भगवान, आत्मदेव में तीन बातें ऐसी हैं कि और कहीं नहीं मिलेंगी। एक तो वह मरेगा नहीं। ब्रह्मलोक का नाश हो जायेगा, ब्रह्मा जी मर जायेंगे, इन्द्र मर जायेंगे परंतु भगवान मरेंगे नहीं। दूसरी बात क्या है, बिछुड़ेगा नहीं। हमारे से अलग होकर बिछुड़ के दिखावे ! हम नहीं जान रहे हैं तभी भी बिछुड़ा नहीं है। हम नहीं मान रहे हैं तभी भी बिछुड़ा नहीं है। महाराज आप मरोगे नहीं, बिछुड़ोगे नहीं। तीसरी बात, बेवफा नहीं बनेगा। भगवान मरेगा नहीं, बिछुड़ेगा नहीं, बेवफा नहीं बनेगा जबकि शरीर व संसार मरेगा, बिछुड़ेगा और बेवफा बनेगा।
यह केवल लिख दो न अपनी दीवारों पर – ʹभगवान मरेंगे नहीं, बिछुड़ेंगे नहीं और बेवफा नहीं होंगे। शरीर और संबंध मरेंगे, बिछुड़ेंगे और बेवफा होंगे।ʹ
बेटा बाप से बेवफा हो जाता है, पत्नी पति से, पति पत्नी से बेवफा हो जाता है। मित्र मित्र से बेवफा होता है। अरे, अपना शरीर तो बेवफा होता ही रहता है, कितना भी खिलाओ, पिलाओ, धुलाओ, सुलाओ फिर भी कभी कुछ – कभी कुछ। अंत में देखो तो ऐसा लाचार कि सुनने की इच्छा है लेकिन सुनाई कम पड़ता है…. बेवफाई हुई ! देखने की इच्छा है किंतु दिखाई कम पड़ता है या नहीं पड़ता है। जीने की इच्छा है और यह हरामी बिछुड़ता है, बेवफाई करेगा। कितना भी खिलाओ, पिलाओ, धुलाओ, सुलाओ फिर भी मोहताज हो गये, उठाकर ले चलो – ʹराम बोलो भाई राम….ʹ ऐ बेवफा !
शरीर तो है बेवफा, बिछुड़ जायेगा। रिश्तेदार बेवफाई करेंगे। दमड़ी-दमड़ी जोड़कर मकान बनाया लेकिन मरेंगे न, तो रिश्तेदार हमारी हड्डियाँ घर में नहीं आऩे देंगे। बोलेंगे- “अपशकुन है। पेड़ पर बाँधो, गंगा में फेंको।” तो इनके पीछे झख काहे को मार रहे हो ? इनके लिए थोड़ा-बहुत समय दो, बाकी तो जो मरे नहीं, बिछुड़े नहीं, बेवफा नहीं हो उस अंतरात्मा-परमात्मा की ओर लग जाओ। उस पिया को पा लो, उस प्रभु को पा लो।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2012, पृष्ठ संख्या 26 अंक 240
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