मुगल शासन के समय की बात है। जोधपुर के महाराज जसवंत सिंह वीरगति को प्राप्त हो गये थे और उस समय वहाँ कोई राजा न होने के कारण औरंगजेब ने जोधपुर को अपने शासन में लेने के प्रयास किये। परंतु उस समय जसवंत सिंह के पुत्र राजकुमार अजीत सिंह के संरक्षक थे सनातन धर्म व संस्कृति प्रेमी वीर दुर्गादास राठौर, जिन्होंने जोधपुर से हिन्दू शासन नष्ट करने की औरंगजेब की सारी कुचेष्टाओं को विफल कर दिया।
औरंगजेब ने अपने पुत्र आजम और मुहम्मद अकबर की अध्यक्षता में मेवाड़ और मारवाड़ को जीतने के लिए बड़ी सेना भेजी। मुहम्मद अकबर दुर्गादास के शिष्ट व्यवहार और सज्जनता से प्रभावित होकर उनसे मिलने गया। औरंगजेब को जब यह पता चला तो वह हाथ धोकर दोनों के पीछे पड़ गया। मुहम्मद अकबर को विवशतापूर्वक ईरान जाना पड़ा। औरंगजेब को खबर मिली कि मुहम्मद का पुत्र बुलंदअख्तर और पुत्री सफायतुन्निशा जोधपुर में ही हैं तो उन्हें दिल्ली लाने के लिए उसने अपना एक प्रतिनिधि भेजा। दुर्गादास ने दोनों को इस बात पर लौटाना स्वीकार किया कि ‘औरंगजेब जोधपुर के राजसिंहासन पर जसवंत सिंह के पुत्र अजीत सिंह का आधिपत्य स्वीकार कर ले।’
दुर्गादास कुशल नीतिज्ञ भी थे। उन्होंने बुलंदअख्तर को जोधपुर में ही रखा और केवल औरंगजेब की पौत्री सफायतुन्निशा को लेकर दिल्ली पहुँचे।
सफायतुन्निशा औरंगजेब के पास पहुँची व उसे प्रणाम किया। औरंगजेब पौत्री को देखकर बोलाः “बेटी ! अब तक तुम्हें अपने मजहब का पता नहीं है। तुम काफिरों के साथ रही हो, अब कुरान पढ़ने में मन लगाओ।”
वह बोलीः “बाबाजान ! यह आप क्या कह रहे हैं ! चाचा दुर्गादास जी ने तो मेरा अपनी बेटी की तरह पालन किया है। धार्मिक शिक्षा के लिए उन्होंने मुझे पूरी छूट दे दी थी और कुरान पढ़ाने के लिए भी एक मुसलिम औरत की तजवीज कर दी थी। उन्होंने तो मुझे रब से प्रेम करना सिखाया है।”
बादशाह का दिल हिंदुओं के प्रति शुक्रगुजारी से भर गया। वह बोलाः “वाह ! हिन्दुओं की बहुत सी बातें ऐसी हैं कि उनमें उनका मुकाबला शायद फरिश्ते (अल्लाह के दूत) ही कर सकें।”
तभी राठौर-केसरी दुर्गादास ने औरंगजेब के शिविर में प्रवेश किया और उसकी बात सुनकर कहाः “वह तो हमारा कर्तव्य था बादशाह ! हिन्दुओं का किसी जाति, धर्म अथवा व्यक्ति से द्वेष या वैर नहीं है पर देश व संस्कृति पर आघात करने वालों से स्वयं की रक्षा करना वे अपना धर्म मानते हैं।”
औरंगजेब का हृदय दुर्गादास जी के प्रति आदरभाव से भर गया, वह बोलाः “सचमुच, आप फरिश्ते हैं दुर्गादास !”
औरंगजेब ने वीर राठौर को सम्मानपूर्वक बैठाया और अजीत सिंह को जोधपुर के महाराज मानने का फरमान जारी किया। दुर्गादास ने बुलंदअख्तर को भी दिल्ली भेज दिया।
वीर राठौर ने ऐसे अन्यायी बादशाह को भी अपने हिन्दू धर्म के संस्कारों से प्रभावित कर दिया और जोधपुर के राज्य में में अजीतसिंह को महाराज घोषित कराके वहाँ सनातन धर्म-रक्षा के सराहनीय प्रयास किये।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2017, पृष्ठ संख्या 19 अंक 296
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