ऐसी कथाएँ सुनने वालों के कल्याण में देर नहीं-पूज्य बापू जी

ऐसी कथाएँ सुनने वालों के कल्याण में देर नहीं-पूज्य बापू जी


कई वाद हैं, कई सिद्धान्त हैं, कई कहानियाँ हैं । कहानियाँ मनुष्यों को प्यारी लगती हैं । लोगों को कथा-कहानियाँ, किस्से सुनने का, बोलने का, पढ़ने का शौक यह बताता है कि ये उपन्यास क्यों बने और क्यों चलते हैं । कथा पढ़ने-सुनने में मनुष्य की रूचि रहती है इसलिए उपन्यासों का प्रचार चला । हलके उपन्यास एवं आलतू-फालतू किस्से कहानियों का साहित्य भी खूब चल पड़ा है । लेकिन उनकी जगह पर अगर भगवद् तत्त्व का ज्ञान देने वाले किस्से होते, कहानियाँ होतीं, जैसे – फलाने गुरु शिष्य की ऐसी-ऐसी चर्चा हुई, फलाने ऋषि का भगवान की प्राप्ति का यह मार्ग रहा… राजा जनक, महर्षि याज्ञवल्क्य जी जैसे महापुरुषों के कथा-प्रसंग…. इस प्रकार की घटनाएँ-कथाएँ प्राचीन हो चाहें वर्तमान युग की हों, वे सत् से मिलाने में सहायता करती हैं और जीव का कल्याण कर ही देती हैं ।

कहानियाँ सुनने में मजा आता है । भगवान श्री रामचन्द्र जी को भी सत्संग-कथा में बड़ा रस आता था । रामायण में वर्णन आता है कि श्रीराम जी कथाप्रिय थे । भोजन आदि करते और फिर तुरन्त सत्संग कथा में बैठ जाते । राम जी गुरु विश्वामित्रजी, महर्षि वसिष्ठजी आदि से पौराणिक कथा वार्ताएँ, घटनाएँ सुनते थे । तो अपने आत्म परमात्मस्वभाव में जगह हुए ऋषियों के द्वारा जो लोग भगवद्-तत्त्व का ज्ञान देने वाली कथाएँ सुनते हैं वे अपने आत्म-परमात्मस्वभाव में जग जाते हैं ।

विकार पैदा करने वाली पिक्चरें, सिनेमा देखने से विकार पैदा होते हैं लेकिन परमात्मप्राप्ति वाली पिक्चरें देखें तो निर्विकारी परमात्मा को पाने की ललक पैदा होती है, परमात्म-प्रीति जगती है । पर जिनको परमात्मप्राप्ति हुई है उनकी पिक्चर कौन उतार सकता है…. फिर भी उनके जीवन की थोड़ी-बहुत बातें लेकर जो फिल्में बनती हैं वे भी समाज के लिए ईश्वरप्राप्ति की पथप्रदर्शक बन सकती हैं । चश्मदीद गवाह की कीमत होती है, सुने हुए से भी देखा हुआ विशेष प्रमाणभूत माना जाता है । तो जिन ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों को देखा है, जिनके सत्संग से साधकों के जीवन में परिवर्तन देखा है, जिनके सत्संग में, जिनके द्वारा बतायी हुई साधना में ईश्वरत्व का अंश देखा है उनके सम्पर्क से दूसरे लोगों का खूब लाभ होता है ।

इसलिए संत कबीर जी कहते हैं-

कथा कीर्तन रात दिन जिनका उद्यम येह ।

कह कबीरा वा संत की हम चरनन की खेह(धूल) ।।

कबीरा माँगे माँगणा, प्रभु दीज्यो मोहे दोय ।

संत समागम हरिकथा, मो घर निशदिन होय ।।

तो ये हरिकथा है, भगवद् कहानियाँ हैं, संत-समागम है फिर व्यर्थ की कथा-कहानियाँ क्यों सुनें ? उनसे तो जीवन व्यर्थ हो जायेगा । किस्से कहानियाँ, बातें भी वे ही सुनो पढ़ो जिनसे भगवत्प्रीति पैदा हो, भगवद्ज्ञान पैदा हो, भगवद् निमित्त सेवा में उत्साह आता हो, भगवत्संबंधी मन बनता हो, भाव बनता हो, फिर कल्याण होने में देर नहीं है ।

( सावधान ! आजकल घर में टी.वी., रेडियो, अखबारों, पत्रिकाओं, कॉमिक्स, वेबसाइटों, मोबाइल गेम्स, फिल्मों आदि के माध्यम से किस प्रकार की कथा-कहानियाँ, धारावाहिक, कार्यक्रम, विज्ञापन आदि सामग्री मनोरंजन और मार्गदर्शन के नाम पर परोसी जा रही है यह सभी को भली प्रकार ज्ञात है एवं गहन चिंता का विषय बना हुआ है । ऐसे में यदि हमारी दृष्टि में अपने और परिवार जनों के जीवन का थोड़ा भी महत्त्व है, अपना और समाज का जीवन पशुता, पिशाचता एवं दानवता की खाई में नहीं गिरने देना चाहते हैं तो देश के बुद्धिमानों, पवित्रात्माओं, मनीषियों एवं समाजहितैषियों को तत्काल सचेत होने की आवश्यकता है । हम सबका यह नैतिक और राष्ट्रीय कर्तव्य है कि हम घर-घर को भगवद् रस, भगवद् ज्ञान, भगवत् प्रेम, परमात्मशांति, निर्दोष-निर्विकारी आनंत से ओतप्रोत सामग्री से सुसमृद्ध बनाकर अपने राष्ट्र और समाज की घोर पतन से रक्षा करें । ध्यान रहे, सद्विचार एवं सत्कर्म ही सम्पदा है । इसी से सुमति एवं बाहरी सम्पदा प्राप्त होती है और अधिक समय तक टिकती है । आश्रम के मासिक प्रकाशन ‘ऋषि प्रसाद’, लोक कल्याण सेतु, मासिक वीडियो मैगजीन ‘ऋषि दर्शन’, मंगलमय इन्टरनेट चैनल एवं पूज्य बापू जी के सत्संग पर आधारित सत्साहित्य, वी.सी.डी., डी.वी.डी., एम. पी. थ्री. आदि जीवन की उपरोक्त माँग की सम्पूर्णरूप से पूर्ति करते हैं । अतः इनका लाभ सभी को लेना चाहिए एवं दूसरों तक हर प्रकार से पहुँचाना चाहिए । )

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2019, पृष्ठ संख्या 16,17 अंक 321

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