बाबा बुल्लेशाह कथा प्रसंग (भाग – 5)

बाबा बुल्लेशाह कथा प्रसंग (भाग – 5)


उधर बुल्लेशाह फाका मस्त फकीरी में दिन बसर कर रहा था… गुरू के आश्रम में दीन दुनिया से बिल्कुल बेखबर अपने मौला… अपने सद्गुरू.. इनायत शाह की खुदाई रहनुमाई मे।उसे क्या पता था उसकी वजह से सय्यद हवेली में कलह कलेश की आँधी उठ खड़ी हुई है। वह तो रोजाना की तरह इस दोपहर भी आश्रम की सेवा मे व्यस्त था।तभी आश्रम के बाहर एक शाही बग्गी रुकी। उसमे से भाभीयाँ और बहने नीचे उतरी। मित्र ने आश्रम की ओर दिखाकर कहा “यही है इनायत शाह का आस्ताना जहाँ नवाब साहिब ने जिंदगी गुजारने की ठानी है। ये.. ? भाभीयो की भौए तन गई , इत्र गंध से महकती बहनों का हाथ बरबस ही नाक पे चले गया । अभी वे आस्ताने के मुख्य फाटक पर ही पहुँची होंगे कि भीतर से पाँच छे अराई चरईया निकलते हुए दिखाई दिए साथ में उनके करीबन दर्जनभर भैंसे भी थी भाभीयां बहने बुरके के जाली से उन्हे टुकुर ट्कुर देखने लगी। तभी मित्र तंजीया स्वर मे बोला “भाभीजान ये जो सबसे आगे मुखिया बनके चल रहे है ना… ये ही है हुजूर इनायत शाह बुल्ले के गुरु। “क्या ? यह है इनायत शाह ? कमाल है ! न जाने इस फटे हाल अधेड बुढ्ढे मे भाईजान को क्या दिखा जो इसके पीछे हो लिए। सच मे उनके अकल पर तो ताले लग गए है। भाभीयां माथा ठोकते हुए बोली बहनो का भी तेज तरार हो उभरा…. यह भी तो हो सकता है कि ये बुढ्ढा कोई बड़ा टोटके बाज तांत्रिक हो इसने ही हमारे भाईजान पे कोई टोटका फेका हो।”हाँ हाँ हो सकता है, बिल्कुल मुमकीन है। पर ये साहिब जादे है कहाँ?” भाभीयां एक स्वर मे बोली। कर रहा होगा अंदर भैसो की मालिश । मित्र तड़ाक से बोल पड़ा पीछले दफा उसको यही करते पाया था शायद यहाँ उसको यही काम मिला है । चलो अंदर चलकर देखते है। सभी आश्रम के भीतर अहाते मे चले आए चारों ओर नजरे दौड़ाई परंतु बुल्लेशाह कहीं नजर नही आए। तब मित्र ने एक गुरुभाई द्वारा बुल्लेशाह तक अपने आने का पैगाम भेजा । पैगाम मिलते ही बुल्लेशाह बेखौफ होकर इनके पास आए उसे देखते ही सभी ने अपने बुरको के नकाब उठा दिए। अरे बहने भी आई है। कहो.. कैसी तबीयत है बहनों ? एक बहन ने उखड़े हुए स्वर मे कहा कि तबीयत तो हमारी आपने नासाज कर दी है भाईजान। बुल्लेशाह मुसकराते हुए बोले हमने? अब इतने अंजान भी मत बनिए। यह बताएं कि आप वापस क्यों नही लौटे? हमने तो अपना पैगाम मित्र के जरीए पहुँचा दीया था। क्या आप सबको नही मिला? बहन ने कहा मिला था ,पंरतु यकीन नही हुआ कि हमारे नरम दिल भाईजान ऐसा कहरी और कठोर पैगाम भी भेज सकते है, इसलिए हम खुद चले आए। बुल्लेशाह हसते हुए बोले..क्यों? ऐसा क्या कहर ढा दीया हमने ?