यूरोप में विश्वविद्यालय का एक छात्र रेलगाड़ी में यात्रा कर रहा था। पास में बैठे एक बुजुर्ग व्यक्ति को माला से भगवत्स्मरण करते देख उसने कहाः महाशय ! इन पुराने रीति-रिवाजों को आप भी मानते हैं ?”
बुजुर्गः “हाँ, मानता हूँ। क्या तुम नहीं मानते ?”
छात्र हँसा और अभिमानपूर्वक बोलाः “मुझे इन वाहियात बातों पर बिल्कुल विश्वास नहीं। फेंक दो आप गोमुखी और माला को तथा इस विषय में विज्ञान क्या कहता है समझो।”
“विज्ञान ! मैं विज्ञान को नहीं समझता। शायद आप समझा सको मुझे।” आँखों में आँसू भरकर दीनतापूर्वक उस बुजुर्ग ने कहा।
“आप मुझे अपना पता दे दें। मैं इस विषय से संबंधित कुछ वैज्ञानिक साहित्य भेज दूँगा।”
बुजुर्ग ने अपना परिचय पत्र निकालकर उस छात्र को दिया। छात्र ने परिचय पत्र को सरसरी नजर से देख अपना सिर शर्म से झुका लिया। उस पर लिखा था – लुई पाश्चर, डायरेक्टर, वैज्ञानिक अनुसंधान, पेरिस’।
लुई पाश्चर फ्रांस के विश्वप्रसिद्ध सूक्ष्मजीव विज्ञानी तथा रसायनयज्ञ थे। विश्वभर में बड़े पैमाने पर उपयोग में लायी जाने वाली ‘पाश्चराइजेशन’ की विधि इन्होंने ही खोजी थी। साथ ही इन्होंने कई लाइलाज रोगों से बचाने वाले टीकों (वैक्सीन्स) की भी खोज की थी।
नोबल पुरस्कार विजेता आइंस्टीन ने भी भारत के ऋषियों द्वारा बतायी गयी साधना-पद्धति को अपनाकर विज्ञान के क्षेत्र में कई अनुसंधान किये। 2007 में नोबल शांति पुरस्कार जीतने वाली IPCC टीम के सदस्य व कई पुरस्कारों से सम्मानित अमित गर्ग, जो भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद (IIMA) में प्रोफेसर हैं, वे कहते हैं- “गुरुमंत्र के नियमित जप से मुझे आध्यात्मिक और सांसारिक हर क्षेत्र में अच्छी सफलता मिली। पूज्य गुरुदेव संत श्री आशाराम जी बापू के सत्संग से मुझे अपने मैनेजमेंट विषय तथा शोध के बारे में अंतर्दृष्टि और महत्त्वपूर्ण संकेत मिलते हैं, जिनका समुचित उपयोग मैं सफलतापूर्वक अपनी कक्षा में तथा अनुसंधान के कार्यों में करता हूँ।”
2014 में इंडियन कैमिकल्स सोसायटी की तरफ से युवा वैज्ञानिक पुरस्कार पाने वाले पूज्य बापू जी से दीक्षित अरविंद कुमार साहू कहते हैं-
“मंत्रजप से मेरी स्मरणशक्ति और बौद्धिक क्षमता में अद्भुत विकास हुआ। पूज्य गुरुदेव ने एक सत्संग कार्यक्रम में मुझे वैज्ञानिक बनने का आशीर्वाद दिया। गुरुदेव के सान्निध्य में आने व सेवा करने से मेरे जीवन में सदगुणों एवं ज्ञान का खूब-खूब विकास हुआ है।”
‘नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कॉरपोरेशन’ के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित युवा वैज्ञानिक एवं वैश्विक स्तर पर ख्यातिप्राप्त फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. राहुल कत्याल कहते हैं- “पूज्य बापू जी से प्राप्त सारस्वत्य मंत्रदीक्षा प्रतिभा-विकास की कुंजी है।”
कनाडा के ‘नासा’ वैज्ञानिक नोर्म बर्नेंस व ईरान के विख्यात फिजीशियन श्री बबाक अग्रानी भी पूज्य बापू जी के सान्निध्य में आध्यात्मिक अनुभूतियाँ पाकर गदगद हो उठे थे।
भौतिक सुख-सुविधाओं की उपलब्धि से सच्चा सुख, शांति नहीं मिल सकती है। आध्यात्मिक उन्नति से ही व्यक्तिगत जीवन का सम्पूर्ण विकास हो सकता है। सर्वांगीण उन्नति के लिए सत्संग, सद्भाव, संयम-सदाचार, सच्चाई आदि सदगुणों की आवश्यकता है। आध्यात्मिकता सभी सफलताओं की जननी है। आध्यात्मिक पथ पर चलने से सफलता के लिए आवश्यक सभी गुण जैसे – ईमानदारी, एकाग्रता, अनासक्ति, उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति, पराक्रम आदि सहज में मानव के स्वभाव में आ जाते हैं। जिन्होंने भी स्थायी सफलताएँ पायी हैं, उसका कारण उनके द्वारा आध्यात्मकिता में की गयी गहन यात्रा ही है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2015, पृष्ठ संख्या 23, अंक 268
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