-भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाह जी महाराज
एक विद्यार्थी ने मेरे पास आकर कहाः “स्वामी जी ! आप कह रहे थे कि ‘ईश्वर हमसे अलग नहीं हैं।’ जब वे अलग नहीं हैं तो फिर माँगें किससे व क्या माँगें ?”
मैंने कहाः “अच्छा प्रश्न पूछा है।”
इस समय हमारे देश में रजोगुण बढ़ गया है। देश की दुर्गति हो रही है। विद्यार्थी व अन्य लोग संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं। रिश्तेदार व अध्यापक भी धर्म से विमुख हो रहे हैं। ऐसे समय में विद्यार्थी ऐसा प्रश्न पूछे यह अच्छी बात है।
मैंने उससे कहा कि “यह बात समझ में आये तथा दिमाग में बैठे इसके लिए आवश्यक है कि सत्संग करो। अच्छे कर्म करो तथा कर्तव्य का पालन करो। हम क्या हैं वह समझें। हम ये स्थूल व सूक्ष्म शरीर नहीं हैं। जब स्वयं को ईश्वर का अविभाज्य स्वरूप मानते हैं, तब जीवन्मुक्ति माँगते हैं। जीवन्मुक्ति क्या है ? सदैव आनंद में रहना। अपना-अपना कर्तव्य निभा के स्वयं को पहचान कर जीवन्मुक्त बनें।
यह बात आम नहीं है। हममें जीवन्मुक्ति प्राप्त करने के लक्षण होने चाहिए। राजा वह जिसके पास सेना हो, खजाना हो। इनके बिना शाह होना नामुमकिन है। हममें भी विवेक, वैराग्य, षट्सम्पत्ति आदि गुण नहीं हैं तो जीवन्मुक्त कैसे होंगे ?”
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2018, पृष्ठ संख्या 19 अंक 304
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