संसार असार है, सत्य तत्त्व ही सार है

संसार असार है, सत्य तत्त्व ही सार है


भोगास्तुङ्गगतरङ्गभङ्गतरलाः प्राणाः क्षणध्वंसिन-

स्तोकान्येव दिनानि यौवनसुखं स्फूर्तिः प्रियेष्वस्थिरा।

तत्संसारमसारमेव निखिलं बुद्ध्वा बुधा बोधका

लोकानुग्रहपेशलेन मनसा यत्नः समाधीयताम्।।

‘सांसारिक वस्तुओं के भोग से उत्पन्न सुख ऊँची उठने वाली लहरों के भंग के समान चंचल अर्थात् अस्थिर है। प्राण भी क्षण में नाश पाने वाले हैं। प्रियतम या प्रियतमा से संबंध रखने वाली यौवन की आनंद-स्फूर्ति भी कुछ ही दिनों तक रहती है। इस कारण से उपदेश देने वाले विद्वानो ! सारे संसार को सारहीन समझकर लोगों पर दया करने में लीन मन से सत्य तत्त्व को पाने में प्रयत्न करिये।’ वैराग्य शतकः 34

भर्तृहरि महाराज यहाँ समझा रहे हैं कि जिन विषय-विकारों को हम चिरकाल से भोगते आ रहे हैं वे सदा हमारे साथ न रहेंगे, निश्चय ही एक दिन हमारा साथ छोड़ देंगे। इससे यदि हम ही उन्हें पहले से ही छोड़ दें तो हमें महासुख और शांति मिलेगी। यदि हम न छोड़ेंगे और वे हमें छोड़ेंगे तो हमें महादुःख और मनस्ताप होगा।

‘श्रीयोगवासिष्ठ महारामायण’ में भगवान श्रीरामचन्द्र जी कहते हैं कि “जितने भोग के साधन-पदार्थ हैं, वे सब-के-सब अस्थिर यानि क्षणिक हैं। जैसे मरीचिका को जल समझकर हर्षित हुए हिरण मरूभूमि में बड़ी दूर तक इधर-उधर भटकते रहते है फिर भी उन्हें कुछ नहीं मिलता, वैसे ही मूढ़बुद्धि हम लोग इस संसार में असत् पदार्थों को सुख के साधन समझ के इधर-उधर खूब भटकते रहते हैं पर हाथ कुछ नहीं लगता।

जो लोग शरीरों तथा संसार को आशायुक्त चिरस्थायी और सत्य मानते हैं वे मोह (अज्ञान) रूपी मदिरा से उन्मत्त हैं, उन्हें बार-बार धिक्कार है !

जो यह युवावस्था है, वह देहरूपी जंगल में कुछ दिनों के लिए फली-फूली शरद ऋतु है, यह शीघ्र ही क्षय को प्राप्त हो जायेगी। जैसे अभागे पुरुष के हाथ से चिंतामणि (अभीष्ट पदार्थ देने वाला रत्न) तत्काल चला जाता है, वैसे ही शरीर से युवावस्थारूपी पक्षी जल्दी भाग खड़ा होता है।”

पूज्य बापू जी की सत्य तत्त्व का ज्ञान कराने वाली, हितभरी अमृतवाणी में आता हैः “जितना हो सके उतना जल्दी समय का सदुपयोग कर लेना चाहिए। तुम कितन भी धन, सौंदर्य, सत्ता पा लो लेकिन अंत में क्या रहेगा ? मौत के एक ही झटके में सब कुछ छूट जायेगा। अतः मौत सब छुड़ा ले इसके पहले जहाँ मौत की दाल नहीं गलती उस परमात्मा में चित्त लगाओ। जिससे धन, सौंदर्य और सत्ता मिलती है उस ईश्वर में चित्त लगाओ और उसी से प्रीति करो तो धन, सत्ता और व्यापार में भी सात्त्विक निखार आयेगा। यह शरीर मिट्टी में मिल जाय उससे पहले तुम परमात्मा से मिल लो तो तुम्हारे सब दुःख समाप्त हो जायेंगे।”

ऋषि प्रसाद, मई 2017, पृष्ठ संख्या 11, अंक 293

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