सुकरात से उनके एक शिष्य ने विनम्रता से पूछाः “मूर्ख और बुद्धिमान की क्या पहचान है ?”
तत्वज्ञानी महात्मा सुकरात बोलेः “जो ठोकर खाने के बाद अपने अनुभव से भी लाभ न उठाये और ठोकरें ही खाता रहे वह है मूर्ख और जो दूसरों के अनुभवों व महापुरुषों की सीख से लाभ उठा के ठोकर खाने से पहले ही सँभल जाय तथा कर्तव्य को और अच्छे ढंग से सम्पन्न करे वह है बुद्धिमान।”
यदि सचमुच बुद्धिमान बनना है तो कर्तव्य क्या है यह भी समझना होगा। बापू जी के सत्संग में इसका रहस्योद्घाटन होता हैः “वास्तविक कर्तव्य है अपने ब्रह्मस्वरूप को जानना, मरणधर्मा शरीर में अमरत्व को जानना। हे मानव ! लौकिक कर्तव्य तो निभाओ परंतु इन कर्तव्यों को निभाते-निभाते अपने सुखस्वरूप का ज्ञान पाने का जो वास्तविक कर्तव्य है, उसके लिए भी प्रतिदिन अवश्य समय निकालो। चालू व्यवहार में ही बीच-बीच में यह विचार करो कि आखिर यह कब तक ? विषय विलास से वैराग्य हो और भगवद्-रस, भगवद्-ज्ञान, भगवद्-आनंद में रुचि हो जाय यही कर्म का वास्तविक फल है। यही वास्तविक कर्तव्य है।”
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2015, पृष्ठ संख्या 25, अंक 270
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