वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य-सुरक्षा

वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य-सुरक्षा


ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक दुर्बलता को प्राप्त हुए शरीर को वर्षा ऋतु में धीरे-धीरे बल प्राप्त होने लगता है। आर्द्र (नमीयुक्त) वातावरण जठराग्नि को मंद कर देता है। शरीर में पित्त का संचय व वायु का प्रकोप हो जाता है। परिणामतः वात-पित्तजनित व अजीर्णजन्य रोगों का प्रादुर्भाव होता है। अतः इन दिनों में जठराग्नि को प्रदीप्त करने वाला, सुपाच्य व वात-पित्तशामक आहार लेना चाहिए।

सावधानियाँ

भोजन में अदरक व नींबू का प्रयोग करें। नींबू वर्षाजन्य रोगों में बहुत लाभदायी है।

गुनगुने पानी में शहद व नींबू का रस मिलाकर सुबह खाली पेट लें। यह प्रयोग सप्ताह में 3-4 दिन करें।

प्रातःकाल में सूर्य की किरणें नाभि पर पड़ें इस प्रकार वज्रासन में बैठ के श्वास बाहर निकालकर पेट को अंदर-बाहर करते हुए ‘रं’ बीजमंत्र का जप करें। इससे जठराग्नि तीव्र होगी।

भोजन के बीच गुनगुना पानी पीयें।

सप्ताह में एक दिन उपवास रखें। निराहार रहें तो उत्तम, अन्यथा दिन में एक बार अल्पाहार लें।

सूखा मेवा, मिठाई, तले हुए पदार्थ, नया अनाज, आलू, सेम, अरबी, मटर, राजमा, अरहर, मक्का, नदी का पानी आदि त्याज्य हैं।

देशी आम, जामुन, पपीता, पुराने गेहूँ व चावल, तिल अथवा मूँगफली का तेल, सहजन, सूरन, परवल, पका पेठा, टिंडा, शलजम, कोमल मूली व बैंगन, भिंडी, मेथीदाना, धनिया, हींग, जीरा, लहसुन, सोंठ, अजवायन सेवन करने योग्य हैं।

श्रावण मास में पत्तेवाली हरी सब्जियाँ व दूध तथा भाद्रपद में दही व छाछ का सेवन न करें।

दिन में सोने से जठराग्नि मंद व त्रिदोष प्रकुपित हो जाते हैं। अतः दिन में न सोयें। नदी में स्नान न करें। बारिश में न भीगें। रात को छत पर अथवा खुले आँगन में न सोयें।

औषधि प्रयोगः

वर्षा ऋतु में रसायन के रूप में 100 ग्राम हरड़ चूर्ण में 10-15 ग्राम सेंधा नमक मिला के रख लें। दो ढाई ग्राम रोज सुबह ताजे जल के साथ लेना हितकर है।

हरड़ चूर्ण में दो गुना पुराना गुड़ मिलाकर चने के दाने के बराबर गोलियाँ बना लें। 2-2 गोलियाँ दिन में 1-2 बार चूसें। यह प्रयोग वर्षाजन्य सभी तकलीफों में लाभदायी है।

वर्षाजन्य सर्दी, खाँसी, जुकाम, ज्वर आदि में अदरक व तुलसी के रस में शहद मिलाकर लेने से व उपवास रखने से आराम मिलता है। एंटीबायोटिक्स लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2010, पृष्ठ संख्या 30, अंक 211

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