अजामिल का पतन (भाग-3)

अजामिल का पतन (भाग-3)


अजामिल के अन्तर्यामी गुरुदेव ने उसे रोकने का प्रयत्न किया लेकिन बीच मे मन कूद पड़ा कि अरे मूर्ख हो गया है क्या? अपना चिट्ठा खोल देगा तो खुद ही गुरुदेव की नज़रो में छोटा हो जाएगा।सोच ले क्या सोचेंगे तेरे बारे में, तू इतना विद्वान होकर भी यूँ नीच हरकते करने की सोचता है। अजामिल को मन की सीख जंच गई। अब शाम हो चली थी समय था कि अजामिल आश्रम से निकल रहा था, थोड़ी ही देर में वह ऐसे मोड़ पर पहुंच गया जहां से एक रास्ता नगर के भीतर जाता था और एक मार्ग नगर के बाहर जिससे वह सदा से जा रहा था।

अजामिल का दिल जोरों से धक- धक करने लगा परन्तु इस धड़कन में उसके आत्मा की आवाज कहीं दब गई और वह नगर के भीतर जाती सड़क पर बढ़ चला। आज अजामिल कदमो के नीचे सड़क की धूल नही बल्कि गुरु आज्ञा के सुंदर पुष्पों को कुचलता हुआ चल रहा था। उसके ये बढ़ते कदम उसे ले गए उन गलियो में जिन्हें बदनाम गलियां कहा जाता है। शाम तेजी से गहराती जा रही थी चौड़े बाज़ार की चौड़ी गलियो की ऊंची-ऊंची हवेलियां बिजली की चकाचौंध से जगमगाने लगी थी। हर हवेली दुल्हन की तरह सजी थी।

अजामिल के लिए इस नई सी दुनिया के नए से लोगों की उनकी तरफ उठते नई सी नज़रो ने उन्हें नई सी अनुभूति दी।अजामिल ने चारों ओर देखा तो हर तरफ रूप सी सुंदरियों की जैसे फसल लहरा रही थी। मोम जैसे अग्नि की ताप लगते ही अपना रूप खोकर पिघलने लगता है वैसे ही अजामिल का इतने वर्षों का तप उस अजीब से ताप से पिघलना सा जाने लगा। भय, संकोच, नासमझी के मिले-जुले भावो को लिए दबे दबे कदमो से अजामिल आगे बढ़ते गया और इस बाज़ार से बाहर निकल आया फिर तेज़ कदमो से चलकर वह अपने घर पहुंच गया परन्तु आज घर तो केवल अजामिल का तन पहुंचा था मन से तो वह अब भी उन्ही ऊंची-ऊंची हवेलियों के सामने घूम रहा था। वह सीधा अपने बिस्तर की ओर बढ़ गया परन्तु नींद तो जैसे उसके आंखों के लिए आज बनी ही नही थी। रह-रहकर उसे हर वह सुंदर चेहरा याद आ रहा था जो उसने देखा था। नही… जो उसके दिल मे छप गया था कैसी हालत कर दी थी उस माया नगरी की एक सैर ने उसकी यूंही पूरी रात अजामिल ने खुली आँखों से स्वप्न देखने मे बिता दी। सुबह सूरज ने आलस्य का दामन छोड़ अपनी निद्रा का त्याग किया उसीके साथ हर प्राणी भी नवीन ऊर्जा से भर अपने-अपने कार्यो में सलंग्न हो गया लेकिन अजामिल ही था जो रात भर जगी थकी आंखों से थके से शरीर के साथ बिस्तर का त्याग कर रहा था।

अब आश्रम जाने का समय हो गया था अजामिल को भय सा लग रहा था मैंने तो गुरुदेव की आज्ञा की अवहेलना कर दी है अब किस मुँह से मै उनके सामने जाऊंगा। वे तो अन्तर्यामी है सब जानते है कुछ छुपा भी तो नही पाऊंगा उसकी आत्मा उसे असलियत का आईना दिखा रही थी लेकिन मन फिर गरज बरसकर अजामिल को समझाने लगा ओ हो अजामिल! तू भी न बस शेर अभी आया नही कि बचाओ-बचाओ का शोर तू पहले ही करने लग गया। अरे पगले! तू आश्रम तो जा जो होगा सो देखा जाएगा तूने भला कोई पाप थोडे न किया है इस उम्र में तो ऐसी गलियो में सभी टहला करते है तूने प्रकृति से अलग भला क्या किया? थोड़ा बहुत तो चलता ही है इसलिए छोड़ अपनी फालतू की बाते और अपने नित्य क्रम में लग जा।

