कौन सी चर्चाएँ ग्राह्य और कौनसी त्याज्य ?

कौन सी चर्चाएँ ग्राह्य और कौनसी त्याज्य ?


(गुरु हरगोविंदजी जयंतीः 10 जून 2017)

एक दिन गुरु हरगोविंद जी के एक शिष्य ने प्रार्थना कीः “गुरुदेव ! हम गुरुभाईयों में शास्त्र चर्चा करते समय आपस में कोई विवाद उन्पन्न न हो इसका उपाय बताइये।”

गुरु हरगोविंद जी ने समझाते हुए कहाः “चर्चाएँ भले चार प्रकार की होती हैं परंतु सज्जनों, बुद्धिमानों या गुरुभाइयों के ग्रहण करने योग्य दो प्रकार की चर्चाएँ होती हैं-

वेद चर्चाः प्रेमभाव से प्रश्न उत्तर करके एक-दूसरे की तसल्ली करना।

हेत चर्चाः ईर्ष्यारहित होकर प्रेमभाव से खंडन-मंडन (दोनों पक्षों का प्रतिपादन) करके एक दूसरे की तसल्ली करना।

त्यागने योग्य दो प्रकार की चर्चाएँ हैं-

जलप चर्चाः अपनी बात की पुष्टि के लिए दूसरे की बात को रद्द करके झगड़ा करना।

वितंड चर्चाः दूसरे के पक्ष का खंडन करने के लिए छल कपट और झूठ का सहारा लेकर अपने पक्ष को सिद्ध करने का यत्न करना।

गुरु भक्त को किसी का मन हीं दुखाना चाहिए। सबके मन में सात्त्विक प्रसन्नता पैदा करनी चाहिए।”

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2017, पृष्ठ संख्या 15, अंक 293

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