साध्वी रेखा बहन
20 साल पहले दीवाली के दिनों में शिविर भरने मेरी बड़ी बहने उल्हासनगर से अहमदाबाद आ रही थीं तो मैं भी घूमने के बहाने आ गयी। आश्रम में बहुत भीड़ थी और मैंने पूज्य बापू जी को कभी प्रत्यक्ष नहीं देखा था। प्राणायाम, ॐकार का गुंजन आदि के लिए तो मुझे लगता था कि ये क्या करते हैं !
दीवाली का दूसरा दिन था। मैं नजदीक से दर्शन के लिए लाइन में लगी थी। मेरे हाथ में मावे (दूध का खोआ) का डिब्बा था, उस पर सिंधी में ‘जयशंकर’ लिखा हुआ था तो पूज्य बापू जी पढ़कर बोलेः “उल्हासनगर से आयी है न ? माला करती है ?”
“साँईं माला तो बूढ़े लोग करते हैं।”
“तो तुम…..?”
“जब बूढ़ी हो जाऊँगी, तब माला करूँगी।”
बापू जी मुस्कराये और बोलेः “अच्छा, जवान लोग मिठाई तो खाते हैं ?”
मैंने कहाः “हाँ, मिठाई तो खा लूँगी।”
फिर बापू जी ने कहाः “तुम माला (गुरुमंत्र की) नहीं कर सकती तो सारस्वत्य मंत्र तो ले सकती हो ?”
“बापू जी ! उससे क्या होगा ?”
“बुद्धि बढ़ेगी, अच्छे अंकों से पास होगी।”
“हाँ, यह मंत्र तो मैं ले सकती हूँ।”
बापू जी ने मुझे ऐसे करके सारस्वत्य मंत्र की महिमा बतायी। अगले दिन मैंने सारस्वत्य मंत्र लिया। मंत्रदीक्षा के बाद बापू जी पंडाल में सबको नजदीक से दर्शन दे रहे थे। मुझे माला करते हुए देखा तो बापू जी ने पूछाः “क्यों, माला तो बूढ़े लोग करते हैं न ?”
मैंने कहाः “यह तो सारस्वत्य मंत्र है।”
फिर बापू जी आगे चल दिये।
बाद में पता चलेगा….
बापू जी व्यासपीठ पर आकर बोलेः “जिन्होंने दीक्षा ली है, मंत्र लिया है वे आगे आ सकते हैं।”
परंतु मुझे लगी थी भूख, मैंने नाश्ता करने आश्रम के बाहर चली गयी। मैं उधर गयी और इधर बापू जी ने पुछवाया कि ‘वह उल्हासनगर वाली बच्ची कहाँ गयी ?”
मैं स्टॉल पर पहुँची थी। वहाँ 3 बड़े-बड़े पाव खाये और चाय पीकर आयी, फिर लाइन में लगी। जब मैं बापू जी के सामने आयी तो बापू जी ने यही पूछाः “सच बता, तू कहाँ गयी थी ?”
“मैं बाहर नाश्ता करने गयी थी।” तब यह समझ नहीं थी कि यह गलत बात है।
“क्या खाया ?”
“3 बड़े-बड़े पाव खाये।”
“पच गया ?”
“जी, घऱ में तो 4-4 खाते हैं और ऊपर से लस्सी भी पीते हैं। कुछ नहीं होता।”
“अभी कुछ नहीं होगा, बाद में पता चलेगा।”
उस समय मुझे पूज्य बापू जी की बात समझ में नहीं आयी थी। कुछ वर्षों बाद जब मुझे हृदय की तकलीफ हुई, तब मुझे बापू जी की बात याद आयी।
बापू जी ने ज्ञान पाने का लक्ष्य दिया
फिर बापू जी ने पूछाः “तुम आश्रम में खाना क्यों नहीं खाती हो ?”
मैंने कहाः “बापू जी ! हमें होटलों में खाने की आदत है।”
“फिर ऐसे ही तुम रोज बाहर खाओगी ?”
“कल तो हम वैसे ही चले जायेंगे।”
“पर अब तुम बाहर नहीं खाना। तुम मैया (पूज्य बापू जी की धर्मपत्नी पूजनीया लक्ष्मी माता जी) के पास जाना, वे तुमको पापड़ वगैरह कुछ दे देंगी। उससे खा लोगी ?”
