कमजोर मन का, कमजोर हृदय का व्यक्ति हो या भोंदू से भोंदू (बुद्धु) अथवा कितना भी दब्बू विद्यार्थी हो, वह पीपल, तुलसी की परिक्रमा करे, उन्हें स्पर्श करे (रविवार को पीपल का स्पर्श करना वर्जित है) और वहाँ प्राणायाम करे । गहरा श्वास लेकर भगवन्नाम जपते हुए 1 मिनट अंदर रोके । फिर श्वास धीरे-धीरे छोड़ दे और स्वाभाविक 2-4 श्वास ले । फिर पूरा श्वास बाहर निकाल के 50 सेकंड बाहर रोके । दोनों मिलाकर एक प्राणायाम हुआ । ऐसे 4-5 प्राणायाम शुरु करे । धीरे-धीरे कुछ दिनों के अंतराल में 5-5 सेकंड श्वास रोकना बढ़ाता जाय । इस प्रकार 80-100 सेकंड श्वास भीतर रोके और 70-80 सेकंड बाहर रोके । इससे प्राणबल, मनोबल, बुद्धिबल व रोगप्रतिकारक बल बढ़ेगा ।
पीपल की परिक्रमा से हृदय के रोगियों को भी फायदा होता है । हम भी बचपन में पीपल को सींचते थे और थोड़ी प्रदक्षिणा करते थे । हम दब्बू नहीं हैं यह हमें भरोसा है । थोड़ा सा ही पढ़ते थे पर 100 में से 100 अंक लाते, कक्षा में प्रथम स्थान आता था । पढ़ के फिर चले जाते किसी शांत जगह पर और ध्यान में बैठ जाते थे ।
जिनको बुद्धि विकसित करनी हो, बुद्धि का काम जो करते हैं उनको प्याज, लहसुन और तामसी भोजन (बाजारू, बासी व जूठा भोजन, चाय, कॉफी, ब्रेड, फास्टफूड आदि) से बचना चाहिए । देर रात के भोजन से बचना चाहिए । सात्त्विक भोजन करने से बुद्धि और ज्ञानतंतु पुष्ट होते हैं और सुषुप्त ऊर्जा जागृत होती है ।
विद्यार्थी के जीवन में अगर सारस्वत्य मंत्र व साधक के जीवन में ईश्वरप्राप्ति का मंत्र और मार्गदर्शन मिल जाय किन्हीं परमात्म-अनुभूतिसम्पन्न महापुरुष द्वारा तो वह व्यक्ति तो धन्य हो जायेगा, शिवजी कहते हैं-
धन्या माता पिता धन्यो गोत्रं धन्यं कुलोद्भवः ।
धन्या च वसुधा देवि यत्र स्याद गुरुभक्तता ।।
उसके माता पिता, कुल-गोत्र भी धन्य हो जायेंगे, समग्र धरती माता धन्य हो जायेगी ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2019, पृष्ठ संख्या 18 अंक 316
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