आपने हमारे आशारामजी बापू को दोषी कैसे कहा ?

आपने हमारे आशारामजी बापू को दोषी कैसे कहा ?


महामंडलेश्वर आचार्य श्री सुनील शास्त्री जी महाराज

हमारे हृदय में विराजमान नारायणस्वरूप आशाराम बापू जी के चरणों में कोटि-कोटि वंदन ! मैं आज संत के रूप में नहीं लेकिन भारत माता का एक पुत्र और एक नागरिक होने के नाते पूर्णतः बिके हुए कुछ लोगों से सवाल करना चाहूँगा कि जब संविधान हमें कहता है कि जब तक दोष साबित न हो जाये तब तक उसे दोषी न माना जायेगा तो आपने हमारे आशारामजी बापू को दोषी कैसे कहा ? यह भारत के संविधान की अवमानना है। 6 करोड़ अनुयायियों के दिलों में तलवार घोंपना – क्या यह भारत के संविधान की हत्या नहीं है ? इन हत्यारों की माता भई इनको पैदा करके अपनी कोख पर शर्माती होगी कि मैंने कैसे पुत्र को जन्म दिया !

और दूसरी बात, दिल्ली में एफ आई आर हुई और आयी जोधपुर में। लेकिन जोधपुर पुलिस के बहुत बड़े अधिकारी, जिन्होंने संविधान की शपथ ली है, उन्होंने प्रेसवार्ता में कहा कि “लड़की की एफ आई आर एवं उसकी मेडिकल जाँच रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि नहीं होती है। इसलिए बापू को बलात्कार की धारा से मुक्त किया जाता है।” लेकिन 6 घंटे के अंदर वह संविधान की कसम खाने वाला अधिकारी पलटता क्यों है ?

जगदगुरु जयेन्द्र सरस्वती पर भी आपने आरोप लगाया, सर्वोच्च न्यायालय में वे निर्दोष साबित हुए। क्यों नहीं मीडिया ने दिखाया ? आज तक आपने माफी क्यों नहीं माँगी ? और हमारे संत समाज का बहुत बड़ा संघ है। ये ‘शांति-शांति-शांति….’ कहते हैं इसलिए इनको इतना ‘शांत’ मत समझो, ‘क्रान्ति…. क्रान्ति….!’ मैंने 2008 में भी कहा था कि बापू निष्कलंक हैं, निर्दोष हैं, बापू जी भारत माता के सच्चे सपूत और संत समाज के शिरोमणि हैं।

ये ‘रेप केस, रेप केस….’ सुनते-सुनते मेरा कान पीड़ित हो गया है। मैं पूछना चाहता हूँ कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 25,26 ‘धर्म स्वतन्त्रता का अधिकार’ के अंतर्गत कि आज कुछ नेता लोग अनर्गल बात कर रहे हैं लेकिन उनी पार्टी के कितने लोगों पर पहले मुकद्दमे चल रहे हैं, उनको वे  क्यों नहीं फाँसी पर चढ़ा रहे हैं ! उस व्यक्ति को पहले फाँसी पर क्यों नहीं चढ़ा रहे हो जो संविधान  की कसम खा कर उसकी अवमानना कर रहा है ? लेकिन हमको बेचारा मत समझो। औरर ‘बलात्कार-बलात्कार…’ जैसे दोषारोपण मीडिया बापू जी पर किसलिए करती है ? हमें एक बहुत बड़े चैनल के अध्यक्ष ने कहा कि यह सब टीआरपी का खेल है। इनके पेट की नाभि क्या है ? टीआरपी। और देश के कुछ बिके हुए गद्दार करोड़ों रूपये देकर मीडिया को खरीदते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2013, पृष्ठ संख्या 15, अंक  250

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