किसी भी प्रकार के वातरोग के लिए यह उपाय आजमाया जा सकता हैः पहली उँगली (तर्जनी) हाथ के अँगूठे के ऊपरी सिरे पर रखो और तीन उँगलियाँ सीधी रखो। ऐसे ज्ञान मुद्रा करो। अब दायें नथुने से श्वास लिया और बायें से छोड़ा, फिर बायें से लिया और दायें से छोड़ा।
तत्पश्चात बायँ नथुना बंद करके दायें नथुने से खूब श्वास भरो। उसके बाद घुटने, कमर आदि जहाँ कहीं भी वातरोग का असर हो उस अंग को हिलाओ-डुलाओ। भरे हुए श्वास को सवा से पौने दो मिनट रोके रखो (नये अभ्यासक 30-40 सैकेण्ड से शुरु करके अभ्यास बढ़ाते जायें) फिर बायें नथुने से निकाल दो। ऐसे 10 बार प्राणायाम करो तो दर्द में फायदा होगा।
एलोपैथी की दवाई रोग को दबाती है जबकि आसन, प्राणायाम, उपवास, तुलसी या आयुर्वेदिक औषधि आदि रोग की जड़ निकालकर फेंक देते हैं। इन उपायों से जो फायदा होता है वह एलोपैथी के कैप्सूल्स, इंजेक्शन्स आदि से नहीं होता। इतना ही नहीं, लम्बे समय तक एलोपैथी दवाइयों का सेवन करने वाले को अनेक प्रकार की हानियों का शिकार होना पड़ता है।
(आश्रम की पुस्तक ‘जीवनोपयोगी कुंजियाँ’ से)
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2017, पृष्ठ संख्या 31 अंक 300
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