14 फरवरी ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ विशेष)
राम जी रावण को तीरों का निशाना बनाते हैं और रावण का सिर कटता है, फिर से लगता है क्यों उसे वरदान मिला था। लेकिन रावण दंग रह गया कि जब वह रामजी पर बाण छोड़ता तो बाण रामजी की तरफ जाते-जाते उनके सिर में लगता ही नहीं था। राम जी के सिर की तरफ रावण का बाण जाये ही नहीं ! रावण सोचे-सोचे…. ʹआखिर क्या है, क्या है ?….ʹ शिवजी ने प्रेरणा की कि इनके सिर का तो बीमा किया हुआ है। राम जी तो अपने सिर का बीमा करा चुके थे और रावण का बीमा था नहीं !
क्या बीमा है ? दुनिया के सारे विद्यालय-महाविद्यालय, सारे विश्वविद्यालयों द्वारा प्रमाणपत्र प्राप्त करके ट्रक भरकर घूमो तो भी उतना फायदा नहीं होता जितना सत्संग से ज्ञान और सच्चा सुख मिलता है। रामजी ने बीमा क्या करवाया था, पता है ? शिवाजी ने भी बीमा कराया था। रामी रामदास का भी बीमा था। मेरे गुरुदेव भगवत्पाद लीलाशाहजी बापू ने भी बीमा कराया था। मैंने भी बीमा कराया है। अब तुम ढूँढते रहो किधर बीमा कराते हैं ? कैसे बीमा होता है ? जरा सोचो। अरे….
प्रातःकाल उठि कै रघुनाथा।
मातु पिता गुरु नावहिं माथा।।
(श्रीरामचरितमानस)
जैसे राम जी प्रातःकाल उठकर माता पिता और गुरु को प्रणाम करते, मत्था नवाते तो ʹपुत्र ! चिरंजीवी भव। यशस्वी भव।ʹ आशीर्वाद मिलता। माँ-बाप और गुरु के आशीर्वाद से बड़ा कोई बीमा होता है क्या ? तो तुम भी बीमा करा लिया करो और तुम्हारे बच्चों को भी यह बात बताना कि रामजी ने ऐसा बीमा करा लिया था।
14 फरवरी ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ से बहुत-बहुत सूखे हृदय रसमय हुए हैं, उजड़ी उमंगे फिर पल्लवित हुई हैं। काँटे फूल में बदल गये, वैर प्रीत में बदल गये। हार जीत में बदल गयी और महाराज ! मौत मोक्ष में बदल जाती है माता-पिता और गुरुओं के संग और आशीर्वाद से।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2013, पृष्ठ संख्या 5, अंक 242
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