उत्तम औषधि है। गाय के गोबर में कृमिनाशक शक्ति है। जिस घर में गोबर का लेपन होता है वहाँ हानिकारक जीवाणु प्रवेश नहीं कर सकते। पंचामृत व पंचगव्य का प्रयोग करके असाध्य रोगों से बचा जा सकता है। ये हमारे पाप-ताप भी दूर करते हैं। गाय से बहुमूल्य गोरोचन की प्राप्ति होती है।
देशी गाय के दर्शन एवं स्पर्श से पवित्रता आती है, पापों का नाश होता है। गोधूलि (गाय की चरणरज) का तिलक करने से भाग्य की रेखायें बदल जाती हैं। ʹस्कंद पुराणʹ में गौ-माता में सर्व तीर्थों और सभी देवताओं का निवास बताया गया है।
गायों को घास देने वाले का कल्याण होता है। स्वकल्याण चाहने वाले गृहस्थों को गौ-सेवा अवश्य करनी चाहिए क्योंकि गौ-सेवा में लगे हुए पुरुष को धन-सम्पत्ति, आरोग्य, संतान तथा मनुष्य-जीवन को सुखकर बनाने वाले सम्पूर्ण साधन सहज ही प्राप्त हो जाते हैं।
विशेषः ये सभी लाभ देशी गाय से ही प्राप्त होते हैं, जर्सी व होल्सटीन से नहीं।
किसानों के लिए संदेश
खेती और गाय का बड़ा घनिष्ठ संबंध है। खेती से गाय पुष्ट होती है और गाय के गोबर व गोमूत्र से खेती पुष्ट होती है। विदेशी खाद से आरम्भ में कुछ वर्ष तो खेती अच्छी होती है पर कुछ वर्षों बाद जमीन उपजाऊ नहीं रहती। विदेशों में तो खाद से जमीन खराब हो गयी है और वे लोग मुंबई से जहाजों में गोबर लादकर ले जा रहे हैं, जिससे गोबर से जमीन ठीक हो जाय। गोबर-खाद किसानों को सस्ते में व आसानी से उपलब्ध होती है।
गोझरण एक सुरक्षित, फसलों को नुकसान न पहुँचाने वाला कीटनाशक है। गाँव में गोबर गैस प्लांट लगाकर वहाँ ईँधन, बिजली, बिजली पर चलने वाले यंत्रों आदि का फायदा लिया जाता है।
वैज्ञानिकों ने कहा है ʹएक समय ऐसा आने वाला है जब न बिजली मिलेगी, न पेट्रोल-डीज़ल !ʹ अब भी तेल मँहगा हो रहा है और हम ट्रैक्टरों में तेल खर्च रहे हैं। खेती की पुष्टि जितनी गाय बैलों से होती है, उतनी ट्रैक्टरों से नहीं होती। जब ट्रैक्टर चलता है तो जीव जंतुओं की बड़ी हत्या होती है। ट्रैक्टर से पाला, घास, बुड़ेसी, गँठिया आदि की जड़ें उखड़ जाती हैं। अतः समृद्ध खेती के लिए किसानों को बैल व गायों का पालन करना चाहिए। उनकी रक्षा करनी चाहिए, हत्यारों के हाथ में उन्हें बेचना नहीं चाहिए।
स्वास्थ्य लाभ
व्यक्ति स्वास्थ्य के लिए लाखों-लाखों रूपये खर्च करता है, कहाँ-कहाँ जाता है फिर भी बीमारियों से छुटकारा नहीं पाता। कई बार तो कंगालियत ही हाथ लगती है और स्वस्थ भी नहीं हो पाता।
इसका उपाय बताते हुए पूज्य बापू जी कहते हैं- “गाय घर पर होती है न, तो उसके गोबर, उसके गोझरण का लाभ तो मिलता ही है, साथ ही गाय के रोमकूपों से जो तरंगे निकलती हैं, वे स्वास्थ्यप्रद होती हैं। कोई बीमार आदमी हो, डॉक्टर बोले, ʹयह नहीं बचेगाʹ तो बीमार आदमी गाय को अपने हाथ से कुछ खिलाये और गाय की पीठ पर हाथ घुमाये तो गाय की प्रसन्नता की तरंगें हाथों की अंगुलियों से अंदर आयेंगी और वह आदमी तंदरूस्त हो जायेगा, दो चार महीने लगते हैं लेकिन असाध्य रोग भी गाय की प्रसन्नता से मिट जाते हैं।”
गायें दूध न देती हों तो भी वे परम उपयोगी हैं। दूध न देने वाली गायें अपने गोझरण व गोबर से ही अपने आहार की व्यवस्था कर लेती हैं। उनका पालन पोषण करने से हमें आध्यात्मिक, आर्थिक व स्वास्थ्यलाभ होता ही है।
गोपाष्टमी के दिन गौ-सेवा, गौ-चर्चा, गौ-रक्षा से संबंधित गौ-हत्या निवारण आदि विषयों पर चर्चासत्रों का आयोजन करना चाहिए। भगवान एवं महापुरुषों के गौप्रेम से संबंधित प्रेरक प्रसंगों का वाचन-मनन करना चाहिए।
जीवमात्र के परम हितैषी गौपालक पूज्य संत श्री आशारामजी बापू गायों का विशेष ख्याल रखते हैं। तभी तो उऩके मार्गदर्शन में भारतभर में कई गौशालाएँ चलती हैं और वहाँ अधिकतर ऐसी गायें हैं जो दूध न देने के कारण अनुपयोगी मानकर कत्लखाने ले जायी जा रही थीं। यहाँ उनका पालन-पोषण व्यवस्थित ढंग से किया जाता है। पूज्य बापू जी विश्व गौ-संरक्षक और संवर्धक भी हैं। उनके द्वारा वर्षभर गायों के लिए कुछ-न-कुछ सेवाकार्य चलते ही रहते हैं तथा गौ सेवा प्रेरणा के उपदेश उनके प्रवचनों का अभिन्न अंग हैं। गायों को पर्याप्त मात्रा में चारा व पोषक पदार्थ मिलें इसका वे विशेष ध्यान रखते हैं। बापू जी के निर्देशानुसार गोपाष्टमी व अन्य पर्वों पर गाँवों में घर-घर जाकर गायों को उनका प्रिय आहार खिलाया जाता है। इतना ही नहीं, बापू जी समय-समय पर विभिन्न गौशालाओं में जाकर अपने हाथों से गायों को खिलाते हैं, उन्हें सहलाते हैं, उनसे स्नेह करते हैं। गौ-पालकों को मार्गदर्शन देते हैं, उनका उत्साह बढ़ाते हैं, उन्हें विभिन्न प्रकार से सहयोग देते हैं। महाराजश्री द्वारा चलाया गया यह गौ-रक्षा एवं गौ-संवर्धन अभियान एक दिन देश के अर्थतंत्र, सामाजिक स्वास्थ्य समृद्धि तथा व्यक्तिगत उत्थान की सुदृढ़ रीढ़ अवश्य बनेगा।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2012, पृष्ठ संख्या 14,15,16 अंक 239
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