तौबा-तौबा ! कैसी दुःखदायी है ममता ! – पूज्य बापू जी

तौबा-तौबा ! कैसी दुःखदायी है ममता ! – पूज्य बापू जी


तुलसी ममता राम सौं, समता सब संसार।

ममता अगर करनी है तो अंतर्यामी प्रभु से करो। ʹबेटे का क्या होगा, बेटी का क्या होगा, दुकान का क्या होगा, फलाने का क्या होगा, फलानी का क्या होगा ?ʹ

ऐसा सोचते रहने वाले दुःखी होकर मर जाते हैं। फिर कहाँ जायेंगे, कौन सी योनि में भटकेंगे कोई पता नहीं। कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति ऐसी लाचारी की स्थिति नहीं चाहता है। जैसे घर से निकलने से पहले ही बुद्धिमान व्यक्ति यह सोच लेता है कि कहाँ जायेंगे, क्या खायेंगे, कहां रहेंगे आदि। ऐसे ही जीवन की शाम होने से पहले वह सोच लेता है कि ʹमर जायेंगे तो हमारा क्या होगा ?ʹ

एक दादा-दादी थे। उनकी बहू के दो बच्चे थे – एक बेटा, एक बेटी। दादा-दादी को अपने पोते-पोती से बहुत प्रेम था। मरने के बाद वे कुत्ता कुत्ती बन गये और जब पोता-पोती बाहर शौच करने को बैठते तो दोनों रखवाली करते। कोई यात्री आये या कोई दूसरा कुत्ता वहाँ से पसार हो तो कुतिया खूब भौंकती थी। एक दिन बहू को गुस्सा आया कि कुतिया रोज शोर मचाती है। उसने उठाकर डंडा दे मारा तो कुतिया की कमर टूट गयी। दोनों पैरों को घसीटते-घसीटते लँगड़ाकर चलती। अब उसका भौंकना कम हो गया।

दैवयोग कहो, सर्वसमर्थ ईश्वर की लीला कहो उस कुत्ते और कुत्ती को पूर्वजन्म की स्मृति आ गयी। कुत्ते ने कहाः “राँड ! इन बेटों, पोतों की ममता ने तो कुत्ता और कुत्ती बनाया। तू भौंकती थी और मुझे भी भौंकने को मजबूर करती थी। तेरे भौंकने का फल देख ले। कौन तेरा है ? जिस बहू को ʹलाडी-लाडीʹ करके लाड़ करती थी और बच्चों को दूध पिलाती थी, उसी ने उन बच्चों के कारण तेरी कमर तोड़ दी। अगर यही ममता भगवान से की होती तो तेरी मेरी दुर्गति नहीं होती। अभी चुपचाप बैठ।”

बाद में बहू और बेटे को किन्हीं संत से पता चला कि ʹयही हमारे माता-पिता थे ! अब कुत्ता कुत्ती होकर आये हैं। बच्चे शौच करते हैं तो वहाँ चौकी करते हैं।ʹ

हे भगवान ! तौबा-तौबा ! कैसी दुःखदायी है ममता ! भगवान से ममता नहीं करोगे तो पुत्र-पौत्र, मकान आदि जहाँ भी ममता होगी वहाँ आना पड़ेगा। भगवान करें कि भगवान ही आपको प्यारे लगें, भगवान ही आपको अपने लगें, भगवान करें कि भगवान में ही मन लग जाये। भगवान के नाते तत्परता से काम करो। जैसे पत्नी पति के नाते सासु की, ससुर की, जेठ की, ननद की, मेहमानों की सेवा कर लेती है ऐसे भगवान के नाते सभी से व्यवहार करो, ममता के नाते नहीं। ʹभविष्य में यह काम आयेगा, मेरा यह भला कर देगा, यह दे देगा….।ʹ नहीं, ईश्वर के नाते कर्म करो।

नर-नारियों के रूप में, पक्षियों के रूप में,  पशुओं के रूप में सब जगह चेतना उस परमेश्वर की है। हे हरि ! हे नारायण ! हे प्रभु ! बस भगवान का ज्ञान, भगवान का सुमिरन और भगवान की प्रीति। यदि प्रेम करना हो तो उसी से करो, प्रार्थना करनी हो तो उसी से करो, ममता करनी हो तो उसी से करो। यदि झगड़ा करना हो तो भी उसी से करो क्योंकि उसके जैसा सच्चा मित्र और सम्बंधी दूसरा कोई नहीं है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2013, अंक 249

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