(8 जुलाई से 4 नवम्बर 2014)
पूज्य बापू जी
चतुर्मास में भगवान नारायण शेषशैया पर योगनिद्रा में विश्रांतियोग करते हैं। इन दिनों में मकान-दुकान बनाना, शादी-विवाह और सकाम मांगलिक कार्य करना वर्जित है। चतुर्मास में पति-पत्नि का सांसारिक व्यवहार न करने का व्रत लें तो आपका बल, बुद्धि, ओज और तबीयत अच्छी रहेगी। ब्रह्मचर्य व संयम से आपकी कांति बढ़ेगी। चरित्र की साधना-सत्य बोलना, हिंसा से बचना, मन और वचन से नीच कर्मों का त्याग करना – इससे आपके चतुर्मास में साधन-भजन में खूब बढ़ोतरी होगी।
संकल्प लें कि मौन रखेंगे, जप करेंगे, ध्यान करेंगे, नीच कर्मों का त्याग करेंगे। छल-कपट, झूठ आदि जिससे भी अंतरात्मा की अधोगति हो, उससे बचेंगे और जिससे भी आत्मोन्नति हो वह करेंगे।
चतुर्मास में बेईमानी के कामों से बचें और क्षमा के सदगुण का विकास करें। इन्द्रियशक्ति बढ़ाने के लिए मन का संयम, कुसंग का त्याग करना और ॐकार की उपासना करके शांतमना होना। गुरुमूर्ति के सामने 15 से 25 मिनट रोज एकटक देखकर ॐ का दीर्घ गुंजन करना। इससे गुरुमूर्ति से गुरु प्रकट हो जायेंगे, बातचीत करेंगे, चाहोगे तो गुरुजी के साथ भगवान भी प्रगट हो जायेंगे।
हृदय को पवित्र करने के लिए परोपकार, दान, नम्रता, श्रद्धा, सर्वात्मभाव और भगवन्नाम सुमिरन है और मानसिक साधना है गीता का स्वाध्याय, रामायण का पाठ, सत्संग, आध्यात्मिक स्थान पर जाना आदि। गुरु से मानसिक वार्तालाप करने से, मानसिक जप करने से, श्वासोच्छवास के साथ जप और आत्मज्ञान का विचार करना। इन सरल साधनों से मन इतनी आसानी से पवित्र होता है कि और बड़ी-बड़ी तपस्याएँ भी इतनी तेजी से मन को पवित्र नहीं कर सकती हैं।
चतुर्मास में अपना दिल दिलबर की भक्ति से भरना यही मुख्य काम है। गाय की सेवा करना, उपयोग करना चतुर्मास में हितकारी है। सत्संग का आश्रय लेना, गुरु, देवता एवं अग्नि का का तर्पण करना तथा दीपदान आदि करना चाहिए। ‘स्कन्द पुराण’ में आता है कि ‘पुण्यात्माओं के लिए गोभक्ति, गोदान, गौसेवा हितकारी हैं, सत्पुरुषों की सेवा हितकारी है।’ चतुर्मास में पलाश की पत्तल में भोजन करना चान्द्रायण व्रत करने से बराबर है।
व्रत और उपवास अपने जीवन में छुपी हुई सुषुप्त शक्तियों को विकसित करते हैं। आरोग्य की साधना के लिए एक तो खानपान सात्त्विक और सुपाच्य हो, रजोतमोगुण वाले पदार्थों का त्याग हो, दूसरा व्रत उपवास, तीसरा आसन व प्राणायाम करे तो चतुर्मास की साधना का लाभ मिलेगा। प्राणशक्ति की साधना करनी हो तो श्वासोच्छवास की गिनती अथवा श्वास भीतर रोककर सवा या डेढ़ मिनट जप करे फिर बाहर रोक के 40-50 सैकेण्ड जप करे। इससे आपकी आरोग्य शक्ति, मानसिक शक्ति व बौद्धिक शक्ति विकसित होगी।
