‘अमेरिकन इन्स्टीच्यूट ऑफ वैदिक स्टडीज़’ के निदेशक डेविड फ्रॉली हिन्दू धर्म की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं- “हिन्दू धर्म अथवा हिन्दुत्व न तो कोई धर्मस्थली (चर्च) है और न ही यह कोई कट्टरपंथी (रूढ़िवादी) मत या पंथ है। हिन्दुत्व एक ऐसी अवधारणा है, जिसमें सम्पूर्ण मानवमात्र का समावेश है और इससे केवल वे ही पृथक हैं जो स्वयं ही अपने को इससे वंचित रखना चाहते हैं। अपौरूषीय होने के कारण इसकी प्रत्येक शिक्षा स्वयं में अपनी गुणवत्ता पर ही आधारित है। यह पंथों, मतों व सम्प्रदायों की परिधि से परे है और यह किसी पर अपने-आपको थोपना नहीं चाहता है। इसमें भारत के अनेक महान तत्त्वदर्शियों, योगियों, मनीषियों व ऋषियों की विभिन्न शिक्षाओं, आध्यात्मिक चिंतनों, धार्मिक तत्त्वों व साधना-मार्गों के साथ-साथ अनेकों महान व यशस्वी शासकों एवं सामान्य जनता के त्याग-बलिदानों के उदाहरणों और अनुभवों का भी समावेश है। इसके अतिरिक्त यह सनातन धर्म पर आधारित है, जिसकी यह मान्यता है कि बुद्धिजीवी एवं राजनैतिक शासक-वर्ग सामाजिक हितों को अपने व्यक्तिगत हितों व स्वार्थों से ऊपर रखने के धर्म का पालन करें।
यदि यह विचार वास्तविक रूप में व्यवहार में आ जाय तो निश्चय ही भारत विश्व का सबसे बड़ा राष्ट्र बन जायेगा। भारत की आध्यात्मिक शक्ति निःसंदेह सदैव ही उसकी विश्व को सबसे बड़ी देन रही है। ऐसा भारत था कि जिसने प्राचीनकाल में भी बिना किसी सैन्य शक्ति प्रदर्शन व रक्तपात के ही विश्व को जीता था। भारत ऐसा पुनः कर सकता है यदि शासन शैली का आधार पुनः सनातन धर्म हो जाय। अतः राष्ट्रोत्थान इसकी सच्ची आत्मा और भावना के पुनर्विकास से होगा, न कि बाहर से लाकर थोपी गयी किसी व्यवस्था से।
विदेशी, कट्टरपंथी, अहिन्दू धार्मिक नेताओं ने जब भी भारत का दौरा किया था उन्हें आमंत्रित किया गया तो उन्होंने यहाँ स्पष्ट रूप में हिन्दू धर्म एवं संस्कृति को नष्ट करने के लिए ईश्वर के नाम पर अपने मौलिक अधिकारों की यह कहकर माँग की कि धर्मांतरण सामाजिक न्याय तथा प्रजातांत्रिक अधिकारों का एक अंग है। ऐसे वातावरण में किसी विशेष सामाजिक वर्ग अथवा प्रमुख परिवार के प्रति भक्ति ने उसे व्यक्तिगत शक्ति और सम्मान का साधन बना दिया और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर इसे उचित समझा गया। जबकि मातृभूमि के प्रति समर्पित और राष्ट्रवाद के समर्थकों को प्रतिक्रियावादी और पक्षपाती कहकर तिरस्कृत किया गया। हिन्दू धर्म और हिन्दुत्व अपमान व घृणा सूचक शब्द बनकर रह गये।”
ऐसे महान हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु विश्वविख्यात विदुषी डॉ. एनी बेसेंट कहा करती थीं- “हिन्दू ही यदि हिन्दुत्व की रक्षा नहीं करेंगे तो और कौन करेगा ? अगर भारत के सपूत हिन्दुत्व में विश्वास नहीं करेंगे तो कौन उनकी रक्षा करेगा ?”
यहूदी मेन्यूहिन ने कहा था कि “एक औसत पश्चिमी व्यक्ति से एक हिन्दू सौ गुना अधिक परिष्कृत, अधिक सुसंस्कृत, अधिक प्रामाणिक, अधिक धार्मिक और अधिक संतुलित है।”
पूज्य बापू जी कहते हैं- “हिन्दू धर्म की एक महानता है कि वह हँसते-खेलते आत्मज्ञान देने की ताकत रखता है। और मजहब किसी इन्सान ने चलाये लेकिन हिन्दू धर्म किसी ने नहीं चलाया। जैसे सूर्य किसी व्यक्ति ने नहीं बनाया, धरती किसी व्यक्ति की बनावट नहीं है, ऐसे ही हिन्दू धर्म किसी व्यक्ति की बनावट नहीं है। सनातन धर्म में अवतार हुए हैं, सनातन धर्म अवतारों के पहले है। इसकी व्यवस्था भी सनातन है। यह सब से चली, कोई इतिहास का पूरा आँकड़ा नहीं बता सकता। जैसे सूर्य सनातन है, परमात्मा सनातन है, ऐसे ही परमात्मा को पाने की व्यवस्था की सत्प्रेरणा देने वाला जो धर्म और ज्ञान है उसे सनातन धर्म कहते हैं। आज मनुष्य अपनी सनातन संस्कृति से विमुख होता जा रहा है। बाहरी तत्त्व इस देश की संस्कृति को क्षति पहुँचाने में सतत प्रयत्नशील हैं, इसलिए देश के युवाओं को धर्म एवं संस्कृति की महानता का ज्ञान पाकर अपनी और दूसरों की छुपी हुई महानता जागनी चाहिए।”
स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2015, पृष्ठ संख्या 6,9 अंक 275
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