(विजयदशमी, दशहराः 18 व 19 अक्तबूर 2018)
लौकिक विजय वही होती है जहाँ पुरुषार्थ और चेतना होती है। आध्यात्मिक विजय भी वहीं होती है जहाँ सूक्ष्म विचार होते हैं, बुद्धि की सूक्ष्मता होती है, चित्त की शांत दशा होती है। तो आध्यात्मिक और लौकिक – दोनों प्रकार की विजय प्राप्त करने का संदेश विजयदशमी देती है।
नौ दिन (नवरात्रि) के बाद दसवें दिन जो शक्ति वह अपने कार्यों में विजय प्राप्त करने में लगायी जाती है। भगवान राम ने इसी दिन रावण पर विजय पाने के लिए प्रस्थान किया था। इस दिन राजा रघु ने कुबेर को युद्ध के लिए ललकारा और कौत्स मुनि को गुरुदक्षिणा दिलाने के लिए स्वर्ण-मुहरों की वर्षा करवायी। छत्रपति शिवाजी ने औरंगजेब को मात देने इसी दिन प्रस्थान किया और वे हिन्दू धर्म की रक्षा करने में सफल हुए। जिसके पास मौन की शक्ति है, संयम की शक्ति है, जिनकी आध्यात्मिक शक्तियाँ विकसित हो गयी हैं उनके कार्य बिना चौघड़िये देखे भी सफल हो जाते हैं।
नायमात्मा बलहीनेने लभ्य….
दशहरे के दिन तुम्हारा मनरूपी घोड़ा परमात्मारूपी द्वार की तरफ न दौड़े तो कब दौड़ेगा ?
सत्संग मनुष्य को जीवन के संग्राम में विजय दिला देता है। दैवी सम्पदा की उपासना राम की उपासना है और वासना के वेग में बह जाना, अहंकार को पोषित करके निर्णय लेना यह आसुरी सम्पदा की उपासना है, रावण का रास्ता है। अहंकार को विसर्जित करके सबकी भलाई हो ऐसा यत्न करना, यह राम जी का रास्ता है।
विजयादशमी से हमें यह संदेश मिलता है कि भौतिकवाद भले कितना भी बढ़ा-चढ़ा हो, अधार्मिक अथवा बहिर्मुख व्यक्ति के पास कितनी भी सत्ताएँ हों, कितना भी बल हो फिर भी अंतर्मुख व्यक्ति डरे नहीं, उसकी विजय जरूर होगी।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2018, पृष्ठ संख्या 12 अंक 309
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