अजामिल ने गुरुदेव से पहले स्वयं अपने आप को क्षमा कर लिया खैर स्नान कर अजामिल आश्रम की तरफ बढ़ा मन भले कितना ही हौसला दे रहा था लेकिन उसकी आत्मा बार बार घूर- घूरकर उसे उसकी भूल का एहसास करा रही थी मन और आत्मा की चक्की में पिसते हुए अजामिल ने आश्रम की दहलीज में कदम रखा ठीक सामने गुरुदेव आसन पर विराजमान थे उनकी दृष्टि पड़ते ही जहाँ अजामिल का रोम-रोम हर्षित हो जाय करता था आज उसकी रूह कांप गई उसकी नज़रे गुरुदेव का सामना नही कर पाई और जमीन पर जा गड़ी तभी गुरुदेव की प्रेम भरी वाणी उसके कानों में पड़ी- वत्स! अजामिल तुम आ गए आओ बैठो अपना आसन ग्रहण करो ताकि आगे के पाठ का आरम्भ करें।

अजामिल धीरे-धीरे आगे बढ़ा और नीची आंखे किये हुए ही आसन पर बैठ गया उसका दिल पूरे समय धक- धक करता रहा कि कहीं गुरुदेव कल के बारे में पूछ न ले पूरी कक्षा बीत गई गुरुदेव ने कोई प्रश्न नही किया वे तो रोजाना ही की तरह सामान्य थे यह देख अजामिल का मन फिर बलवान हो उठा देखा नाहक ही व्याकुल हो रहा था। सुबह से शाम हो चली है और गुरुदेव ने कुछ नही कहा मतलब की तू कुछ गलत कर ही नही रहा, समझा न पगला कहीं का। कक्षा समाप्त होने के बाद अजामिल ने गुरुदेव को प्रणाम किया और वापस घर जाने के लिए चलने लगा तो पीछे से गुरुदेव का कुछ स्वर उभरा- अजामिल! देखो तुम्हारी पादुका में कीचड़ लगा हुआ है लगता है कहीं कीचड़ में पैर रख गया होगा वत्स तनिक ध्यान से पथ का चयन किया करो। क्या रहस्य भरी गुरुदेव के इन वचनों को अजामिल समझ पायेगा या नही। इन शब्दों में गहरा अर्थ छुपा था गुरुदेव की अन्तर्यामीयता उनका स्नेह, उनका मार्गदर्शन, उनकी चेतावनी क्या कुछ नही थी गुरुदेव की इन थोड़ी सी पंक्तियों में परन्तु मूर्ख अजामिल समझ नही पाया। उसको लगा कि गुरुदेव कल के पूरे प्रकरण से अनभिज्ञ है वे तो बस पादुका के बारे में नसीहत दे रहे है उसका मैं ध्यान रखूंगा।यही भूल हम सब शिष्य कर बैठते है गुरुदेव प्रकृति के नियमो में बंधे होने के कारण साफ शब्दों में प्रकट नही करते कि उनकी दिव्य नज़रे हरपल अपने हर शिष्य का पीछा करते हैं वे प्रकृति के नियम को खंडित नही करना चाहते । परन्तु अन्तर्यामी गुरुदेव सब कुछ जानते है। वे जानते है हमारी हर त्रुटि को, हमारी हर खामी को लेकिन उसे प्रकट कर हमे शर्मिंदा करना उनका मकसद नही वे तो बस हमे सुधारना चाहते है इसके लिए वे हर सम्भव प्रयास करते है हर पल हमारा मार्गदर्शन करते है ढंके छुपे शब्दो मे हमे आगाह करते है परन्तु शायद हम इन संकेतों को समझ नही पाते।

