एक नंदी नामक ब्राह्मण था। उसके पूरे शरीर में कोढ़ हो गया था इसलिए वह तुलजापुर (महाराष्ट्र) की भवानी माता के मंदिर में गया और 3 वर्ष आराधना, प्रार्थना, जप करता रहा। एक दिन माता ने उसे स्वप्न में आदेश दिया कि ‘तुम चंदला परमेश्वरी के पास (गुलबर्गा, कर्नाटक) जाओ, वहाँ तुम्हारा काम बनेगा।’
ब्राह्मण वहाँ गया और देवी की उपासना करने लगा। 7 महीने बीत गये। उसकी उपासना, जप से चंदला देवी प्रसन्न हुई और स्वप्न में दर्शन देकर कहाः “तुम गाणगापुर जाओ, जहाँ नृसिंह सरस्वती रहते हैं। उनकी कृपा से तुम्हारा कोढ़ मिटेगा।”
नंदी स्वप्न से जागा। उसने सोचा, ‘यदि मुझे एक मनुष्य के पास ही भेजना था तो यहाँ 7 महीने क्यों रोके रखा ? ‘वह उसी मंदिर में रहा तो अंत में देवी ने पुनः स्वप्न में आ के नाराज होकर कहाः “यहाँ से चले जाओ !”
उसे क्या पता था कि उसकी जन्मों-जन्मों की साधना का फल फलित हो गया है अर्थात् देवी ने जन्म-मरण के दुःखों से सदा के लिए मुक्त करने हेतु उसे सदगुरु की शरण का मार्ग बता दिया है। वह सदगुरु नृसिंह जी के पास पहुँचा। उसे देखते ही गुरु नृसिंह जी मुस्कराकर बोलेः “अरे, देवी को छोड़कर मनुष्य के पास क्यों आये हो ?”
ब्राह्मण लज्जित हुआ और उनसे क्षमा याचना कर उनका शिष्यत्व स्वीकार किया। गुरुदेव ने अपने एक भक्त को बुला के कहाः “इसे संगम पर ले जाओ और संकल्पपूर्वक स्नान कराओ।”
शिष्य ने वैसा ही किया तो नंदी ब्राह्मण के कोढ़ के दाग खत्म हो गये और शरीर तेजवान हो गया। यह देख सब चकित हो गये। लेकिन उसकी जाँघ पर एक छोटा सा सफेद दाग रह गया। गुरुदेव ने कहाः “तुम्हारे मन में सदगुरु के प्रति संदेह था इसलिए यह दाग रह गया। अब तुम पश्चाताप करके सदगुरु के व्यापक स्वरूप का महिमा-गान करोगे तो यह भी ठीक हो जायेगा।”
नंदीः “मैं तो अनपढ़ हूँ, महिमा गान कैसे करूँ ?”
गुरु ने संकल्प कर उसकी जीभ पर भस्म डाला तो देखते ही देखते वह भक्तिभावपूर्ण स्तुति करने लगा। कुछ ही दिनों में उसकी जाँघ का दाग चला गया और वह बड़ा प्रतिभाशाली भक्तकवि बन गया।
हयात ब्रह्मज्ञानी महापुरुष अगर मिल जायें तो मनुष्य के लिए इससे बढ़कर सौभाग्य की क्या बात होगी ! जिनके हृदय में परमात्मा प्रकट हुआ है ऐसे ब्रह्मस्वरूप संतों का दर्शन-सत्संग व सेवा जिनको मिल जाती है, उनको तो भगवान शिव भी धन्यवाद देते हैं। और जो ऐसे महापुरुषों के हयातीकाल में उनके दर्शन सेवा सत्संग का लाभ नहीं ले पाते उनके लिए इससे बड़ा क्या दुर्भाग्य होगा !
ऋषि प्रसाद, मई 2017, पृष्ठ संख्या 10, अंक 293
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