इस सिंहासन पर भगवान को ही आसीन करो

इस सिंहासन पर भगवान को ही आसीन करो


एक सज्जन के पुत्र ने उनकी सम्मति के बिना विवाह कर लिया । वे बहुत दुःखी हुए । एक महात्मा के पास गये । महात्मा बोलेः “तुम अपने हृदय को क्यों बिगाड़ते हो ? जिस हृदय में भगवान को रहना चाहिए उसमें दूसरे को क्यों बिठाते हो ? तुम ही तो भूल करते हो ! तुम बेटे को अपना क्यों समझते हो ? उसे भगवान का समझो । देखो, यह अपना हृदय खजानों का खजाना है । इसे सुरक्षित रखो । इसे मत बिगाड़ो । यदि हृदय सुरक्षित रहेगा तो सब सुरक्षित रहेगा । हृदय के सिंहासन पर भगवान को ही आसीन करो ।

रक्षत रक्षत कोषानामपि कोषं हृदयं

यस्मिन् सुरक्षिते सर्वं सुरक्षितं स्यात् ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2019, पृष्ठ संख्या 6 अंक 321

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