सर्वपापनाशक, सर्वहितकारी, मंगलमय मंत्र-विज्ञान

सर्वपापनाशक, सर्वहितकारी, मंगलमय मंत्र-विज्ञान


पूज्य बापू जी के सत्संग-अमृत में आता हैः “ॐकार का, भगवन्नाम जप करने से आपको स्वास्थ्य के लिए दुनियाभर की दवाइयों, टॉनिकों, कैप्सूलों और इंजेक्शनों की शरण नहीं लेनी पड़ेगी। भक्तिरस से ही स्वास्थ्य बना रहता है। खुशी के लिए क्लबों में जूठी शराब, जूठे डिनरों का सहारा नहीं लेना पड़ता।

भगवान का नाम लेना कोई कर्म या क्रिया नहीं है, अपनत्व की पुकार है। इस पुकार से पुराने संस्कार, वासनाएँ मिटती हैं। सतयुग में तो 12 साल सत्यव्रत धारण करें तब कुछ मिले, त्रेता में तप करें, द्वापर में यज्ञ करें, ईश्वरोपासना करें तब कुछ पुण्याई मिले, पाप-ताप नष्ट हों लेकिन कलियुग में तो केवल भगवन्नाम-जप जापक के पाप-ताप ऐसे नष्ट कर देता है कि सोच भी नहीं सकते।

जब ही नाम हृदय धर्यो भयो पाप को नास।

जैसे चिनगी आग की पड़ी पुराने घास।।

जैसे सूखी घास के ढेर को एक चिनगारी मिल गयी तो सारी घास चट ! ऐसे ही जब भगवन्नाम गुरु के द्वारा मिलता है और अर्थसहित जपते हैं तो वह सारे अनर्थों की निवृत्ति कर देता है, जन्म-जन्मांतरों के संस्कार मिटते जाते हैं और भगवद शांति, प्रीति और आनंद बढ़ता है तथा जीवात्मा अपने परमात्मवैभव को पाकर तृप्त हो जाता है, परम अर्थ – ब्रह्मज्ञान को पा लेता है।

भगवन्नाम जब से अंतर में रस जागृत होगा व बढ़ेगा। आप केवल प्रीतिपूर्वक, आदरपूर्वक, अर्थसहित, नियमित जपते जायें। यह आपको परमात्मदेव में, परमात्मसुख में प्रतिष्ठित कर देगा। जब तक भगवत्प्राप्ति नहीं हुई तब तक गुरुमंत्र आपका पीछा नहीं छोड़ता, मरने के बाद भी वह आपको यात्रा कराकर भगवान तक ले जाता है।

ताकि पतन न हो……

24 घंटों में 1440 मिनट होते हैं। इन 1440 मिनटों में से 440 मिनट ही परमात्मा के लिए लगाओ। यदि 440 मिनट नहीं लगा सकते तो 240 मिनट ही लगाओ। अगर इतने भी नहीं लगा सकते तो 140 मिनट ही लगाओ। अगर इतने भी नहीं तो 100 मिनट अर्थात् करीब पौने दो घंटे ही उस परमात्मा के लिए लगाओ तो वह दिन दूर नहीं होगा जब – जिसकी सत्ता से तुम्हारा शरीर पैदा हुआ है, जिसकी सत्ता से तुम्हारे दिल की धड़कनें चल रही हैं, वह परमात्मा तुम्हारे हृदय में प्रकट हो जायेगा।

24 घंटे हैं आपके पास….. उनमें से 6 घंटे सोने में और 8 घंटे कमाने में लगा दो तो 14 घंटे हो गये। फिर भी 10 घंटे बचते हैं। उनमें से अगर 5 घंटे भी आप-इधर, गपशप में लगा देते हैं तब भी 5 घंटे भजन कर सकते हैं। 5 घंटे नहीं तो 4, 4 नहीं तो 3, 3 नहीं तो 2, 2 नहीं तो 1.5 घंटा तो रोज़ अभ्यास करो ! यह 1.5 घंटे का अभ्यास आपका कायाकल्प (पूर्णतः रूपांतरण) कर देगा।

आप श्रद्धापूर्वक गुरुमंत्र का जप करेंगे तो आपके हृदय में विरहाग्नि पैदा होगी, परमात्म-प्राप्ति की भूख पैदा होगी। जैसे उपवास के दौरान सहन की गयी भूख आपके शरीर की बीमारियों को हर लेती है, वैसे ही भगवान को पाने की भूख आपके मन व बुद्धि के दोषों को, शोक को व पापों को हर लेगी।

