मंत्रजप से शुद्ध होते हैं जन्मकुण्डली के बारह स्थान – पूज्य बापू जी

मंत्रजप से शुद्ध होते हैं जन्मकुण्डली के बारह स्थान – पूज्य बापू जी


शास्त्रों में जन्मकुण्डली के बारह स्थान बताये गये हैं। एक करोड़ जप पूरा होने पर उनमें से प्रथम स्थान-तनु स्थान शुद्ध होने लगता है। रजो-तमोगुण शांत होकर रोगबीजों व जन्म-मरण के बीजों का नाश होता है तथा शुभ स्वप्न आने लगते हैं। संतों, देवताओं व भगवान के दर्शन होने लगते हैं। कभी कम्पन होने लगेगा, कभी हास्य आने लगेगा, कभी नृत्य उभरेगा, कभी आप सोच नहीं सकते ऐसे-ऐसे रहस्य प्रकट होंगे। निगुरों के आगे इन रहस्यों को प्रकट नहीं करना चाहिए। रात को सोते समय कंठ में गुरु जी के साथ तादात्म्य करके सो गये तो गुरु शिष्य का संबंध जुड़ जाता है। श्रद्धा तीव्र है तो संबंध जल्दी जुड़ता है अन्यथा दो तीन महीने में जुड़ जाता है। स्वप्न में गुरु अथवा संत के दर्शन होने लगें तो समझो एक करोड़ जप का फल फलित हो गया।

अगर दो करोड़ जप हुआ तो कुंडली का दूसरा स्थान-कुटुम्ब स्थान शुद्ध व प्रभावशाली हो जाता है। धन की प्राप्ति होगी, कुटुम्ब का वियोग नहीं होगा। समता ,शांति व माधुर्य स्वाभाविक हो जायेगा। कुटुम्ब स्थान शुद्ध होने पर नौकरी व धनप्राप्ति के लिए भटकने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जैसे व्यक्ति की छाया उसके पीछे चलती है, ऐसे ही धन और यश उसका दास होकर उसके पीछे चलेंगे।

तीन करोड़ जप  की संख्या पूरी होने पर जन्मकुण्डली का तीसरा स्थान या सहज स्थान शुद्ध हो जाता है, जाग जाता है। असाध्य कार्य आपके लिए साध्य हो जाता है। लोग आपको प्रेम करने लगेंगे, स्नेह करने लगेंगे। आपकी उपस्थितिमात्र से लोगों की प्रेमावृत्ति छलकने लगेगी।

अगर चार करोड़ जप हो जाता है तो चौथा स्थान – सुख स्थान, मित्र स्थान शुद्ध हो जाता है। शरीर और मन के आघात नहीं के बराबर हो जायेंगे। मानसिक उपद्रव की घटनाएँ होंगी लेकिन आपका मन उन सबसे निर्लेप रहेगा। डरने की बात नहीं है कि चार करोड़ जप कब पूरा होगा। साधारण जगह पर जप की अपेक्षा तुलसी की क्यारी के नजदीक एक जब दस जप के बराब होता है। देवालय अथवा आश्रम में प्राणायाम करके किया गया एक जप सौ गुना ज्यादा फल देता है। ब्रह्मवेत्ता गुरु के आगे किया एक जप हजारों गुना फल देता है। संयम, श्रद्धा, एकाग्रता व तत्परता जितने अंशों में मजबूत होंगे, जप उतना ज्यादा प्रभावी होगा। सोमवती अमावस्या और ऐसी मंगलमय तिथियों के दिनों में जप का फल 10 हजार गुना हो जाता है। सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण में लाख गुना हो जाता है। दुष्कर्मों का त्याग करके किये गये जप का फल अनंत गुना हो जाता है।

पाँच करोड़ जप पूरा होने पर पाँचवाँ स्थान-पुत्र स्थान शुद्ध हो जायेगा। अपुत्रवान को पुत्र हो जायेगा। अपुत्रवान को आप पुत्र देने की युक्ति सिद्ध कर लेंगे।

छः करोड़ जप पूरा होने पर छठा स्थान-रिपु स्थान शुद्ध हो जायेगा। कोई आपसे शत्रुता नहीं रख सकेगा। किसी  ने शत्रुता की तो प्रकृति उसको दंडित करेगी। शत्रु वे रोग से आपको निपटना नहीं पड़ेगा, जप की शक्ति उससे निपटेगी।

