भगवान ने अपना दैवी कार्य करने के लिए हम लोगों के तन को, मन को पसंद किया यह कितना सौभाग्य है ! और ईश्वर की यह सेवा ईश्वर ने हमें सौंपीं यह कितना बड़ा भाग्य है ! समाज और ईश्वर के बीच सेतु बनने का अवसर दिया प्रभु ने, यह उसकी कितनी कृपा है ! पैसा कमाना, पैसों का संग्रह करना, संसार के विषय-विकारों में खप जाना यह कोई बहादुरी नहीं है लेकिन भगवान के दैवी कार्य में भागीदार होना बड़ी बहादुरी है, बड़ा सौभाग्य है। भगवान के दैवी कार्य में भगवन्मय हो जाना – इससे बड़ा सौभाग्य क्या हो सकता है। मुझे तो नहीं लगता है कि इससे बड़ा कोई सौभाग्य होता होगा। हम लोगों का बहुत-बहुत बड़ा भाग्य है। ये जो सेवक – बेटे-बेटियाँ, साधक-साधिकाएँ सेवा करते हैं, कितने बड़े भाग्य हैं इनके ! परमात्मा की प्रेरणा के बिना कोई ईमानदारी से सेवा नहीं कर सकता है।
धन का लोभी, वाहवाही का लोभी, पद का लोभी व्यक्ति कुछ भी कर ले उसे ऐसा आनंद नहीं आता जैसा ईश्वर के दैवी कार्य में लगे साधक-साधिकाओं को आता है। ईश्वर की सेवा में ऐसा आनंद आता है कि कल्पना नहीं कर सकते। ऐसा ज्ञान आता है, ऐसी सूझबूझ आती है कि सोच नहीं सकते।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2018, पृष्ठ संख्या 17 अंक 311
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