सेवा का उद्देश्य क्या है ? सेवा के द्वारा तुम्हारा हृदय शुद्ध होता है। अहंभाव, घृणा, ईर्ष्या, उच्चता की भावना और इसी प्रकार की सारी कुत्सित भावनाओं का नाश होता है तथा नम्रता, शुद्ध प्रेम, सहानुभूति, सहिष्णुता और दया जैसे गुणों का विकास होता है। सेवा से स्वार्थ-भावना मिटती है, द्वैत भावना क्षीण होती है, जीवन के प्रति दृष्टिकोण विशाल और उदार बनता है। एकता का भान होने लगता है, आत्मज्ञान में गति होने लगती है। ‘एक में सब, सब में एक’ की अनुभूति होने लगती है। तभी असीम सुख प्राप्त होता है।
आखिर समाज क्या है ? अलग-अलग व्यक्तियों या इकाइयों का समूह ही तो है। ईश्वर ही के व्यक्त रूप के अलावा विश्व कुछ नहीं है। सेवा ही पूजा है। सेवा एवं आत्मज्ञानी महापुरुषों के कृपा-उपदेश से निष्काम कर्म करने वालों को पूर्णता प्राप्त होती है। जैसे हनुमान जी सेवा से तथा सीता जी और श्रीराम जी के उपदेश से ब्रह्मानुभूति सम्पन्न हुए।
भेद-भावना घातक होती है अतः उसे मिटा देना चाहिए। उसे मिटाने के लिए ब्रह्म-भावना का, चैतन्य की अद्वैतता का विकास और निःस्वार्थ सेवा की आवश्यकता है। भेद-भावना अज्ञान या माया द्वारा रचित एक भ्रममात्र है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2018, पृष्ठ संख्या 17 अंक 309
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