प्रकृति के बहाने परमात्मा की याद

प्रकृति के बहाने परमात्मा की याद


 

भगवान राम जी बनवास के दौरान बालि को मारकर सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बना दिया था और स्वयं एक पर्वत पर वास कर रहे थे। प्रकृति की सुरम्या छटा के मनोहर वर्णन के बहाने राम जी ने अपने अनुज लक्ष्मण को बहुत ऊँचा ज्ञान दिया है। ऋतु परिवर्तन एवं प्राकृतिक वर्णन को निमित्त बनाकर श्रेष्ठ जीवन-मूल्यों को समझाया है। राम जी कहते हैं-

बरषा बिगत सरद रितु आई।
लछिमन देखहु परम सुहाई।।

हे लक्ष्मण ! देखो, वर्षा ऋतु बीत गयी और परम सुंदर शरद ऋतु आ गयी। अगस्त्य के तारे ने उदय होकर मार्ग के जल को सोख लिया, जैसे संतोष लोभ को सोख लेता है। नदियों और तालाबों का निर्मल जल ऐसी शोभा पा रहा है जैसे मद और मोह से रहित संतों का हृदय। नदी और तालाबों का जल धीरे-धीरे सूख रहा है, जैसे ज्ञानी (विवेकी) पुरुष ममता का त्याग करते हैं। शरद ऋतु जानकर खंजन पक्षी आ गये, जैसे समय पाकर सुंदर सुकृत आ जाते हैं (पुण्य प्रकट हो जाते हैं)। जल के कम हो जाने से मछलियाँ व्याकुल हो रही हैं, जैसे मूर्ख (विवेकशून्य) कुटुम्बी (गृहस्थ) धन के बिना व्याकुल होता है। बिना बादलों का निर्मल आकाश ऐसा शोभित हो रहा है जैसे भगवद् भक्त सब आशाओं को छोड़कर सुशोभित होते हैं। कहीं-कहीं शरद ऋतु की थोड़ी-थोड़ी वर्षा हो रही है, जैसे कोई विरले ही लोग मेरी भक्ति पाते हैं।

सुखी मीन जे नीर अगाधा।
जिमि हरि सरन न एकउ बाधा।।

जो मछलियाँ अथाह जल में हैं वे सुखी हैं, जैसे श्रीहरि की शरण में चले जाने पर एक भी बाधा नहीं रहती।

कमलों के खिलने से तालाब ऐसी शोभा दे रहा है जैसे निर्गुण ब्रह्म सगुण होने पर शोभित होता है। रात्रि देखकर चकवे के मन में वैसे ही दुःख हो रहा है जैसे दूसरे की सम्पत्ति देखकर दुष्ट को दुःख होता है। पपीहा रट लगाये है, उसको बड़ी प्यास है, जैसे शंकरजी का द्रोही सुख नहीं पाता (सुख के लिए खीझता रहता है)। शरद ऋतु के ताप को रात के समय चन्द्रमा हर लेता है, जैसे संतों के दर्शन से पाप दूर हो जाते हैं। चकोरों के समुदाय चन्द्रमा को देखकर इस प्रकार टकटकी लगाये हैं जैसे भगवद्भक्त भगवान को पाकर (अपलक नेत्रों से) उनके दर्शन करते हैं।

राम जी कहते हैं- हे भ्राता लक्ष्मण ! वर्षा ऋतु के कारण पृथ्वी पर जो जीव भर गये थे, वे शरद ऋतु को पाकर वैसे ही नष्ट हो गये, जैसे सदगुरु के मिल जाने पर संदेह और भ्रम के समूह नष्ट हो जाते हैं।

लक्ष्मण जी को बात-बात में कैसा ऊँचा ज्ञान मिला राम जी के सत्संग-सान्निध्य से ! ऐसा ही अति दुर्लभ ब्रह्मज्ञान का प्रसाद पूज्य बापू जी के सत्संग-सान्निध्य एवं प्रेरक जीवन से करोड़ों लोगों को सहज में मिला है। भगवान और महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेकर हम भी अपना जीवन उन्नत कर सकते हैं। व्यवहारकाल में भी भगवान की, भगवद्ज्ञान की स्मृति बनाये रखकर अपने जीवन को भगवद् रस, भगवद्-शांति, भगवद्-आनंद से ओतप्रोत कर सकते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2015, पृष्ठ संख्या 16, अंक 273
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