बहन बोली “अम्मीजान इतने चाव से आपके निकाह के रंगीन ख्वाब बुनती रही और आपने फकीरी की राह चुनकर एक झटके मे उन्हें तारतार कर दिया। क्या यह किसी कहर से कम है ? बताइए? उन्होंने आजतक आपको लेकर जो अरमान संजोए रखे थे उनका क्या होगा ? फैसला लेने से पहले सोचा आपने ? आपके वालीद अर्थात पिताजी बड़े भाई, भाभीया, हम बहने सभी तो आपसे मोहब्बत करते है सभी का कितना कितना लगाव है आपसे। और आपने इन रिश्तो का जरा कदर भी नही किया। आपको रब की सौगंध भाईजान सच बोलीए क्या हमारे लिए आपके दिल मे थोडी सी भी खीज नही उठती? घर कुनबे का एक लमहा के लिए भी खयाल नही आता । कैसे आप अपनो को छोडकर ये गैरो की बसती मे आ बैठे है। और यह क्या हाल बना रखा है अपना। देखिये आपने संसार की रीत जजबातों के कैसे कैसे पैतरे फेके जा रहे है। गुरू दर पर रहनेवालो के कदमों मे मोह की बेड़ियां कैसे डाली जा रही है। सुबकीयो सुसकियो के रोड़े कंकड़ बिखेरे जा रहे है। दूहाईयो, कसमो, सुगन्धों के जाल बिछाए जा रहे है। आसुओ का ऐसा गहरा दरिया बनाया जा रहा है ,जिसे गुरुभक्त पार न कर सके उसमे डुबकर संसार का ही हो जाए ।संसारवालो तुम्हारे शातीर पैतरे कैसे उसे फासेंगे जो साक्षात प्रेम मूर्ती गुरु की घुघंराली लटो मे उलझ चुका हो। उसकी आलौकीक मुस्कान का कायल हो गया हो। भला क्यों बेकार मेहनत करते हो? सोचो क्या कभी शहद चुसती मधुमक्खी कुड़े के घर की ओर उड़कर जा सकती है। और शिष्य के लिए तो गुरू के चरण ही शहद है और संसार कूड़ा है।बुल्लेशाह को भी प्रेम का वही शहद प्याला मिल चुका था। उसपर अपने गुरू इनायत के सच्चे प्रेम का नशा चढ़ चुका है ऐसा नशा जो कभी नही उतरनेवाला.. ऐसी मादकता जो केवल मन नही आत्मा को भी मदहोश कर देती है। बहनो, भाभीयो ने इस नशे को उतारने की भरसक कोशीश की ,जज्बाती दुहाइयों की छीटें मारी। तर्कों, दलीलों से उसे भरपूर झंझोरा पर सब बेअसर….। *अब हम गुम हुए प्रेम नगर के शहर, बुल्ला शह है दोही जाहनी कोई न दीस्ता गैर ।* भाभी बहनो हम तो इस प्रेम नगर मे गुम हो चुके है, हमारा दिल इसकी नुरानी गलियो मे खो गया है। हमारे पास बचा ही क्या है जिसे साथ लेकर हम आपकी मोह नगरी मे वापिस लौट चले ।हम तो अपने गुरू को बिक चुके है अगर आप जोर जबरदस्ती करेंगे तो फकत् हमारी जिंदा लाश ही आपके साथ लौटेगी । क्या अम्मीजान इस चलती फिरती लाश से अपने अरमान पुरे कर सकेगी ? क्या अम्मी और अब्बूजान एक मुरदे को हवेली मे रखकर खूश रह पाएगे ? अगर आप सभी वाकई हमसे मोहब्बत करते है तो हमे यहीं रहने दीजीए। हमारी दुनीया सदगुरू तक सीमट गयी है। वे हमारे लिए दोनों जहां बन चुके है। अब उनसे अलग हम तीसरा जहाँ कहाँ बसांएगे ये मुमकीन नही…।