अजामिल का पतन (भाग-2)….

अजामिल का पतन (भाग-2)….


कल हमने सुना कि गुरुदेव ने अजामिल को आज्ञा दी कि तुम्हे घर से आश्रम तक आने के लिए हमेशा बाहरी रास्ते का ही प्रयोग करना है नगर के भीतर का मार्ग का प्रयोग कभी मत करना। वर्ष बीत गए अजामिल बड़ा हो चला। एकदिन नगर के बाहर कुछ युवाओं ने अजामिल की मस्करी उड़ाई। अजामिल सोचता है क्यों न एकबार नगर के भीतर जाकर देख ही लूँ कि आखिर है क्या? तभी अजामिल के शुद्ध अंतःकरण ने उसे फटकार लगाई अजामिल यह फटकार सुनकर अंदर तक कांप गया उसे लगा कि जैसे वह अंधकूप में गिरते-गिरते बच गया वह तुरन्त ध्यान में बैठ गया ध्यान में ही कब नींद आई और कब सुबह हुई उसे पता ही न चला।

नित्य क्रिया से निर्वृत्त हो अजामिल आश्रम पहुंचा मन जो थोड़ा बहुत अब भी व्यथित था उसे सुकून मिला और गुरु आज्ञा में चलने का संकल्प उसने और दृढ़ किया शाम ढलने पर जब वह घर वापस जाने लगा तो उसने उस नगर के मार्ग की तरफ देखा तक नही इसीप्रकार दो तीन दिन बीत गए लेकिन तीसरे दिन अजामिल जब अपने रास्ते पर मुड़ने ही वाला था कि फिर वही नवयुवक उसे मिल गए इस बार तो उनमें से एक उसके पड़ोस जान पहचान वाला लड़का भी था।। उस पड़ोसी लड़के ने कहा- अरे अजामिल! घर जा रहा है क्या? अजामिल को पहचान की लिहाज रखते हुए रुकना पड़ा। उस पड़ोसी लड़के ने कहा- अरे यार दिन भर की सेवा से थक गया होगा चल तुझे दूसरी दुनिया की सैर करवा दें।

अजामिल ने कहा- दूसरी दुनिया? हां दूसरी दुनिया वहां केवल आनंद ही आनंद है मस्ती ही मस्ती है। ऐसा नहीं कि अजामिल को कुछ भी समझ नही आ रहा था उसे पता था कि कुछ न कुछ तो मायावी होगा ही। उसके मन मे तो यह दुविधा चल रही थी कि क्या ये मायावी लोग इतने प्रसन्न रहते हैं। इतने में ही उसके कंधे पर एक हाथ आया। देख अजामिल यही दिन है बहारों के, गन्ने के रस का आनंद दांत निकल जाने पर जैसे नही लिया जा सकता वैसे ही जो दिन कामनियो के संग रमन करने के हों उन्हें यूँ यज्ञ समिधाओं में खाक मत कर। इतना कहकर वे नवयुवक चलते बने। लेकिन अजामिल वहीं जड़ हो गया सोचने लगा अकारण ही वहां आकर्षण नही हो सकता, नगर के भीतर कुछ अलग तो जरूर है इसी तरह अजामिल फिर खोया- खोया सा घर पहुंचा। उस अनजान सड़क के अनजान लोगों के प्रति यह अनजान सा आकर्षण वह स्वयं भी समझ नही पा रहा था। रात फिर बीत गई और अजामिल फिर आश्रम समय से पहुंचकर सेवा रत हो गया। लेकिन केवल तन से मन से नही, मन तो द्वंद में था।

