सत्संग से जितना लाभ होता है उतना किसी कोर्स और तपस्या से भी नहीं होता। (कोर्स-पाठ्यक्रम)। इसलिए सत्संग देने वाले अनुभवी सत्पुरुषों का जितना आदर करें उतना कम है। उनकी आज्ञा के अनुसार जितना जीवन ढालें उतना ही अपना मंगल है। व्यापार में तो हानि-लाभ होता है, पढ़ाई में पास-नापास होता है, दुनियावी कितने सारे कोर्स कर लो फिर भी अशांति और जन्म-मरण होता रहता है लेकिन सत्संग से लाभ ही लाभ होता है, हानि नहीं होती, अशांति नहीं होती, शांति बढ़ती है, पाप नहीं होता, पुण्य ही होता है, नरकों में नहीं जाते हैं, भगवत्प्राप्ति होती है। सत्संग निर्दोष कोर्स है। दुनिया में बड़े में बड़ा, निर्दोष से निर्दोष, सस्ते में सस्ता और महान में महान कोई कोर्स है तो सत्संग का कोर्स है, भगवन्नाम जप अनुष्ठान का कोर्स है। नाशवान शरीर में और नाशवान कोर्स में जितनी प्रीति है उतनी अविनाशी आत्मा-परमात्मा में हो जाय तो बस, ब्रह्म परमात्मा को पाना सुलभ हो जाय।
सत्संग से 5 लाभ तो सहज में होने लगते हैं- 1.भगवन्नाम के जप कीर्तन का लाभ। 2.भगवान के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान मिलता है। भगवद्ध्यान एवं सेवा का सदगुण विकसित होने लगता है। 4.बुद्धि में ईश्वर व ईश्वरप्राप्त महापुरुष के विलक्षण लक्षण विकसित होने लगते हैं और 5.अच्छा संग मिलता है। जो सत्संग भी करते हैं और आज्ञा का उल्लंघन भी करते हैं वे समझो सत्संग का गला घोंटते हैं।
ससांरी कोर्स करने से शोक, भय और चिंता बढ़ते हैं। ‘भूल न जाऊँ….. नौकरी मिलेगी कि नहीं मिलेगी ?…. यह हमारे से आगे न बढ़ जाये…. हमको जो मिला है चला न जाय…..’ इस प्रकार का भय बढ़ेगा, चिंता बढ़ेगी और इज्जत मिट्टी में मिल जायेगी तथा भगवन्नाम जपने से और यह भगवत्कोर्स करने से इज्जत बढ़ेगी, मन सुख-शांति का एहसास करेगा, माता-पिता और सात-सात पीढ़ियों का मंगल हो जायेगा। नेता को खुशामदखोर लोग अच्छे लगते हैं और संतों को साधना करने वाले अच्छे लगते हैं।
‘बिजनेस कोर्स करूँ…. मैनेजमेंट कोर्स करूँ….. फलाना कोर्स करूँ….’ ये तो कई कर-करके मर गये, आप सारा जगत जीतने का कोर्स कर लो, चलो ! और एक साल के अंदर जगजीत प्रज्ञा ! ऐसा कोर्स कर लो-करवा लो।
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-
इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिताः।। (गीताः 5.19)
क्या बढ़िया कोर्स है ! एक श्लोक… बस ! यह कोर्स कर लो तो मैनेजमेंट कोर्सवाले फिर आपके चरणों की धूलि लेकर अपना भाग्य बनायेंगे। जिनका अंतःकरण समता में स्थित है उन्होंने इस जीवित अवस्था में ही सम्पूर्ण संसार को जीत लिया है क्योंकि ब्रह्म में स्थित हो गये।
सभी कर सकते हैं यह कोर्स। बचपन में ही संस्कार डाल दोः सुख-दुःख में सम रहना है – ब्रह्म कोर्स ! मान अपमान सपना है और रब अपना है- बच्चों में ये संस्कार डालो। मेरे गुरुदेव में उनकी दादी माँ ने ये संस्कार डाले और गुरुदेव ऐसे ब्रह्मज्ञानी हुए कि उनकी कृपा प्रसादी से आसुमल में से आशाराम हो गये और लाखों-करोड़ों लोगों को उस दादी माँ की प्रसादी बँट रही है। बच्चों में संस्कार डालने का कितना भारी प्रभाव है ! मेरे लीलाशाहजी प्रभु की दादी जी तो पाँचवीं भी नहीं पढ़ी थीं, तीसरी भी नहीं पढ़ी होंगी शायद और घर में ही कैसा कोर्स करके बैठ गयीं ! मेरी माँ का कोर्स कर लो, चलो। बापू की माँ का कोर्स कौन सा था ? “साँईं ने कहा है, दही नहीं खाऊँगी, बस। साँईं ने कहा है, भुट्टे भारी होते हैं। इस उम्र में मकई के भुट्टे नहीं खाने हैं, बस। साँईं की आज्ञा !” मेरी माँ ने ऐसे ही आज्ञापालन का कोर्स कर लिया तो ऐसे ही मुफ्त में तर गयीं ! मनुष्य जीवन का फल यही है, वही कोर्स कर ले बस…. ब्रह्म को पा ले।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2016, पृष्ठ संख्या 6,7 अंक 287
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