शिष्य के हृदय के तमाम दुर्गुनरूपी रोग पर गुरुकृपा सबसे अधिक असरकारक, प्रतिरोधक एवं सार्वात्रिक औषध है। जो गुरु भक्तियोग का अभ्यास करना चाहते हैं, उन्हें सब दिव्य गुणों का विकास करना चाहिए जैसे कि सत्य बोलना, न्याय परायणता, अहिंसा, इच्छा शक्ति, सहिष्णुता, सहानुभूति,स्वाश्रय, आत्मश्रद्धा, आत्म संयम, त्याग, आत्म निरक्षण, तत्परता, सहनशक्ति, विवेक, वैराग्य, हिम्मत, आनंदित स्वभाव, हर एक वस्तु मे मर्यादा रखना आदि।
गोस्वामी जी कहते है कि जीव जब गर्भ मे होता है तो ईश्वर से प्रार्थना करता है कि हे जगतपति ! मुझे इस नरक से मुक्त करो, इस बंधन से छुड़ाओ, मैं आपकी भक्ति करूंगा, आपकी ओर उन्मुख होऊंगा। परन्तु जीव जैसे ही उस दुखद अवस्था से बाहर आता है तो अपने दिए हुए वचनों पर ध्यान न केंद्रित कर पुनः गर्भावास की तैयारी मे खूब तत्परता से जुट जाता है परन्तु जब इस जीव को सदगुरु की शरण प्राप्त होती है तो वहीं जीव हसते खेलते, इठलाते बालकवत ईश्वर की ओर सहजता से अग्रसर होता जाता है।
गुरु और शिष्य मे जो सेतु जोड़ने का काम करती है वह है *गुरु के वाक्य*।
गुरु के श्री मुख से जो सूत्र निकलते हैं वही साधकों की वास्तविक रक्षा करती हैं और वही साधक के लिए रक्षा सूत्र है, इसी को वैदिक रक्षा सूत्र कहते है। गुरु के वाक्य ही वैदिक रक्षा सूत्र है, गुरु अपने साधकों को ये वैदिक रक्षा सूत्र बांधते हैं जिससे साधक सदैव रक्षित रहता है।
ये सतगुरु का रक्षा सूत्र यहां भी रक्षण करता है और वहां भी रक्षण करता है इसलिए गुरु के वाक्यों को ऋषियों ने मंत्रो का मूल बताया है।
*गुरुवर जो कहते है वो बात इलाही है इसमें नुक्ता चीनी की सख्त मनाही है।*
श्रेष्ठ शिष्य वही होता है जो गुरु के प्रत्येक वाक्य को उनके प्रत्येक वचन को मंत्र वत अपने जीवन मे धारण कर गुरु भक्ति के मार्ग पर चलता रहे, वे जानते है कि गुरु वह शक्ति, वह सत्ता है या कहे कि वह कृपा है जो शिष्य को अपनी शरण मे लेकर सब कुछ देने आती है। गुरु के देने व शिष्य के लेने के बीच जो सेतु है वह है गुरु का वाक्य। गुरु के वचन मुख से निकले शब्द मात्र नहीं होते, वे तो अथाह शक्ति के पूंज हुआ करते हैं।
जिसका पालन करने के लिए सम्पूर्ण सृष्टि भी आंदोलित हो जाती हैं, प्रकृति की समस्त शक्तियां बाध्य हो उठती है, जिस शिष्य ने गुरु वचनों पर विश्वास कर उन्हें जीवन मे धारण कर लिया उनके लिए दुख सिंधु यहां तक ही भवसागर सूख जाते है। जब शिष्य गुरुवचनो को सर्वोपरि मानता है तो उसका ऐसा श्रेष्ठ निर्माण होता है कि समस्त संसार उसकी श्रेष्ठता को श्रद्धा वत नमन करता है तभी तो सहजो बाई जी ने कहा कि
*गुण सब गुरु के वचन माही*
