बुद्धि के देव की आराधना – उपासना का दिवस

बुद्धि के देव की आराधना – उपासना का दिवस


(गणेश चतुर्थीः 2 सितम्बर 2019)

भगवान के 5 रूप सनातन धर्म के साधकों के आगे बड़े सुविख्यात हैं – सूर्य, शिव, विष्णु, शक्ति (जगदम्बा) और गणपति जी । गणपति जी की पूजा अपने देश में होती है और सनातन धर्म का प्रभाव जहाँ-जहाँ फैला है – बर्मा, चीन, जापान, बाली (इंडोनेशिया), श्री लंका, नेपाल – वहाँ भी गणेश चतुर्थी का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है, पूजन किया जाता है ।

शुभ कार्य में गणपति जी का पूजन प्रथम होता है फिर वह चाहे विवाह हो, चाहे जन्म हो, चाहे मकान की नींव डालते हों, वास्तु-पूजन हो, चाहे दुकान या फैक्ट्री का उद्घाटन हो । कोई शुभ काम करते हैं तो प्रभावशाली श्रेष्ठ पुरुषों को सत्कार या प्रेम देने से, थोड़ा आदर करने से विघ्न बाधाएँ दूर हो जाती हैं । ऐसे श्रेष्ठ में श्रेष्ठ प्रभावशाली गणपति भगवान हैं तो गणपति जी का मन से चिंतन करके उनकी पूजा-प्रतिष्ठा करने से कार्य निर्विघ्नता से सम्पन्न होते हैं ऐसा कहा गया है ।

अगर माँ बालक को बुद्धिमान, तेजस्वी देखना चाहती हो तो वह गणेश चौथ का उपवास करे, व्रत करे, जप करे ।

गणानां पति इति गणपतिः । ‘गण’ माने इन्द्रियाँ, इन्द्रियगणों के जो स्वामी हैं उनको ‘गणपति’ कहा जाता है । ब्रह्मवैवर्त पुराण में आता है कि न गणेशात्परो वशी । ‘गणेश जी से बढ़कर कोई संयमी नहीं ।’

बुद्धिमान लोग ऐसा भी अर्थ लगाते हैं कि गणपति का वाहन छोटा है, मूषक (चूहा) है । बीच में शरीर मनुष्य का है और सिर बड़ा है । अर्थात् क्षुद्र जीव में से मानव होना चाहिए और मानव में से फिर विशाल मस्तिष्क वाले अर्थात् तत्त्ववेत्ता हो जाना चाहिए ।

भूल से चन्द्र दर्शन हो जाय तो….

भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन से कलंक लगता है । इस वर्ष गणेश चतुर्थी (2 सितम्बर 2019) के दिन चन्द्रास्त रात्रि 9.25 बजे है । अतः इस समय तक चन्द्र-दर्शन न करें । यदि भूल से चन्द्रमा दिख जाय तो श्रीमद्भागवत के 10वें स्कन्ध के 56-57वें अध्याय में दी गयी ‘स्यमंतक मणि की चोरी’ की कथा का आदरपूर्वक पठन-श्रवण करें । इससे अच्छी तरह कुप्रभाव मिटता है । तृतिया (1 सितम्बर 2019) तथा पंचमी (3 सितम्बर 2019) के चन्द्र दर्शन कर लें, यह कलंक निवारण में मददरूप है ।

(अधिक जानकारी हेतु आश्रम की समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध पुस्तक ‘क्या करें, क्या न करें ?’ का पृष्ठ 49 देखें ।)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2019, पृष्ठ संख्या 13 अंक 320

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