आध्यात्मिक साधना में आगे बढ़ना है तो सूर्योदय से दो घंटे पहले ब्रह्ममुहूर्त शुरु होता है तब उठो या फिर चाहे एक घंटा पहले उठो। उठने के समय भगवान का ध्यान करो कि ‘प्रातःकाल हम उस परमात्मा का ध्यान करते हैं जो अंतरात्मा में, आत्मा से स्फुरित होता है और मन, बुद्धि को चेतना देता है।’ सुबह नींद में से चटाक से मत उठो, पटाक से घड़ी मत देखो। नींद खुल गयी, आँख न खुले, थोड़ी देर पड़े रहो, ‘ॐ शांति….. प्रभु की गोद से बाहर आ रहा हूँ। मेरा मन बाहर आये उससे पहले मैं फिर से मनसहित प्रभु के चरणों में जा रहा हूँ, ॐ शांति, ॐ आनंद….’ ऐसा मन से दोहराओ। आपका हृदय बहुत पवित्र होगा। साधन बहुत सुंदर होगा। दिन में समय मिले तो कीर्तन करो। दैनंदिनी लिखो। जिससे गल्ती और पतन होता है उस बात को काटो और जिससे उन्नति होती है उधर ध्यान दो। इन्द्रियों को वश में करो, बुरी चीज को, बुरे कर्मों को करने से अपने को रोको। मन में दया, स्वभाव में मधुरता, वचनों में नम्रता-ये आपको जगत में प्रिय बना देंगे और यह संसार में जीने की कला है।
धर्म का पालन करें। ‘स्व’ है मेरा आत्मा-सच्चिदानंद, उसमें विश्रांति पायें और दूसरों के हित का काम करें। अपने धर्म के अनुरूप, अपने अधिकार के अनुरूप सेवा कर लें, झूठे झाँसे न आने दें और झूठी अपनी शेखी न बघारें। प्रसन्न रहें। नाक से लम्बा श्वास लें, भगवन्नाम जपें और मुँह से फूँक मारकर श्वास बाहर छोड़ दें, प्रसन्न रहने में सफल हो जाओगे।
भगवत्प्राप्ति जल्दी हो इसके लिए अध्यात्म-शास्त्रों का पठन और अध्यात्म चिन्तन करें, दुःख-सुख में सम रहें। दुःख आये तो ‘मैं दुःखी हूँ’ ऐसा न सोचें। ‘दुःख होता है मन को, बीमारी होती है शरीर को, चिंता होती है चित्त को, मैं तो भगवान का हूँ और भगवान मेरे हैं। ॐ…..ॐ…. इस प्रकार की समझ बढ़ायें।
जिसने चतुर्मास में कोई व्रत-नियम नहीं किया, मानो उसने हाथ में आया हुआ अमृत-कलश ढोलने की बेवकूफी की। जैसे किसान चतुर्मास में खेती से धन लाभ करता है, ऐसे ही आप इस चतुर्मास में भगवत्साधना करके आध्यात्मिक सुख, आध्यात्मिक ज्ञान व आध्यात्मिक सामर्थ्य का लाभ प्राप्त करो।
चतुर्मास में पुण्यदायी स्नान
एक बाल्टी में 2-3 बिल्वपत्र डालकर ‘ॐ नमः शिवाय’ जप करते हुए स्नान करें तो तीर्थों में स्नान करने का फल हो जाता है। इससे वायु प्रकोप दूर होता है, स्वास्थ्य की रक्षा होती है और आदमी दोषमुक्त, पापमुक्त होता है। थोड़े जौ और तिल मिक्सर से पीस के रख दें। इस मिश्रण से शरीर को रगड़कर स्नान करें तो यह पुण्यदायी स्नान माना जाता है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2014, पृष्ठ संख्या 14,15 अंक 258
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