श्रावस्ती के अनाथपिंडक नामक एक सेठ के पुत्र का विवाह साकेत के प्रसिद्ध सेठ धनंजय की पुत्री सुजाता के साथ हुआ था । सुजाता को बड़े कुल की बेटा होने का अभिमान था जो उसके व्यवहार में साफ झलकता था । ससुराल मं वह परिवार के सभी सदस्यों का अनादर करती थी । अनाथपिंडक सेठ की महात्मा बुद्ध के प्रति गहन आस्था थी । एक बार बुद्ध उसके घर ठहरे । उनका प्रवचन सुनने वालों के स्वागत की व्यवस्था सेठ ने की थी । जैसे ही बुद्ध ने कथा प्रारम्भ की तो अंदर से एक स्त्री की कर्कश आवाज सुनाई दी । सुजाता नौकरों को बुरी तरह से डाँट रही थी । बुद्ध तनिक रुके और पूछाः “ये अपशब्द कौन बोल रहा है ?”
सेठ बुद्ध के सामने घर की बात छिपा न सके । उन्होंने कहाः “भंते ! यह मेरी पुत्रवधु की आवाज है । वह सदैव अपने सास-ससुर, पति व नौकरों से दुर्व्यवहार करती है ।”
बुद्ध ने सुजाता को बुलवाया और स्नेहभरे शब्दों में बोलेः “सुजाता ! सात प्रकार की पत्नियाँ होती हैं । तुम उनमें से किस प्रकार की हो ?”
“भंते ! कौन से 7 प्रकार होते हैं, मैं नहीं जानती ।”
बुद्धः “देवी ! सुनो, 3 प्रकार की स्त्रियाँ बुरी और अवांछनीय होती हैं । इनमें से पहले प्रकार की स्त्रियाँ परेशान करने वाली होती हैं । वे दुष्ट स्वभाव वाली, क्रोधी व दयारहित होती हैं और साथ ही पति के प्रति वफादार नहीं होतीं, पर पुरुषों में प्रीति रखती हैं ।
दूसरी चोर की तरह होती हैं । वे अपने पति की सम्पदा को नष्ट करती रहती हैं या उसमें से अपने लिए चुराकर रखा करती हैं ।
तीसरी क्रूर मालिक की तरह होती हैं । वे करुणारहित, आलसी व स्वार्थी होती हैं । वे हमेशा अपने पति व औरों को डाँटती रहती हैं ।
अन्य 4 प्रकार की स्त्रियाँ अच्छी और प्रशंसनीय होती हैं । वे अपने अच्छे आचरण से आसपास के लोगों को सुख पहुँचाने का प्रयास करती हैं । इनमें से पहले प्रकार की माँ की तरह होती हैं । वे दयालु होती हैं और अपने पति के प्रति स्नेहभाव रखती हैं जैसे एक माँ का एक पुत्र के प्रति होता है । पति की कमाई, घर की सम्पदा व लोगों की समय-शक्ति का व्यर्थ व्यय न हो इसकी वे सावधानी रखती हैं ।
दूसरी बहन की तरह होती हैं । वे अपने पति के प्रति ऐसा आदरभाव रखती हैं जैसे एक बहन अपने बड़े भाई के प्रति रखती है । वे विनम्र और अपने पति की इच्छाओं के प्रति आज्ञाकारी होती हैं ।
तीसरी मित्र की तरह होती हैं । वे पति को देख उसी तरह आनंदित होती हैं जैसे कोई अपने उस सखा को देखकर आनंदित होता है जिसे उसे बहुत समय से देखा नहीं था । वे जन्म से कुलीन, सदाचारी और विश्वसनीय होती हैं ।
चौथी दासी की तरह होती हैं । जब उनकी कमियों को इंगित किया जाता है तब वे एक समझदार पत्नी के रूप में व्यवहार करती हैं । वे शांत रहती हैं और उनका पति कभी कठोर शब्दों का उपयोग कर देता है तो भी वे उसको सकारात्मक लेती हैं । वे अपने पति की इच्छाओं के प्रति आज्ञाकारी होती हैं ।
सुजाता ! अब तुम बताओ कि इनमें से तुम कौन सी हो ?”
सुजाता को अपने दुर्व्यवहार पर पश्चाताप होने लगा । तत्क्षण उसका हृदय परिवर्तन हो गया । वह नतमस्तक होकर कहने लगीः “भंते ! मैं अपने आचरण से लज्जित हूँ । मैं आपको आश्वासन देती हूँ कि भविष्य में मैं सभी के प्रति सद्व्यवहार करूँगी ।”
(अपने परिवार के लोगों व अपने सम्पर्क में आने वाले अन्य लोगों के साथ अपना व्यवहार कैसा होना चाहिए – यह जानने तथा अपने व्यवहार को मधुर बनाने हेतु पढ़ें पूज्य बापू जी के सत्संग पर आधारित सत्साहित्य ‘मधुर व्यवहार’ व ‘प्रभु-रसमय जीवन’ । ये सत्साहित्य आश्रम की समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं ।)
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2019, पृष्ठ संख्या 21,25 अंक 321
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