पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू अथक मेहनत करके देश को, देशवासियों को उन्नत करक रहे हैं। बापू जी सच्चाई से मानवता व संस्कृति की सेवा कर रहे हैं। यही कारण है कि बापू जी के विरूद्ध ईसाई मिशनरियाँ तथा विदेशी ताकतें मीडिया को मोहरा बनाकर षड्यंत्र करती रहती हैं। थोड़ा विस्तार से जानते हैं-
पूज्य बापू जी सबको मंत्र-चिकित्सा, ध्यान, प्राणायाम, सादा रहन-सहन, स्वदेशी वस्तुएँ एवं स्वदेशी आयुर्वेदिक चिकित्सा को अपनाने की सीख देते हैं, फूँकने-थूकने वाले ‘हैप्पी बर्थ-डे’ की जगह भारतीय पद्धति से जन्मदिवस मनाने की प्रेरणा देते हैं। इससे विदेशी कम्पनियों का प्रतिवर्ष कई हजार करोड़ का नुकसान हो रहा है।
बापू जी के सत्संग से लोगों में सनातन धर्म व भारतीय संस्कृति के प्रति आस्था बढ़ने से देशविरोधी तत्त्वों को तकलीफ होती है।
बापू जी धर्मांतरण वालों के लिए भारी रुकावट हैं इसलिए वे लोग सत्ता की सहायता से बापू जी और हिन्दू संतों को हर प्रकार से झूठे इल्जामों में फँसा रहे हैं। बापू जी आदिवासियों में अन्न, वस्त्र, बर्तन, गर्म भोजन के डिब्बे, कम्बल, दवाएँ, तेल आदि जीवनोपयोगी सामग्रियाँ बाँटते रहे हैं। इससे धर्मांतरण करने वालों का बोरिया-बिस्तर बँध जाता है।
कई मीडिया वाले पैसों के लिए तो कई टी.आर.पी. बढ़ाने के लिए कुछ-का-कुछ दिखाते रहते हैं।
बापू जी की प्रेरणा से चल रहे ‘युवाधन सुरक्षा अभियान’ तथा गुरुकुलों व बाल संस्कार केन्द्रों के असाधारण प्रतिभासम्पन्न विद्यार्थियों द्वारा ओजस्वी-तेजस्वी भारत का निर्माण हो रहा है।
बापू जी के सत्संग एवं उनकी प्रेरणा से चल रहे ‘व्यसनमुक्ति अभियान’ से करोड़ों लोगों की शराब, सिगरेट, गुटका आदि व्यसन छूटते हैं। साथ ही लोग अश्लील सामग्रियों से भी बचते हैं। इससे विदेशी कम्पनियों का खरबों रूपये का नुकसान होता है।
इनके अलावा और भी कई कारण हैं जिनसे कभी ईसाई मिशनरियाँ, कभी विदेशी कम्पनियाँ तो कभी कोई और, मीडिया को मोहरा बनाकर हिन्दू संस्कृति व बापू जी जैसे संतों के विरुद्ध षड्यंत्र करते रहते हैं। – श्री. दैवमत्तु, सम्पादक, ‘हिन्दू वॉइस’ मासिक पत्रिका
हिन्दू धर्म को मिटाने के लिए खुला षड्यंत्र
– सूझ बूझ के धनी पं. श्रीराम शर्मा आचार्य, संस्थापक, अखिल विश्व गायत्री परिवार
“भारत में पादरियों का धर्म-प्रचार हिन्दू धर्म को मिटाने का खुला षड्यंत्र है, जो कि एक लम्बे अरसे से चला आ रहा है। हिन्दुओं का तो यह धार्मिक कर्तव्य है कि वे ईसाइयों के षड्यंत्र से आत्मरक्षा में अपना तन-मन-धन लगा दें और आज जो हिन्दुओं को लपेटती हुई ईसाइयत की लपट परोक्ष रूप से उनकी ओर बढ़ रही है, उसे यहीं पर बुझा दें। ऐसा करने से ही भारत में धर्मनिरपेक्षता, धार्मिक बंधुत्व तथा सच्चे लोकतंत्र की रक्षा हो सकेगी अन्यथा आजादी को पुनः खतरे की सम्भावना हो सकती है।” (संदर्भः ‘अखंड ज्योति’ पत्रिका, जनवरी 1967)
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2015, पृष्ठ संख्या 27, अंक 273
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