Hariom prabhuji,
Tamogun me aatmabhyas karna kathin kyon lagta hai? Satvagun me to lagta hai, ki ye sab guno ka khel hai. Lekin ye drishti bhi satvagun ke samay bhasit hoti hai, tamogun ke samay – prayatn karne par bhi apni asangta pratyaksha bhasit nahi hoti.
Tamogun me buddhi mand hone karan aisa lagta hai, lekin humara aatma to buddhi ke aashrit nahi hai. Fir uska bhan kyon nahi hota?
Aatmabhyas me kahan kami hai, kaise pata chale?
HariOm
Dhanyawad
—– उत्तर —–
हरि ॐ,
अभ्यास मन, बुद्धि से ही किया जाता है और हम अपना अस्तित्व भी मन, बुद्धि से जुड़कर ही मानते है। मन, बुद्धि को छोड़कर हमारा मूल स्वरूप है उस में टिकते नहीं। इसलिए गुणों का प्रभाव हम पर पड़ता है ऐसी भ्रान्ति होती है।
आत्माभ्यास करने का तरिका सही है या नहीं ये जानने से उसकी कमी मालूम पड़ेगी। जब तक मन, बुद्धि के द्वारा आत्माभ्यास करेंगे तब तक आत्मा में नहीं टिक सकेंगे क्योंकि आत्मा मन, बुद्धि का विषय नहीं है, मन बुद्धि को त्यागने पर आत्मा का ज्ञान होगा। और मन, बुद्धि से अभ्यास करने पर वे बने रहेंगे.
विशेष जानकारी के लिए साथ में भेजी हुई फ़ाइल पढो।
– डॉ. प्रेमजी