साधक संसारियों से ज्यादा दुखी क्यों ?

साधक संसारियों से ज्यादा दुखी क्यों ?


साधक के जीवन में दो बातें होती हैं | एक तरफ संसार का आकर्षण, संसार की जवाबदारियाँ और दूसरी तरफ भगवत प्राप्ति की लालसा | भगवत प्राप्ति की लालसा जिस साधक के जीवन में होती है वो संसारियों से ज्यादा दुखी होता है | क्योंकी संसारियों को तो केवल संसार की लालसा होती है | भगवत प्राप्ति का लक्ष नहीं होता है | इसीलिए आंध्डी चाकर जैसा उनका जीवन उधर को घिसता रहता है | लेकिन संसारी आकांकाशों से थोड़े ऊपर उठे हुए साधक के जीवन में विक्षेप आता है | एक तरफ ईश्वर की महत्ता सुनता है, जानता है विवेक जगता है | दूसरी तरफ संसार की पुरानी आदतें नीचे घसीटती हैं | जप करता है लेकिन फिर भी राग-द्वेष, काम-क्रोध उसको चोटें करता है | और हर साधक को इस संघर्ष से गुजरना पड़ता है | नहीं चाहते हुए भी उससे कुछ प्रवितियाँ कुछ चिंतन ऐसा हो जाता है जो उसे दुःख देता है | क्योंकी उसके पास विवेक की किरण जगी है | कुछ प्रकाश हुआ है |जानामि में धर्मम न में प्रवृतिम, जानामि अधर्मम न में निवृति | अशुद्ध और अधर्म जानता है, उससे निवृत नहीं हो पाता है, उस वक्त उसे दुःख होता है | और धर्म के रहस्य को थोडा बहुत सुनता है, मानता है भगवान की महिमा को | उस तरफ प्रवृत नहीं हो पाता है |

सुकरात की ये दशा थी, बेचैन रहते थे | और हर साधक इस दशा में आता ही है | सुकरात को किसी मित्रों ने कहा के तू इतना बेचैन सुकरात उसकी अपेक्षा तो ये जो सूअर है ना दुकर, सुकर-दुकर | नाले में पड़ा है, ठंडे-ठंडे नाले में, पत्नी-पुत्र-परिवार के साथ उसको कोई चिंता नहीं | बड़ा शांत, आनंद से जीता है |  तो चिंतित सुकरात होने की बजाये तू ये सुकर क्यों नहीं हो जाता निश्चिंत | सुकरात ने कहा बेवकूफी से नाले में सुखी रहने की अपेक्षा, निश्चिंत सुकर रहने की अपेक्षा, मैं छटपटाने वाला सुकरात का जीवन पसंद करूंगा | क्योंकी वह छटपटाहट मुझे मालिक के द्वार तक पहुँचा देगी |

तो जो हतभागी होते हैं, मंदबुद्धि होते हैं, वे तो संसार को सार समझकर उससे चिपके रहते हैं और उसमें से कुछ मिलता है तो अपने जीवन को धन्य-धन्य मान लेते हैं | लेकिन साधक को उसमें चिपकान होती नहीं और कुछ मिलता है तभी भी साधक ये सोचता है के आखिर क्या ? छेव्टे शुं ? तो उसे संसार में रस नहीं आएगा | और भगवान रस में वो पहुँचा नहीं | जय-जय | भगवान रस में क्यों नहीं पहुँचा की वो भजन तो करता है, जप तो करता है | बीसों घंटा जप करता है लेकिन संसार के जवाबदारियाँ, प्रलोभन या सुख-दुःख आते हैं तो वो बेचारा हिल जाता है | क्योंकी जप के साथ उसने ध्यान का महात्म नहीं जाना | जप करता है लेकिन ध्यान से अगर भीतर का रस नहीं पाया तो संसार का रस आकर्षित कर देगा | भीतर के निर्दुख पद का स्वाद नहीं लिया तो संसार के दुःख उस भक्त को हिला देते हैं | जब हम हिल जाते हैं ना तो समझना चाहिए के ध्यान का प्रसाद नहीं मिला | जिस प्रसाद से सब दुखों की निवृति हुई है उस प्रसाद पर हमारी निगाह पूरी ठरी नहीं है | प्रसादे सर्व दुखानाम हानि रस्य उपजायते, प्रसन्न चेतसो या सु बुद्धि प्रिविष्ठ्ते | ईश्वर की कृपा तो सब पर है लेकिन जो ईश्वर के लिए छटपटाता है ना उसपर उसकी विशेष कृपा होती है | जो ईश्वर के लिए काम करता है उन पर ईश्वर की विशेष कृपा होती है | जो भोगों के लिए, वाह-वाह के लिए, संसार के लिए काम करता है ना उस पर संसार की कृपा होती है | और संसार की कृपा यही है के दुःख बढ़ाता है वो | संसार जितना बढ़ेगा, दुःख उतना बढ़ेगा | और भगवान का प्रेम जितना बढ़ेगा सुख उतना बढ़ेगा |

तो साधक के जीवन में ये है – एक तरफ संसार खींचता है, एक तरफ परमात्मा खींचता है | साधक बेचारा बोर्डर पर है | जब संसारियों का संग करता है तो संसार की तरफ जाता है | तो कूदता है, अशांत होता है | और जब भगवान की तरफ जाता है तो जम्प मारता है आनंद के | और फिर जब आनंद अनुभव करके जाता है तो वहाँ का सुख उनको सुख नहीं लगता है | क्योंकी सुख है नहीं | जैसे किसी कुत्ते ने सुखी, जिसमें मजा-मास नहीं है ऐसी हड्डी को मुर्ख कुत्ता चबाता है तो उसे सुख मिलता है | लेकिन जिसको समझ में आ गया के इसमें कोई सार नहीं वो हड्डी भी चबायेगा क्यों ? तो फिर संसार में जब साधक जाता है ना तो संसारी बोलते तुम बिगड़ गये | पहले जितना तुमको रस आता था, तुम जितना चिपकते थे उतना चिपकते नहीं, बाबा ने तमने बगाडी दिया | सुनो मेरे भाइयों, सुनो मेरे मितवा, कबीरो बिगड़ गयो रे | संसारी भले साधक को बिगड़ा हुआ समझे लेकिन वो परमात्मा तो उसको सुधरा हुआ समझता है ना – इतना पर्याप्त है | ॐ, ॐ, ॐ ||

 

Audio : https://hariomaudio.standard.us-east-1.oortech.com/hariomaudio_satsang/Title/2017/Jul/Sadhak-Sansariyon-Se-Jyada-Dukhi-Kyon.mp3

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