बहन पल्लु से आँखो की कोर पोछेते हुए बोली ” भाईजान ! बस चंद रोज मे इनायत आपको हमसे भी जादा अजीज हो गए। बरसो के रिश्तों की क्या कोई अहमीयत नही? “इनायत से हमारा नाता चंद रोज का नही जन्मो का है। बल्कि *कुन फैकुनो अग्गेदिया लग्गीया* अर्थात सृष्टी के पहले से है। अबतक बहने जोर-जोर से सुबकने लगी। अपनी कीमती रूमालो से मुह ढापे हुए रोने लगी, परंतु बुल्लेशाह कुटिया की दहलीज पर एकदम तटस्थ बैठा था। अचानक उसकी दृष्टि उसी बाद के वृक्ष पर चली गई जिसके नीचे उसे गुरु ने दीक्षा दी थी। इन यादों का मस्त झोंका उसे भीतर तक छू गया उसके चेहरे पर मुस्कान छा गई गुरु की याद आ गई।बहने सिसक रही हो और भाई बेपरवाह से मुस्कुरा रहा हो अब यह बात अध्यात्म के आंख से देखने पर तो समझ आ सकती है मगर सांसारिक दृष्टी मे तो यह घोर निर्लज्जता है। मोह ममता की अदालत में भीषण अपराध है। भाभीयो से भी यह बरदाश्त नही हुआ एकदम तमक उठी,”भाईजान हमने तो सुना था खुदा से इश्क करनेवाले खुदा के बंदों का भी ख्याल रखते है। उनमे कुटकुट कर इनसानियत भर जाती है पर हम यह क्या देख रही है आपके अदंर का भाई तो क्या इंसान तक कहीं दफन हो गया है। आप अपनो को रुसवा करके मुस्कुराना सीख गए है। आपको तो बस अपने अरमानों का किला खड़ा करने से गर्ज है । फिर भले ही उसकी बुनियाद मे कितनो के अरमानो की लाशें बीछी हो… समझ नही आता यह खुदा परस्ती है या खुदपरस्ती ।”बुल्लेशाह बोले ‘आप हमे गलत समझ रही है भाभीजान… भला हम क्यों किसी को रुसवा करेंगे आपने कहा कि हमें सिर्फ अपने अरमानों से गर्ज है मगर इसी अरमा को ही तो अंजाम देने के लिए हम सभी को यह इंसानी जिस्म मिला है। यह हमारा नही दुनिया भर के संतो और शास्त्रों का फरमान है, रही बात मेरे भीतर के इसांन और भाई की तो भाभीजान वो दफ़न नहीं हुए है अब तो वो मोह के तंग कब्र को फाड़कर रूहानी इश्क… गुरू के इश्क के खुले आकाश में जी उठे हैं। इसी पाक मोहब्बत के वास्ते मै आपसे कहता हूँ कि आप अपने जीगर अरमानों या दर्द का नही रूह के मकसद का खयाल करे। इसके लिए आप भी इनायत शाह की शागिर्दी हासिल करे उनसे दीक्षा ले लीजिए।” सच मे यह सुनकर तो भाभीया झीप गई उन्हें अपने सभी जज्बाती पैतरे विफल होते दिखाई दिए अब उनके पास कोई दलील शेष न बची इसलिए हवेली से जो भावुकता का नकाब ओढ़कर आयी थी उन्हें उतार फेका।अचानक उनकी आवाज में तीखे विद्रोही स्वर निकले एक भाभी बोली “क्या ? कहा उस अराइ बूढ़उ की शागिर्दी? वही ना जो अभी मैली कुचैले चीथड़ों में भैसे हाकता हुआ बाहर जा रहा था” दूसरी बोली “हां हां.. वही.. “बुल्ले शाह मुस्कुराते हुए बोले, ‘अच्छा तो आप सभी को साईं जी का दीदार हो ही गया , सुभानल्लाह ! परंतु मेरी नासमझ भाभियों जिन्हें तुम अधेड़ उम्र का चीथड़ों में लिपटा हुआ बुड्ढा जान रही हो अरे उनकी हकीकत और असलियत कुछ और ही है। हां… मैं मानता हूं मेरे गुरु… हाथ में डंडा, कंधे पर कंबल डालकर जंगल जंगल फीरता है । उसने मामूली चरवाहे जैसी शक्ल बनाई हुई है । उसकी मुकुट भैंसों के बीच रूलती दिखाई देती है ,जंगल की झाड़ झाँखड़ो में छिपी पड़ी है ,परंतु एक बात समझ लो भाभीयो मेरे सतगुरु साक्षात खुदा है, परवरदिगार है वह गरीब नवाज और शाहों के शाह है।”