तिल बलप्रदायक, बुद्धि व वीर्यवर्धक, जठराग्नि-प्रदीपक, वातशामक व कफ-पित्त प्रकोपक हैं। काले, सफेद और लाल तिलों में काले तिल श्रेष्ठ हैं। 100 ग्राम तिलों में 1450 मि.ग्रा. इतनी प्रचंड मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है। जिससे ये अस्थि, संधि (जोड़ों), केश व दाँतों को मजबूत बनाते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार सभी तेलों में तिल का तेल श्रेष्ठ है, यह उत्तम वायुशामक है। अपनी स्निग्धता, तरलता और उष्णता के कारण शरीर के सूक्ष्म स्रोतों में प्रवेश कर यह दोषों को जड़ से उखाड़ने तथा शरीर के सभी अवयवों को दृढ़ व मुलायम रखने का कार्य करता है। टूटी हुई हड्डियों व स्नायुओं को जोड़ने में मदद करता है। कृश शरीर में मेद बढ़ाता है व स्थूल शरीर से मेट घटाता है। तिल के तेल की मालिश करके सूर्यस्नान करने से त्वचा मुलायम व चमकदार होती है, त्वचा में ढीलापन, झुर्रियाँ तथा अकाल वार्धक्य नहीं आता।
तिल के औषधीय प्रयोग
रसायन-प्रयोग
अष्टांग संग्रहकार श्री वाग्भट्टाचार्यजी के अनुसार 15 से 25 ग्राम काले तिल सुबह चबा-चबाकर खाने व ऊपर से शीतल जल पीने से सम्पूर्ण शरीर-विशेषतः हड्डियाँ, दाँत, संधियाँ व बाल मजबूत बनते हैं
बलवर्धक प्रयोगः
सफेद तिल भिगोकर, पीसकर, छान के उसका दूध बना लें। 50 से 100 ग्राम इस दूध में 25 से 50 ग्राम पुराना गुड़ मिलाकर नियमित लेने व 12 सूर्य नमस्कार करने से शरीर बलवान होता है।
तिल सेंककर गुड़ व घी मिला के लड्डू बना लें। एक लड्डू सुबह चबाचबाकर खाने से मस्तिष्क व शरीर की दुर्बलता दूर होती है।
एक-एक चम्मच तिल व घी गर्म पानी के साथ रोज दो या तीन बार खाने से पुराने आँव, कब्ज व बवासीर में राहत मिलती है।
तिल-सेवन की मात्राः 10 से 25 ग्राम।
विशेष जानकारीः तिल की ऊपरी सतह पर पाया जाने वाला ʹऑक्जेलिक एसिडʹ कैल्शियम के अवशोषण में बाधा उत्पन्न करता है। इसलिए तिलों को पानी में भिगोकर, हाथों से मसल के ऊपरी आवरण उतार के उपयोग करना अधिक लाभदायी है।
सावधानियाँ- उष्ण प्रकृति के व्यक्ति, गर्भिणी स्त्रियाँ तिल का सेवन अल्प मात्रा में करें। अधिक मासिक-स्राव व पित्त-विकारों में तिल नहीं खायें।
तिल, तिल के पदार्थ तथा तेल का उपयोग रात को नहीं करना चाहिए।
तिल के तेल का अधिक सेवन नेत्रों के लिए हानिकारक है।
सरल घरेलु उपचार
अच्छी नींद लाने तथा खर्राटे बंद करने के लिएः रात को गाय का घी हलका-सा गरम करके 1 से 4 बूँदें दोनों नथुनों में डालें।
उच्च-रक्तचाप में- रात को गुनगुने पानी में 5 से 15 ग्राम मेथीदाना भिगा दें, सुबह छान के पानी पी लें। गाजर, सेब, केला, अमरूद, अनार, पालक आदि खायें तथा कच्ची दूधी (लौकी) का 15 से 25 मि.ली. रस पियें।
दमा में- आधा ग्राम दालचीनी का चूर्ण शहद या गुड़ के साथ दिन में 1 या 2 बार लें। लगातार तीन महीने तक लेने से लाभ होता है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2013, पृष्ठ संख्या 31, अंक 241
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