सर्वगुण अथवा सब प्रकार की उपलब्धियां गुरु के वचनों के पालन मे ही निहित हैं। घास का एक गठ्ठर उठाने के पीछे गुरु वचन ही तो थे जिनको शिरोधार्य कर भाई लहणा गुरु पद को प्राप्त हो गए, अर्थात गुरु अंगद देव बन गए। शबरी गुरुवचनो पर विश्वास करके सदा सदा के लिए मुक्त हो गई।
*मुनि के वचन समुझी जिय भाए*
चन्द्र गुप्त अपने गुरुदेव चाणक्य के प्रत्येक वाक्य को जीवन मे धारण करके एक साधारण गडरिया से चक्रवर्ती सम्राट बनने का सफर तय कर गया, गुरु के हर वचन पर विश्वास करके ही छत्रपति शिवाजी मुगलों के लिए काल साबित हुए, गुरु के वचन शिष्य के लिए वैदिक रक्षा सूत्र का काम करता है, शिष्य जानते है कि गुरु के मुख से निसृत होता एक एक शब्द ब्रह्मवाक्य होता है, वैदिक होता है, भगवान शिव भी माता पार्वती को समझाते हुए कहते है, गुरु वक्र स्थित ब्रह्म गुरुदेव के वचनों से साक्षात ब्रह्म की प्राप्ति संभव है उनका प्रत्येक वचन ब्रह्म वाक्य होता है इसलिए कहा गया है
*मंत्र मुलं गुरु वाक्यं*
इसलिए गुरु के वचन मंत्र है।
मंत्र किसे कहते हैं?
*मनःत्रायते इति मंत्र* .
जो हमारे मन को त्राण दे वही मंत्र है,
हमारे महापुरुषों ने कहा
*सदगुरु वेद्य वचन विश्वास*
सतगुरु रूपी वैद्य के प्रत्येक वचन पर विश्वास करो, तभी यह भवरोग मिटेगा, उसीसे शिष्य का कल्याण है जिन लोगो ने गुरु के वचनों पर संशय किया उनका क्या हुआ?
*संशयात्मा विनश्यति*
अर्थात जिन लोगो ने शंका की उनका विनाश हो गया। याद रहे गुरु के दिव्य वचनों को आप अपने सांसारिक ज्ञान एवं अल्प बुद्धि की कसौटी पर कसने की भूल ना करे।
उनके रहस्य युक्त वचनों को समझ देने की शक्ति हमारी सीमित बुद्धि में नहीं होती इसलिए सदगुरु जो कहते है वहीं परम सत्य है।
*गुरु के वचन अटपटे झटपट लखे न कोय। जो इनको चटपट लखॆ तो झटपट दर्शन होय।।*
गुरु के वचन सहज नहीं रहस्यात्मक भी होते है उनको मन बुद्धि नहीं श्रद्धा व विश्वास के आधार पर ही समझा जा सकता है। इसलिए कहते है की
मन मुरीद संसार है।
गुरु मुरीद कोई साध।।
जो माने गुरु वचनों को।
ताका मन अगाध।।
अर्थात मन तो संसार का मुरीद है, गुरु का मुरीद तो शिष्य ही हो सकता है जो शिष्य गुरु के वचन मानता है उसकी मती ही सर्वोपरि होती है इसलिए गुरु का हर वाक्य शिष्य के कल्याण के लिए ही होता है, यह वैदिक रक्षा सूत्र हम सभी अपने जीवन मे लाएं। हर बंधन से कर देते गुरु के वचन स्वतंत्र। साधारण से लगने वाले भी होते है यह महामंत्र, कभी स्नेहिल शब्दों से उत्साह मनो मे भर देते, कभी डांट फटकार से निर्माण भी कर देते तो कुछ सहज भाव से भविष्य की गांठें खोलते है, चुप रहकर भी गुरुवर मौन वाणी मे बोलते है गुरु के वचनों पर होता जिन्हें श्रद्धा व विश्वास, कृपा सिंधु फिर बना देते उन शिष्यों को खास।