विश्वमानव के सच्चे हितैषी पूज्य संत श्री आशारामजी बापू वर्षों से सत्संग में कहते आ रहे हैं कि ऑपरेशन द्वारा प्रसूति माँ और बच्चा दोनों के लिए हानिकारक है। अतः प्रसूति प्राकृतिक रूप से ही होनी चाहिए।
कई प्रयोगों के पश्चात विज्ञान भी आज इस तथ्य को मानने के लिए बाध्य हो गया है कि प्राकृतिक प्रसूति ही माँ एवं बच्चे के लिए लाभप्रद है। जापानी वैज्ञानिकों द्वारा किये गये शोध से यह सिद्ध हुआ है कि प्रसूति के समय स्रावितच होने वाले 95% योनिगत द्रव्य हितकर जीवाणुओं से युक्त होते हैं, जो सामान्य प्रसूति में शिशु के शरीर में प्रविष्ट होकर उसकी रोगप्रतिकारक शक्ति और पाचनशक्ति को बढ़ाते हैं। इससे दमा, एलर्जी, श्वसन-संबंधी रोगों का खतरा काफी कम हो जाता है, जबकि ऑपरेशन से पैदा हुए बच्चे अस्पताल के हानिकारक जीवाणुओं से प्रभावित हो जाते हैं।
स्विट्जरलैंड के डॉ. केरोलिन रोदुइत ने 2917 बच्चों का अध्ययन करके पाया कि उनमें से 247 बच्चे जो कि सिजेरियन से जन्मे थे, उनमें से 12 % बच्चों को 8 साल की उम्र तक में दमे का रोग हुआ और उपचार कराना पड़ा। इसका कारण यह था कि उनकी रोगप्रतिकारक शक्ति प्राकृतिक रूप से जन्म लेने वाले बच्चों की अपेक्षा कम होती है, जिससे उनमें दमे का रोग होने की सम्भावना 80 % बढ़ जाती है। प्राकृतिक प्रसूति में गर्भाशय के संकोचन से शिशु के फेफड़ों और छाती में संचित प्रवाही द्रव्य मुँह के द्वारा बाहर निकल जाता है, जो सिजेरियन में नहीं हो सकता। इससे शिशु के फेफड़ों को भारी हानि होती है, जो आगे चलकर दमे जैसे रोगों का कारण बनती है।
ऑपरेशन से पैदा हुए बच्चों में मधुमेह (Diabetes) होने की सम्भावना 20 % अधिक रहती है।
सिजेरियन के बाद अगले गर्भधारण में गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क एवं मेरूरज्जु (Spinal Cord) में विकृति तथा वजन कम होने का भय रहता है। सिजेरियन डिलीवरी से माँ को होने वाली सम्भावित हानियाँ-
ʹमिन्कोफ्फ एवं चेर्वेनाक 2003ʹ की रिपोर्ट के अनुसार सिजेरियन के समय मृत्यु का भय अधिक होता है।
सामान्य प्रसूति की अपेक्षा सिजेरियन के समय माता की मृत्यु की सम्भावना 26 गुऩी अधिक रहती है।
सिजेरियन के बाद अत्यधिक रक्तस्राव तथा चीरे के स्थान पर दर्द जो 6 महीनों तक भी रह सकता है।
गर्भाशय व मूत्राशय के बीच चिपकाव (Adhesions) अथवा आँतों में अवरोध, जिससे पेट में स्थायी दर्द का प्रादुर्भाव।
अगला प्रसव पुनः ऑपरेशन से होने की सम्भावना। उसमें अत्यधिक रक्तस्राव व गर्भाशय-भेदन (rupture) का डर।
गर्भाशय की दुर्बलता व गर्भधारण क्षमता (fertility) का ह्रास।
भविष्य में गर्भाशयोच्छेदन (hysterectomy) तथा चीरे के स्थान पर हर्निया का खतरा।
ʹविश्व स्वास्थ्य संगठनʹ की 2012 रिपोर्ट के अनुसार भारत में सिजेरियन डिलीवरी की दर बढ़कर 9 % हो गयी है। खोजबीन करने पर ʹविश्व स्वास्थ्य संगठनʹ को यह कड़वा सच भी हाथ लगा कि ʹबहुत से मामलों में अस्पतालों द्वारा पैसे कमाने के लालच में ऑपरेशन द्वारा प्रसूति करवायी गयी।ʹ अतः लालच के लिए ऐसा करने वाले अस्पतालों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही होनी चाहिए, ऐसी माँग देश की जनता में जोर पकड़ रही है। जो माताएँ प्रसूति के दर्द के भय से एवं भावी खतरों से अनजान होने के कारण इसका तुरंत वरण कर लेती हैं, उन्हें अब विश्व के प्रख्यात वैज्ञानिक एवं मूर्धन्य आधुनिक चिकित्सक स्वयं ही चेतावनी दे रहे हैं कि अपनी व संतान की रक्षा के लिए सावधान हो जायें। सिजेरियन नहीं प्राकृतिक प्रसूति से बच्चे को जन्म दें।
ʹसामान्य प्रसूति में यदि कहीं बाधा जैसे लगेग तो 10-12 ग्राम देशी गाय के गोबर का ताजा रस निकालें, गुरु मंत्र का जप करके अथवा ʹनारायण-नारायण….ʹ जप करके गर्भवती महिला को पिला दें। एक घंटे में प्रसूति नहीं हो तो वापस पिला दें। सहजता से प्रसूति होगी। अगर प्रसव पीड़ा समय पर शुरु नहीं हो रही हो तो गर्भिणी ʹजम्भला….. जम्भला….ʹ मंत्र का जप करे और पीड़ा शुरु होने पर उसे गोबर का रस पिलायें तो सुखपूर्वक प्रसव होगा।”
पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2012, पृष्ठ संख्या 27,28 अंक 240
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