स्त्री इसी साधन से अपने जीवन को धन्य बना सकती है – पूज्य बापू जी

स्त्री इसी साधन से अपने जीवन को धन्य बना सकती है – पूज्य बापू जी


देवर्षि नारदजी को धर्मराज युधिष्ठिर ने प्रार्थना कीः “स्त्रीधर्म क्या है ? स्त्री संसार में रहते हुए, गृहस्थ-जीवन जीते हुए कैसे परम पद पा सकती है ? उसके लिए हे देवर्षि ! आपकी वाणी सुनना चाहता हूँ ।”

देवर्षि नारदजी ने परमात्मा – सनातनस्वरूप ईश्वर में, शांति में तनिक गोता मारा । ‘नारायण नारायण…’ स्मरण किया और कहाः “स्त्री को मधुर भाषण करना स्वाभाविक है । वे मधुरभाषिणी हों और पति में नारायण को देखकर पतिपरायणा हो के उनकी सेवा में अपनी वासनाओं का त्याग करके वे परम पद आसानी से पा सकती हैं ।

स्त्री लोलुपतारहति, संतुष्ट स्वभाव की हो और आलस्य-त्याग करके अपने गृहस्थोचित कार्यों में चतुर रहे । कटु वाणी और कपट से अपने को बचाये और परिस्थितियों की प्रतिकूलता हँसते-खेलते सहकर भी पति को और पति के परिजनों को पालन-पोषण में सहयोग दे तो उसका हृदयकमल खिल जाता है ।

अधिकार की लोलुपता छोड़कर कर्तव्य का आग्रह रखने वाली नारी नारायणीरूप हो जाती है । जो पत्नी पवित्रतापूर्वक पति की वाचिक, मानसिक और शारीरिक सेवा करती है तथा कोमल स्वभाव रखती है, वह भगवान नारायण की लक्ष्मीस्वरूपा अपने स्वभाव को शुद्ध बना लेती है । ऐसी नारी गृहस्थ-जीवन को देदीप्यमान करके दिव्य संतानों को और दिव्य वातावरण को जन्म देने वाली हो जाती है । साध्वी स्त्री इसी साधन से अपने जीवन को धन्य बना सकती है ।”

अपना राग किसमें मिलायें ? – पूज्य बापू जी

पतिव्रता स्त्री में सामर्थ्य कहाँ से आता है ? वह अपनी इच्छा नहीं रखती, अपना राग नहीं रखती । पति के राग में अपना राग मिला देती है । भक्त भगवान के राग में अपना राग मिला देता है । शिष्य गुरु के राग में अपना राग मिला देता है । पति का राग कैसा भी हो लेकिन पतिव्रता पत्नी अपना राग उसमें मिटा देती है तो उसमें सामर्थ्य आ जाता है । भगवान का राग यह होता है कि जीव ब्रह्म हो जाय, सद्गुरु का राग यह होता है कि जीव अपने स्वरूप में जाग जाय । जब भगवान के राग में अपना राग मिला दिया तो फिर चिंता और फरियाद को रहने की जगह ही नहीं मिलती ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2021, पृष्ठ संख्या 21 अंक 339

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