सात करोड़ जप पूरा होने पर आपकी जन्मकुण्डली का सातवाँ स्थान-स्त्री स्थान शुद्ध हो जाता है। आपकी शादी नहीं हो रही है तो शादी हो जायेगी। दूसरे की शादी नहीं हो रही है तो उसके लिए आपकी दुआ भी काम करने लगेगी। दाम्पत्य सुख अनुकूल होगा। आपके सभी रिश्तेदार, पत्नी, बच्चे, ससुराल पक्ष के लोग आपसे  प्रसन्न रहने लगेंगे। आपको किसी को रिझाना नहीं पड़ेगा, सभी आपको रिझाने का मौका खोजते फिरेंगे। भगवद्-जप से आप इतने पावन होने लगेंगे ! फिर निर्णय क्यों नहीं करते कि ʹमैं दो करोड़ की संख्या पूरी करूँगा।ʹ तीन, चार, पाँच करोड़…. जितने का भी हो ठान लो बस।

अगर आठ करोड़ जप हो गया तो आठवाँ स्थान – मृत्यु स्थान शुद्ध हो जायेगा। फिर आपकी चाहे गाड़ियों, मोटरों अथवा जहाज या हेलिकाप्टर से भयंकर दुर्घटना ही क्यों न हो लेकिन आपकी अकाल मृत्यु नहीं हो सकती है। मृत्यु के दिन ही मृत्यु होगी, उसके पहले नहीं हो सकती। चाहे आप गौरांग की नाई उछलते हुए दरियाई तूफान की लहरों में प्रेम से कूद जायें तो भी आपका बाल बाँका नहीं होगा।

आनंदमयी माँ बीच नर्मदा में नाव से कूद पड़ीं, तैरना नहीं जानती थी फिर भी हयात रहीं। लाल जी महाराज नर्मदा की बाढ़ में आ गये, वे तैरना नहीं जानते थे फिर भी उनकी जप-सत्ता ने मानो उनको पकड़ के किनारे कर दिया। मैंने ऐसे कई जप के धनियों को देखा भी है, शास्त्रों में पढ़ा-सुना भी है।

अगर नौ करोड़ जप  हो जाये तो मंत्र के देवता जप करते ही आपके सामने प्रकट हो जायेंगे, वार्तालाप करेंगे। समर्थ रामदास के आगे सीताराम प्रकट हो जाते थे, तुकारामजी के आगे रूकोबा विट्ठल (राधा कृष्ण) प्रकट हो जाते थे, लाल जी महाराज के सामने उनके इष्टदेव मंत्र जपते ही प्रकट हो जाते थे।

अगर दस करोड़ जप की संख्या पूरी कर ली तो जन्मकुंडली का दसवाँ स्थान-कर्म स्थान, पितृ स्थान शुद्ध हो जायेगा। दुष्कर्मों का नाश होगा और आपके सभी कर्म सत्कर्म हो जायेंगे। श्रीकृष्ण का युद्ध भी सत्कर्म हो जाता है, हनुमानजी का लंका जलाना भी सत्कर्म हो जाता है।

राम लखन जानकी, जय बोलो हनुमान की।

लंका जलायी तो कितने जल गये होंगे ! लेकिन हनुमान जी को दोष नहीं लगा।

अगर ग्यारह करोड़ जप हो गया तो ग्यारहवाँ स्थान-लाभ स्थान शुद्ध होता है। धन, घर, भूमि के तो लाभ सहज में होते जायेंगे। सत्त्वात्संजायते ज्ञानम्…. परमात्म-ज्ञान का प्रकाश हो जायेगा।

अगर बारह करोड़ जप हो जाता है तो क्या कहना ! आपका बारहवाँ स्थान – व्यय स्थान शुद्ध हो जाता है। वह इतना शुद्ध हो जाता है कि अनावश्यक व्यय बंद हो जायेंगा। रज-तम पूर्णत शांत हो जायेंगे। सत्त्वगुण की जो सिद्धि है दर्शन-अदर्शन, वह प्राप्त हो जायेगी। मेरे सामने ऐसा हुआ था। मेरे सामने जा रहे थे संत। जैसे ही मैं देखने को दौड़ा तो उसी समय वे अदृश्य हो गये।

जिन्हें हरिभक्ति प्यारी हो,

माता-पिता सहजे छुटे संतान अरू नारी।

माता-पिता और पति-पत्नी की मोह-ममता छूट जाती है और उनमें भी भगवद् भाव आने लगता है। जिसको भगवद् भक्ति का रंग लगता है, उसका नजरिया बदल जाता है। विकारी नजरिये की जगह भगवद् नजरिया आ जाता है। ममता की जगह पर भगवान आ जाते हैं। मोह, स्वार्थ और विकार की जगह पर स्नेह और सच्चिदानंद छलकने लगता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2013, पृष्ठ संख्या 12,13 अंक 245

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *