प्राचीन काल में भारत की शिक्षण प्रणाली ऐसी थी कि विद्यार्थी 5 साल की उम्र से गुरुकुल में प्रवेश पाता और 15 साल तक उसको ऐसे संयमी और सादा जीवन बिता के इहलोक और परलोक में प्रभुत्व जमा दे ऐसी शक्तियों का विकास करता। देवता भी दैत्यों के साथ युद्ध में खट्वांग जैसे राजाओं की सहाय लेते थे। गुरुकुल में ऐसे विद्यार्थी तैयार होते थे।
अँग्रेज़ शासन आया और मैकाले ने अंग्रेज सरकार को सलाह दी कि जब तक भारतीय संस्कृति के संस्कारों का उन्मूलन नहीं किया जायेगा और पाश्चात्य पद्धति का अभ्यास नहीं करायेंगे, तब तक इन लोगों को हम स्थायी गुलाम नहीं बना सकेंगे। इससे अंग्रेजों ने हमारे भारतीय विद्यार्थियों और युवानों का ब्रेन वॉश करना शुरु किया। फलतः हमारी संस्कृति के गर्भ में जो संयम, सादगी और निष्ठा थी, ओज और तेज था वह सब अस्त-व्यस्त हो गया। कुछ लोग कहते हैं कि ‘यह विकास का युग है।’ लेकिन मैं कहता हूँ कि यह विद्यार्थियों के लिए तो बिल्कुल विनाश का युग है। उनके साथ इस युग में जो अन्याय हो रहा है ऐसा कभी हुआ नहीं था। उन्हे पहले देशी गाय का दूध मिलता था पर अभी चाय-कॉफी मिलती है। इससे यौवन की सुरक्षा नहीं बल्कि नाश होता है, यादशक्ति घटती है। विद्यार्थी जीवन में साहस, बल और तेज का विकास करने की जो दीक्षा मिलती थी, जो ऋषियों की पद्धति थी वह सब अस्त-व्यस्त हो गयी। अभी तो…..
I stout, you stout,
who shall carry the dirt out ?
मैं भी रानी, तू भी रानी,
कौन भरेगा घर का पानी ?
इच्छा-वासनाएँ, दिखावा बढ़ गया और भीतर से जीवन खोखला हो गया। चाय-कॉफी, बीड़ी सिगरेट, शराब, भाँग जैसे पदार्थों से स्मरणशक्ति क्षीण हो जाती है। देशी गाय का दूध, ताजा मक्खन, गेहूँ, चावल, अखरोट, तुलसी-पत्ते इत्यादि के सेवन से जीवनशक्ति और स्मरणशक्ति का विकास होता है। प्रतिदिन सुबह आँखें बंद करके सूर्यनारायण के सामने खड़े रहो और नाभि से आधा से.मी. ऊपर के भाग में भावना करोः ‘सूर्य के नीलवर्ण का तेज मेरे केन्द्र में विकास के लिए आ रहा है।’ और श्वास भीतर खींचो। सूर्यकिरणें सर्वरोगनाशक व स्वास्थ्य प्रदायक हैं। सिर ढककर 8 मिनट सूर्य की ओर मुख व 10 मिनट पीठ करके बैठें।
समय बहुत अधिक न हो व धूप तेज न हो। इसकी सावधानी रखें। ऐसा सूर्यस्नान लेटकर करें तो और अच्छा। सूर्यनमस्कार भी करो। इससे स्वास्थ्य के साथ स्मृतिशक्ति भी गज़ब की बढ़ने लगेगी।
आज चारों ओर उपदेशों की भरमार है कि ‘चोरी मत करो, शराब मत पियो, बुरी आदतों का त्याग करो, दिल लगाकर अभ्यास करो….’ लेकिन चोरी न करके ध्यान देकर पढ़ने की जो युक्ति है, जो पद्धति है वह लोग भूलते गये। फिर विद्यार्थी बेचारा क्या करे ? नकल करके, कैसे भी करके परीक्षा में पास हो जाता है। लेकिन जीवन में ओज, बल और स्वावलम्बन होना चाहिए वह प्रायः विद्यार्थियों के जीवन में नहीं दिखाई देता। संयमी और साहसी जीवन जीने की हमारी भारतीय परम्परा है। 15 साल की उम्र तक साहस और संयम के जितने भी संस्कार बालक में डाले जायेंगे उतना ही वह बड़ा होकर प्रखर बुद्धिमान, स्वावलम्बी और साहसी सिद्ध होगा।
हम सब मिलकर नींव मजबूत बनायें
स्कूल कॉलेज में नियम और कायदे तो बनाये जाते हैं लेकिन विद्यार्थी की नींव का जीवन जैसा मजबूत बनना चाहिए उस पर सबको साथ मिलकर विचार, पुरुषार्थ करने की जरूरत है। आज के विद्यार्थी कल के नागरिक बनेंगे, देश के नेता आदि बनेंगे।
विद्यार्थियो ! सुबह जागो तब संकल्प करो कि ‘मैं भगवान का सनातन अविभाज्य अंग हूँ। मुझमें परमात्मा का अनुपम तेज और बल है। गिड़गिड़ा के, चोरी करके या विलासी हो के जीवन जीना नहीं है, संयम और सदाचार से जीवनदाता का साक्षात्कार करना है।’
शरीर को तन्दुरुस्त करने के लिए ध्यान व आसन है। इनके आपकी शक्ति का विकास होगा। आसन से रजोगुण कम होता है, सत्त्वगुण बढ़ता है, स्मृतिशक्ति बढ़ती है।
ज्ञानमुद्रा में ध्यान में बैठने का प्रयास करो। सच्चे हृदय से प्रार्थना करोः ‘असतो मा सद्गमय। मुझे असत्य आसक्तियों, असत्य भोगों से बचाओ। तमसो मा ज्योतिर्गमय। शरीर को मैं और संसार को मेरा मानना – इस अज्ञान अंधकार से बचाकर मुझे आत्मप्रकाश दो। मृत्योर्मामृतं गमय। मुझे बार-बार जन्मना-मरना न पड़े ऐसे अपने अमर स्वरूप की प्रीति और ज्ञान दे दो। ओ मेरे सदगुरु ! हे गोविन्द ! हे माधव !…. ऐसे सुबह थोड़ी देर प्रार्थना करके शांत हो जाओ। इससे बुद्धि में सत्त्व बढ़ेगा और बुद्धि मजबूत रहेगी, मन की गड़बड़ से मन को बचायेगी और मन इन्द्रियों को नियन्त्रित रखेगा।
अब करवट लो !
अब करवट लो बच्चो भाइयो, बच्चियो-देवियो ! तुम्हारा मंगल हो ! ‘जीवन-विकास, दिव्य प्रेरणा प्रकाश, ईश्वर की ओर जैसी पुस्तकें बार-बार पढ़ो-पढ़ाओ और हो जाओ उस प्यार के ! (ये पुस्तकें आश्रम व समिति के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं।) वह बल बुद्धि देता है, विवेक-वैराग्य भी देता है। असंख्य लोगों को देता आया है। तुम्हें भी देने में वह देर नहीं करेगा। पक्की प्रीति, श्रद्धा-सबूरी से लग जाओ, पुकारते जाओ। करूणानिधि की करुणा, प्यारे का प्यार उभर आयेगा। ॐ ॐ प्रभु जी ॐ…. प्यारे जी ॐ… मेरे जी ॐ….. आनंद ॐ….
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2018, पृष्ठ संख्या 2,10 अंक 304
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