“पापड़ के साथ मैं खाना खा सकती हूँ।”
अगले दिन मैंने मैया जी के पास जाकर प्रणाम किया और बोलीः “पूज्य बापू जी ने आपसे भोजन लेने के लिए कहा है और उसमें पापड़ जरूर दीजियेगा।” मैया जी ने मुस्कराते हुए पापड़ सिंकवाकर मुझे दिये।
ऐसी ऐसी आदतों की मैं अधीन थी और माला बड़े बुजुर्ग करते हैं ऐसी समझ मेरे दिमाग में थी पर बापू जी की कैसी कृपा…. मैं कितना प्रणाम करूँ, कितना वंदन करूँ कि बुरी आदतें कब छूट गयीं यह तो पता भी नहीं चला, साथ ही बापू जी ने हमें आत्मज्ञान पाने के लक्ष्य दे दिया और उस मार्ग पर चला भी रहे हैं।
अल्पायु बदली दीर्घायु में
मैं जब 8 साल की थी तब मुझे हृदयरोग हुआ था तो पिता जी ने आपरेशन करवा दिया। डाक्टरों ने कह दिया था कि यह बच्ची 13 से 15 साल और जीवित रहेगी। डॉक्टरों के अनुसार मेरी उम्र केवल 23 साल थी लेकिन मैं 21 साल की उम्र में आश्रम आ गयी तो यहाँ के सात्विक वातावरण, खानपान, मंत्रजप व प्राणायाम तथा बापू जी की करूणा-कृपा से मैं आज 40 साल की उम्र होने पर भी जीवित हूँ और स्वस्थ हूँ।
गाँठ छूट जायेगी
6-7 साल पहले मैं बहुत बीमार पड़ गयी थी। डॉक्टर के कहने पर इकोकार्डियोग्राफी करवायी। रिपोर्ट देखकर डॉक्टरों ने मुझसे कहा कि “आप इसी समय भर्ती हो जाइये। आपके हृदय में रक्त की एक गाँठ बन चुकी है, ऑपरेशन करना होगा।। नहीं तो वह गाँठ कभी भी छूट जायेगी और सिर, कंधे, घुटने आदि कहीं भी फंस जायेगी तो आपका बचना असम्भव हो जायेगा।” मैं थोड़ी चिन्ता में पड़ गयी। फिर दूसरे ही क्षण मन से आवाज आयी कि 4 दिन बाद पूर्णिमा पर बापू जी अहमदाबाद आऩे वाले हैं। गुरुदेव की जैसी आज्ञा होगी वैसा करूँगी। पूर्णिमा पर पूज्य बापू जी पधारे। दोपहर के सत्संग के बाद बापू जी के समक्ष जाकर प्रणाम किया तो बापू जी ने मुझसे पूछाः “क्या है ?”
तो मेरी आँखों से आँसू आ गये। पूज्य श्री ने सिंधी भाषा में पूछाः “रो क्यों रही हो ?”
मैंने सारी बात बता दी। बापू जी मुस्कराते हुए बोलेः “क्या होगा ?” मैंने कहाः “बापू जी ! वे बोल रहे हैं की गाँठ छूट जायेगी।”
बापू जी बोलेः “कोई गाँठ है ही नहीं तो छूटेगी क्या ?”
सत्संग के दूसरे सत्र में बापू जी मुझे धर्मराज का मंत्र दिया और बोलेः “इसका जप करो, कुछ नहीं होगा। तुम्हें हृदयरोग है तो तुम ‘आदित्यहृदयस्तोत्र’ का पाठ किया करो।”
मैंने गुरु आज्ञा मानी और उस दिन से आज तक कभी मुझे डॉक्टर के पास नहीं जाना पड़ा।
धर्मराज छू नहीं सकता
वर्ष 2011 में महाशिवरात्रि पर नासिक में बापू जी का सत्संग था। बापू जी मंच पर घूमते हुए दर्शन दे रहे थे। बापू जी ने मुझे आगे बुलाया और कहाः “सबको अपना अनुभव बताओ।”
मैंने अनुभव बताया। फिर नासिक के भरे पंडाल में बापू जी ने एक हाथ मेरे सिर पर और दूसरा हाथ अपनी मूँछों पर रख के कहाः “मैं वचन देता हूँ, जब तक मैं नहीं कहूँगा तब तक रेखा को धर्मराज छू नहीं सकते ! जब मैं आज्ञा दूँगा ये तभी जायेगी।”
यह कैसी गुरुकृपा है ! मैंने तो ब्रह्मज्ञानी गुरुदेव की थोड़ी सी आज्ञा मानी और पूज्य बापू जी ने तो मेरी अल्पायु को दीर्घायु कर दिया, संसार में भटकने वाले जीव को परमात्मज्ञान का रस चखाकर परमात्मप्राप्ति की तरफ मोड़ दिया।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2015, पृष्ठ संख्या 6,7 अंक 265
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