यही भूल अजामिल से भी हुई वह गुरुदेव के शब्दों के मर्म को समझ नही पाया चलते-चलते अजामिल फिर उसी पड़ाव पर जा पहुंचा। जहां से एक रास्ता कल वाला था या यू कह लो कि काल वाला था और एक रास्ता बाहर से घर की तरफ जाता था। आज अजामिल ने बिना किसी कश्मकश से कल वाला रास्ता घर जाने के लिए चुन लिया आज तो उसने आत्मा की आवाज को उठने तक का समय नही दिया, कदमो में भी अगर- अगर की कोई लड़खड़ाहट न थी तेजी से बढ़ते कदम उसे जल्द ही बाज़ार के बीच ले आये फिर वही रंगीन जगत ऊंची-ऊंची सुंदर हवेलियां उन हवेलियों की खिड़कियों से झांकती संगमरमर सी तराशी कामनिया उनकी अदाएं और हाव-भाव चारो तरफ से अजामिल को अपनी ओर खींच रही थी तभी अचानक पिछे से उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा और कहा- क्यों देव! यू ही बस दूर-दूर से देखते रहोगे या हमारे गरीब खाने में हमें सेवा का अवसर भी दोगे।

अजामिल ने पलटकर देखा तो वहीं पत्थर सा हो गया क्योंकि उसके सामने जैसे स्वर्ग की कोई अप्सरा खड़ी थी उसे देख अजामिल अजामिल न रहा उसके वर्षो का तप उस गणिका के सौंदर्य की तपिश से मोम की तरह पिघलने लगा कुछ क्षण वहां ठहरकर गणिका मुस्कुराकर आगे बढ़ गई लेकिन दूर जाती गणिका मानो अजामिल का सारा सुख चैन लूटकर अपने साथ ले गई।

घर जाकर अजामिल की स्थिति गुजरी रात से भी बद्दतर हो गई। पिछली रात वह बिस्तर पर लेट तो गया था लेकिन आज तो उसकी पूरी रात बिस्तर पर बैठे-बैठे ही गुजर गई। सुबह हुई तो उसकी लाल सुर्ख आंखों ने जैसे शोर मचा दिया कि अजामिल पूरी रात सोया नही। पिता ने कारण पूछा तो उसने बहाना बनाकर टाल दिया परन्तु अब आश्रम न जाने का क्या बहाना बनाये उसे यह नही सूझ रहा था। मदिरा सेवन करने के बाद जैसे दूध पीने की इच्छा नही रहती वैसे ही उस गणिकापूरी की सैर के बाद अजामिल का मन आश्रम जाने का नही हो रहा था।यह उसकी जिंदगी का पहला ऐसा मनहूस दिन था जब उसे आश्रम जाना कांटे जैसा प्रतीत हो रहा था लेकिन घर मे क्या कहता सो उसे जाना ही पड़ा किंतु आश्रम की तरफ बढ़ते हुए उसके कदमो में न कोई उत्साह था और न ही उमंग,भीतर एक मायूसी छाई थी शायद उसका कुछ खो गया था परंतु क्या? यही सोचते विचारते कब वह आश्रम पहुंच गया उसे पता ही न लगा। आसन पर गुरुदेव विराजमान थे गम्भीर और एकदम मौन। अजामिल को लगा शायद गुरुदेव अपने अन्तर्यामी स्वरूप से मेरे कृत्य के बारे में जान चुके है तभी नाराज लग रहे है मुझे जल्द ही गुरुदेव से क्षमा मांग लेनी चाहिए लेकिन मन ने फिर पासा फेंका अरे ऐसा करेगा तो सबके सामने बेइज्जत हो जाएगा फिर दुबारा आश्रम में कदम कैसे रखेगा। सभी गुरुभाई तुझे हीन दृष्टि से देखेंगे और यह भी तो हो सकता है कि गुरुदेव किसी और विषय को लेकर गम्भीर हों और तू जबर्दस्ती ही आ बैल मुझे मार वाली बात कर रहा है।पहले जरा पूछ तो ले गुरुदेव ऐसे मौन और गम्भीर क्यों है?….

आगे की कहानी कल की पोस्ट में दी जाएगी…….

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