झूठे मनगढ़ंत आरोप लगाने वाले महेन्द्र चावला की पोल उसके भाइयों ने ही खोल दी। उसके सगे भाइयों – श्री तिलक चावला, श्री देवेन्द्र चावला व श्री जितेन्द्र चावला से प्राप्त जानकारियाँ हैरान करने वाली हैं। उनका कहना था।
“महेन्द्र को 8वीं पास होने के बाद कुछ आदतें गलत हो गयी थीं। वह 9वीं व 10 वीं में फेल हो गया था। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के बावजूद हमने उसकी पढ़ाई के लिए पानीपत में अलग कमरे की व्यवस्था की। महेन्द्र चोरियाँ करता था। एक बार घर से 7 हजार रूपये लेकर भाग गया था। एक हफ्ते बाद वापस आने पर बोला कि ‘मेरा अपहरण हो गया था।’ बाद में उसने स्वीकार कर लिया था कि उसने झूठ बोल दिया था।
कुछ स्वार्थी असामाजिक तत्त्वों के बहकावे में आकर महेन्द्र कुछ-का-कुछ बकने लगा। इसे जरूर 10-15 लाख मिलें होंगे।
उसने यह भी बताया कि नारायण साँईं के बारे में उसने जो अनर्गल बातें बोली हैं, वे बिल्कुल झूठी व मनगढ़ंत हैं। हम साल में 2-3 बार अहमदाबाद आश्रम जाते हैं और लगातार महीनेभर भी वहाँ रह चुके हैं लेकिन कभी ऐसा कुछ नहीं देखा-सुना। अभी जो लड़की उसके साथ है (अविन वर्मा) वह पहले क्यों नहीं बोली ? उसी समय निकलकर बोलती कि हमारे साथ ऐसा-ऐसा हुआ है।
महेन्द्र इससे पहले कभी हमें कुछ क्यों नहीं बोला ? अभी एकदम क्यों ऐसा बोलना शुरु कर दिया ? वह सरासर झूठ बोल रहा है।”
श्री तिलक चावला ने यह भी बताया कि “महेन्द्र के खिलाफ एफ आई आर भी दर्ज हुई थी क्योंकि यह किसी से सामान लेकर आया था, उसके पैसे नहीं दिये थे, बड़ी मुश्किल से हम लोगों ने समझौता करवाया। एक बार तो महेन्द्र ने एक व्यक्ति की पीठ में स्टेपलर मार दिया, उसको पटक कर मारा, जिस कारण उसे टाँके भी लगे। लेकिन उन लोगों ने हमारी वजह से इसको छोड़ दिया।
आश्रमवाले क्यों किसी को मारने की धमकी देंगे ? महेन्द्र के साथ चार-पाँच लोगों की गैंग है। दूसरों की आवाज निकाल के ‘मैं नारायण साँईं बोल रहा हूँ, मैं फलाना बोल रहा हूँ…. मैं यह कर दूँगा, मैं वह कर दूँगा।’ ये सब लोग मिलकर पता नहीं क्या-क्या साजिश कर रहे हैं ! हमें तो यह डर है कि यह जिन लोगों के साथ मिला हुआ है वे इसे मरवा ही न दें ?”
चालबाज महेन्द्र चावला ने स्वयं लगाये हुए झूठे आरोपों की पोल खोलते हुए न्यायाधीश श्री डी. के. त्रिवेदी जाँच आयोग के समक्ष कहा था कि ‘मैंने अहमदाबाद आश्रम में कोई तंत्रविद्या होते हुए देखा नहीं।” उसने यह भी स्वीकारा कि “यह बात सत्य है कि कम्पयूटर द्वारा किसी भी नाम का, किसी भी प्रकार का, किसी भी संस्था का तथा किसी भी साइज का लेटर हेड तैयार हो सकता है। बनावटी हस्ताक्षर किये गये हों, ऐसा मैं जानता हूँ।”
अब ये महेन्द्र चावला और अमृत वैद्य मीडिया में आकर चरित्रहनन आदि के मनगढ़ंत आरोप लगा रहे हैं। इनकी वास्तविकता जानने के बाद अब पाठक स्वयं ही निर्णय करें ऐसे लोगों से किसी प्रकार के सच की उम्मीद क्या की जा सकती है ?
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2013, पृष्ठ संख्या 9, अंक 250
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