कभी भगवान के लिए विरह पैदा होगा तो कभी प्रेम…. प्रेम से रस पैदा होगा और विरह से प्यास पैदा होगी। भगवन्नाम जप आपके जीवन में चमत्कार पैदा कर देगा। परमेश्वर का नाम प्रतिदिन 1000 बार तो लेना ही चाहिए। अर्थात् भगवन्नाम की 10 मालाएँ तो फेरनी ही चाहिए ताकि उन्नति तो हो और पतन न हो। अपने गुरुमंत्र का अर्थ समझकर प्रीतिपूर्वक जप करें। इससे बहुत लाभ होगा।

शास्त्र में आता है

देवाधीनं जगत्सर्वं मंत्राधीनाश्च देवताः।

‘सारा जगत देव के अधीन है और समस्त देव मंत्र के अधीन हैं।’

संत चरनदासजी महाराज ने बहुत ऊँची बात कही हैः

श्वास-श्वास सुमिरन करो यह उपाय अति नेक।।

संत तुलसीदास जी ने कहा हैः

बिबसहुँ जासु नाम नर कहहीं।

जनम अनेक रचित अघ दहहीं।। (श्री रामचरित. बां. कां. 118.2)

जो विवश होकर भी भगवन्नाम जप करते हैं उनके अनेक जन्मों के पापों का दहन हो जाता है।

कोई डंडा मारकर, विवश करके भी भगवन्नाम जप कराये तो भी अनेक जन्मों के पापों का दहन होता है तो जो प्रीतिपूर्वक भगवान का नाम जपते हैं, भगवान का ध्यान करते हैं उऩके उज्जवल भविष्य का, पुण्याई का क्या कहना !

शक्तियों का पुंज-गुरुमंत्र

भगवन्नाम की बड़ी भारी महिमा है। यदि हमने ‘अहमदाबाद’ कहा तो उसमें केवल अहमदाबाद ही आया, सूरत, गांधीनगर रह गये। अगर हमने गुजरात कहा तो सूरत, गांधीनगर, राजकोट आदि सब उसमें आ गये परंतु मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि रह गये…. किंतु तीन अक्षर का नाम भारत कहने से देश के सभी राज्य और नगर उसमें आ गये। ऐसे ही केवल पृथ्वीलोक ही नहीं वरन् 14 लोक और अनंत ब्रह्मांड जिससे व्याप्त हैं, उस भगवद्-सत्ता, गुरु-सत्ता के नाम अर्थात् भगवन्नामयुक्त गुरुमंत्र में पूरी दैवी शक्तियों तथा भगवदीय शक्तियों का समावेश हो जाता है।

साधक को चाहिए कि निरंतर जप करे। सतत भगवन्नाम जप विशेष हितकारी है। मनोविकारों का दमन करने में, विघ्नों का शमन करने में और 15 दिव्य शक्तियाँ जगाने में मंत्र भगवान अदभुत सहायता करते हैं।

बार-बार भगवन्नाम जप करने से एक प्रकार का भगवदीय रस, भगवदीय आनंद और भगवदीय अमृत प्रकट होने लगता है। जप से उत्पन्न भगवदीय आभा आपके पाँचों शरीरों (अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय शरीर) को तो शुद्ध रखती ही है, साथ ही आपके अंतःकरण को भी तृप्त करती है।

जिन गुरुमुखों ने, भाग्यशालियों ने, पुण्यात्माओं ने सदगुरु के द्वारा भगवन्नाम पाया है, उनका चित्त परमात्मसुख से तृप्त होने लगता है। फिर उऩको दुनिया की कोई चीज वस्तु आकर्षित करके अंधा नहीं कर सकती। फिर वे किसी भी चीज वस्तु से प्रभावित होकर अपना हौसला नहीं खोयेंगे। उनका हौसला बुलंद होता जायेगा। वे ज्यों-ज्यों जप करते जायेंगे, सदगुरु की आज्ञाओं का पालन करते जायेंगे, त्यों-त्यों उनके हृदय में आत्म-अमृत उभरता जायेगा।”

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2017, पृष्ठ संख्या 4,5,9 अंक 296

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