राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत भारतीय कालगणना

राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत भारतीय कालगणना


चैत्री नूतन वर्ष वि.सं. 2072 प्रारम्भः 21 मार्च
विक्रम संवत् भारतीय शौर्य, पराक्रम और अस्मिता का प्रतीक है। चैत्री नूतन वर्ष आने से पहले ही वृक्ष पल्लवित-पुष्पित, फलित होकर भूमंडल को सुसज्जित करने लगते हैं। यह बदलाव हमें नवीन परिवर्तन का आभास देने लगता है।
भारतीय कालगणना का महत्त्व
ग्रेगेरियन (अंग्रेजी) कैलेंडर की कालगणना मात्र दो हजार वर्षों के अति अल्प समय को दर्शाती है जबकि भारतीय कालगणना अति प्राचीन है। संवत्सर का उल्लेख ब्रह्माण्ड के सबसे प्राचीन ग्रन्थों में से एक यजुर्वेद के 27वें व 30वें अध्याय के मंत्र 45 व 15 में किया गया है।
भारतीय कालगणना मन-कल्पित नहीं है, यह खगोल सिद्धान्त व ब्रह्माण्ड के ग्रहों-नक्षत्रों की गति पर आधारित है। आकाश में ग्रहों की स्थिति सूर्य से प्रारम्भ होकर क्रमशः बुध, शुक्र, चन्द्र, मंगल, गुरु और शनि की है। सप्ताह के सात दिनों का नामकरण भी इसी आधार पर किया गया। विक्रम संवत में नक्षत्रों, ऋतुओं, मासों व दिवसों आदि का निर्धारण पूरी तरह प्रकृति पर आधारित ऋषि-विज्ञान द्वारा किया गया है।
इस वैज्ञानिक आधार के कारण ही पाश्चात्य कालगणना के अनुसरण के बावजूद सांस्कृतिक पर्व-उत्सव, विवाह, मुण्डन आदि संस्कार एवं श्राद्ध, तर्पण आदि कर्मकाण्ड तथा महापुरुषों की जयंतियाँ व निर्वाण दिवस आदि आज भी भारतीय पंचांग-पद्धति के अनुसार ही मनाये जाते हैं।
विक्रम संवत् के स्मरणमात्र से राजा विक्रमादित्य और उनके विजय एवं स्वाभिमान की याद ताजा होती है, भारतीयों का सर गर्व से ऊँचा होता है जबकि अंग्रेजी नववर्ष का अपने देश की संस्कृति से कोई नाता नहीं है।
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा थाः “यदि हमे गौरव से जीने का भाव जगाना है, अपने अंतर्मन में राष्ट्रभक्ति के बीज को पल्लवित करना है तो राष्ट्रीय तिथियों का आश्रय लेना होगा। गुलाम बनाये रखने वाले परकीयों के दिनांकों पर आश्रित रहने वाला अपना आत्म-गौरव खो बैठता है।”
महात्मा गाँधी ने अपनी हरिजन पत्रिका में लिखा थाः “स्वराज्य का अर्थ है – स्व-संस्कृति, स्वधर्म एवं स्व-परम्पराओं का हृदय से निर्वहन करना। पराया धन और परायी परम्परा को अपनाने वाला व्यक्ति न ईमानदार होता है, न आस्थावान।”
पूज्य बापू जी कहते हैं- “आप भारतीय संस्कृति के अनुसार भगवदभक्ति के गीत से ‘चैत्री नूतन वर्ष’ मनायें। आप सब अपने बच्चों तथा आसपास के वातावरण को भारतीय संस्कृति में मजबूत रखें। यह भी एक प्रकार की देशसेवा होगी, मानवता की सेवा होगी।”
इस दिन सामूहिक भजन संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करें। भारतीय संस्कृति तथा गुरु ज्ञान से, महापुरुषों के ज्ञान से सभी का जीवन उन्नत हो। इस प्रकार एक दूसरे की बधाई संदेश देकर नववर्ष का स्वागत करें।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2015, पृष्ठ संख्या 10 अंक 267
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