हानिकारक रसायनों के सेवन से बचें !
कई खाद्य पदार्थों के निर्माण व उनकी सुरक्षा हेतु हानिकारक रसायनों का उपयोग किया जाता है। अतः सफेद चीनी, सफेद गुड़, वनस्पति घी, रिफाईंड तेल आदि से निर्मित भोजन तथा बाजार में मिलने वाले अधिकांशतः तैयार खाद्य पदार्थ जैसे – अचार, चटनियाँ, मुरब्बे, सॉस आदि का उपयोग स्वास्थ्यवर्धक नहीं है।
अपवित्र आहार से बचें
खूब नमक-मिर्चवाला, तला हुआ, भुना हुआ या अशुद्ध आहार जैसे – बाजारू, बासी व जूठा भोजन, चाय, कॉफी, ब्रेड, फास्टफूड आदि तामसी आहार से भी बचना चाहिए।
भोजन कब व कितना करें ?
पहले का खाया हुआ भोजन जब पच जाय तभी उचित मात्रा में दूसरी बार भोजन करना चाहिए अन्यथा सभी रोगों की जड अजीर्ण रोग हो जाता है। दिन में बारम्बार खाते रहने वालों के पेट को आराम न मिल पाने से उन्हें पेट की गड़बड़ियाँ एवं उनसे उत्पन्न होने वाले अन्य अनेकानेक रोगों का शिकार होना पड़ता है। अनुचित समय में किया हुआ भोजन भी ठीक से न पचने के कारण अनेक रोगों को उत्पन्न करता है।
सुबह की अपेक्षा शाम का भोजन हलका व कम मात्रा में लेना चाहिए। रात को अन्न के सूक्ष्म पचन की क्रिया मंद हो जाती है अतः सोने से ढाई तीन घंटे पहले भोजन कर लेना चाहिए। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अधिक भोजन की आवश्यकता नहीं होती अपितु जो भोजन खाया जाता है उसका पूर्ण पाचन अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।
सुबह का भोजन 9 से 11 बजे के बीच और शाम का भोजन 5 से 7 बजे के बीच कर लेना चाहिए। शाम को प्राणायाम आदि संध्या के कुछ नियम करके भोजन करें तो ज्यादा ठीक रहेगा। भोजन के बीच-बीच में थोड़ा-थोड़ा गुनगुना पानी पीना चाहिए। भोजन के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए अपितु पौने दो घंटे के बाद प्यास के अनुरूप पानी पीना हितावह है।
भोजन के समय ध्यान देने योग्य कुछ बातें
स्वच्छ, पवित्र स्थान पर शांत व प्रसन्नचित्त हो के भोजन करें।
भोजन भगवान का प्रसाद समझकर बिना किसी प्रतिक्रिया के समभाव एवं आदरपूर्वक करना चाहिए।
खड़े-खड़े खाने से आमाशय को भोजन पचाने में अधिक श्रम करना पड़ता है। अतः यथासम्भव सुखासन में बैठकर भोजन करना चाहिए
भोजन भूख से कुछ कम करें।
भोजन में विपरीत प्रकृति के पदार्थ न हों, जैसे दूध और नमकयुक्त पदार्थ, अधिक ठंडे और अधिक गर्म पदार्थ एक साथ नहीं खाने चाहिए।
भोजन करते समय सूर्य (दायाँ) स्वर चलना चाहिए ताकि भोजन का पाचन ठीक से हो। (स्वर बदलने की विधि हेतु पढ़ें ‘ऋषि प्रसाद’ जनवरी 2017, पृष्ठ 32)
भोजन में अधिक व्यञ्जनों का उपयोग न हो। भोजन ताजा, सुपाच्य व सादा हो। जिन व्यञ्जनों को बनाने में अधिक मेहनत लगती है, उनको पचाने के लिए जठराग्नि को भी अधिक मेहनत करनी पड़ती है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2017, पृष्ठ संख्या 30, अंक 297
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