आनंद के साथ जीवन निर्माण का पर्व

आनंद के साथ जीवन निर्माण का पर्व


वसंत पंचमी 1 फरवरी 2017

माघ शुक्ल पंचमी का दिन ऋतुराज वसंत के आगमन का सूचक पर्व है।

वसंत पंचमी का संदेश

आशादीप प्रज्वलित रखें- वसंत संकेत देता है कि जीवन में वसंत की तरह खिलना हो, जीवन को आनंदित-आह्लादित रखना हो तो आशादीप सतत प्रज्वलित रखने की जागरूकता रखना जरूरी है।

वसंत ऋतु के पहले पतझड़ आती है, जो संदेश देती है कि पतझड़ की तरह मनुष्य के जीवन में भी घोर अंधकार का समय आता है, उस समय सगे-संबंधी, मित्रादि सभी साथ छोड़ जाते हैं और बिन पत्तों के पेड़ जैसी स्थिति हो जाती है। उस समय भी जिस प्रकार वृक्ष हताश-निराश हुए बिना धरती के गर्भ से जीवन-रस लेने का पुरुषार्थ सतत चालू रखता है, उसी प्रकार मनुष्य को हताश-निराश हुए बिना परमात्मा और सदगुरु पर पूर्ण श्रद्धा रखकर दृढ़ता से पुरुषार्थ करते रहना चाहिए, इसी विश्वास के साथ कि ‘गुरुकृपा, ईशकृपा हमारे साथ है, जल्दी ही काले बादल छँटने वाले हैं।’ आप देखेंगे कि सफलता के नवीन पल्लव पल्लवित हो रहे हैं, उमंग-उत्साह की कोंपलें फूट रही हैं, आपके जीवन-कुंज में भी वसंत का आगमन हो चुका है, भगवद्भक्ति की सुवास से आपका उर-अंतर प्रभुरसमय हो रहा है।

समत्व व संयम का प्रतीक- इस ऋतुकाल में जैसे न ही कड़ाके की सर्दी और न ही झुलसाने वाली गर्मी होती है, उसी प्रकार जीवन में वसंत लाना हो तो जीवन में आने वाले सुख-दुःख, जय-पराजय, मान-अपमान आदि द्वन्द्वों में समता का सद्गुण विकसित करना चाहिए। भगवान ने भी गीता में कहा हैः

समत्वं योग उच्यते।

वसंत की तरह जीवन को खिलाना हो तो जीवन को संयमित करना होगा। संयम जीवन का अनुपम श्रृंगार है, जीवन की शोभा है। प्रकृति में सूर्योदय-सूर्यास्त, रात-दिन, ऋतुचक्र – सबमें संयम के दर्शन होते हैं इसीलिए निसर्ग का अपना सौंदर्य है, प्रसन्नता है। वसंत सृष्टि का यौवन है और यौवन जीवन का वसंत है। संयम व सद्विवेक से यौवन का उपयोग जीवन को चरण ऊँचाइयों तक पहुँचा सकता है अन्यथा संयमहीन जीवन विलासिता को आमंत्रण देगा, जिससे व्यक्ति पतन के गर्त में गिरेगा।

परिवर्तन का संदेशः आयुर्वेद वसंत पंचमी के बाद गर्म तथा वीर्यवर्धक, पचने में भारी पदार्थों का सेवन कम कर देने और आम की मंजरी को रगड़कर मलने व खाने की सलाह देता है। आम की मंजरी शीत, कफ, पित्तादि में फायदेमंद तथा रूचिवर्धक है। अतिसार, प्रमेह, रक्त-विकार से रक्षा करती है तथा जहरीले दोषों को दूर करने में उपयोगी है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2017, पृष्ठ संख्या 19 अंक 289

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