शाम को घर वापसी पर वे नवयुवक फिर से तो नही मिले लेकिन वह नगर की भीतरी सड़क अजामिल के आगे मानो पुकार करने लगी मानो अजामिल को नगर में प्रवेश करने का वह सड़क निमंत्रण दे रही हो। अजामिल का मन उसकी आत्मा पर हावी होने लगा बोला अरे एक बार देखने से कौन सा पहाड़ टूट रहा है मैने कौन सा वहीं पर अपना बसेरा करना है। आखिर देखूँ तो सही कि गुरुदेव मना क्यों करते हैं। फिर तो जीवन भर इस मार्ग की तरफ मुँह उठाकर देखूंगा भी नही। बेचारा अजामिल नही समझ पा रहा था कि गुरु आज्ञा की अवहेलना का यह पहला कदम ही तो होता है जो नही उठा तो नही उठा लेकिन एकबार उठ गया तो उसे एक से अनेक में दोहराने में समय नही लगता। हर शराबी पहली घूंट यही सोचकर पीता है कि मैंने कौन सी रोज पीनी है लेकिन समय के साथ वह एक पहली घूंट उसकी पूरी जिंदगी को सागर की तरह डुबो देती है परंतु अजामिल आज उस पहली घूंट को पीना चाहता था।

एक साधक के भटकते मन को इससे सुंदर उदाहरण विरला ही देखने को मिलता है। अजामिल के मन मे उठते इस झंझावात को थामने का ऐसा नही कि प्रयास नही हुआ उसकी आत्मा ने उसे फिर समझाया अजामिल पहाड़ की चोटी से नीचे खाई में गिरने के लिए एक फिसलन ही काफी होती है, अंधा करने के लिए एक कण ही काफी है। गुरुआज्ञा पलको के वे पर्दे है जिनमे रहकर इन कणों से बचा जा सकता है।

अजामिल आत्मा की सब सीख सुन रहा था इसलिए एकबार फिर वह बाहरी रास्ते से ही घर पहुंच गया। कश्मकश में उलझा हुआ सो गया सुबह उठा तो मन मे यह विचार भी तरोताज़ा होकर उसके साथ ही उठा क्यों न आज आश्रम से वापस आते समय एक फेरी लगा ही ली जाय मैं अकारण ही डर रहा हूँ। अरे मैं कौन सा दूध पीता बालक हूँ जो कोई भी मुझे बहला फुसला लेगा। सो अजामिल आज पूरी तैयारी करके घर से निकला कि शाम को तो पक्का नगर के भीतरी रास्ते मे जाऊंगा। लेकिन जब आश्रम आया गुरुदेव के पावन चरणों मे प्रणाम किया तो उनसे निकलती पावन तरंगों ने एक बार फिर उसे चेताया नही अजामिल गुरु की आज्ञा की अवहेलना हरगिज़ उचित नही। अगर यह विकार तुझ पर हावी हो रहा है तो तुरन्त गुरुदेव के सामने बैठकर उसे कबूल कर ले गुरुदेव स्वयं ही कुछ करके तुझे सम्भाल लेंगे।

एकबार उनके सामने अपने मन की दुविधा रख तो सही। निःसन्देह यह अन्तर्यामी गुरुदेव की मौन भाषा मे अन्तरहृदय से उसके शुद्ध अंतःकरण से सीख मिली। लेकिन अजामिल का मन सब बिगड़ता देख तत्काल बीच मे कूद पड़ा अरे मूर्ख हो गया है क्या? अपना चिट्ठा खोल देगा तो खुद ही गुरुदेव के नज़रो में छोटा हो जाएगा गिर जाएगा सोच वे क्या सोचेंगे तेरे बारे में कि तू इतना बड़ा विद्वान होकर भी यूँ नीच हरकते करने की सोचता है मेरी मान बस चुप रह आज शाम तक की ही तो बात है एकबार देख ही लेते है कि क्या है नगर के भीतर? वरना गुरुदेव को बताने पर हो सकता है कि वे कोई ऐसा कड़ा प्रतिबंध लगा दे कि लेने के देने पड़ जाएं कुछ किया भी नही और खामखाह कलंक माथे ले बैठेंगे।

अजामिल ठिठक गया उसे अपने मन की सीख जंच गई और गुरुदेव के समाने होते हुए भी उसने उनसे कोई बात नही की हालांकि आज गुरुदेव ने जान बूझकर उसे दिन भर ऐसे कई मौक़े दिए जब वह और गुरुदेव अकेले थे अब शाम हो चली समय था कि अजामिल आश्रम से निकल रहा था।

आगे की कहानी जानने के लिए कल की पोस्ट अवश्य पढ़ें…..

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