भाभी व्यंगात्मक हंसी के साथ बोली, ‘शाहो के शाह ..जो खुद तो गुदड़ लत्तो में तो था ही आपके भी शाही रेशमी वस्त्र उतरवा लिए और यह चिथड़े पहना दिए ऐसा है वह शाहो का शाह। “सभी भाभियों और बहने तीखे अट्टहास कर उठी चुभते माखौल करने लगी।परंतु एक शिष्य को इससे क्या… *मेरी राहों में आकर वो सदा कांटे बिछाते हैं वह कांटे ही मेरी हिम्मत मेरी कशिश बढ़ाते हैं ।*”ओ भाभियों मुझ पर यू ताने उलाहने क्यों कसती हो अरे सब रल मिलकर मुझे बधाई दो। गुरु के मिलने से मेरी जिंदगी में मुबारक दिन चढ़ आया है, मेरी रूहे हीर को मुर्शीदे रांझा मिल गया है चिरंजीवी शोहर से उसका निकाह हो गया है।’इतना सुन भाभियों ने तेज तर्रार स्वर में कहा “अब्बू जान का तो आपने जीते जी कत्ल कर दिया है, पूरी सय्यद परिवार में जो उनका रुतबा था आन बान था उसे बेदर्दी से आप ने कुचल डाला। वाह क्या नायाब सिला दिया है उनकी मोहब्बत का। जो मौलवी साहब पहले कस्बों की गलियों में सीना तान कर चलते थे आज हवेली की एक कोठरी में मुंह छुपाए शर्मसार हैं, केवल आपके कारण। दिन-रात इसी सोच में घुल रहे हैं कि उनके नूरे चश्म ने खानदान को रौशन करने की बजाय जो कलंक लगाया है उस पर कौन सा नकाब चढ़ाएं सय्यदो की आबरू पर लगे इस शर्मनाक धब्बों को किस दलील से धोया जाए । *बूल्ले नु समझावन आइया बहना ती घर जाइयां आल नबी औलाद अली नो तू क्यों लिका लाइया मन में बुल्यां कहना साड्डा छड़ दे पल्ला राइया* “अरे भाई जान हमारा तो हजरत मोहम्मद और हजरत अली का हैसियत दार कुल है क्यों एक बज्जात अराई की दहलीज पर बैठकर उसे बेआबरू कर रहे हैं। बात की नजाकत समझीये वापस चलिए। छोड़िए इस आराई बुड्ढे का पल्ला, उसकी तो नस्ल तक इंसान की नहीं लगती न शक्ल से न अक्ल से। जिन्हें चराता हांकता है उन्हीं जैसा लगता है। खुद की तो आगे पीछे कोई है नहीं और हमारा भी बसा बसाया घर उजाड़ दिया इस बुड्ढे ने। “”जुबां काबू में रखो भाभी खबरदार अगर अब एक भी लफ्ज़ मेरे गुरु की शान के खिलाफ बोला तो वरना हम भी अपनी सारी तहजीब और हदें भूलने पर मजबूर हो जाएंगे। बुल्ले शाह गरज उठा। भाभियों और बहनों आप सब भी जरा तहज्जुद देकर सुन ले हम डंके की चोट पर ऐलान करते हैं कि आज से हमारी जाति वही है जो हमारे सद्गुरु की जाति है हम भी उसी बिरादरी के हैं जिसके हमारे मौला इनायत है।” *जेहड़ा सानो सैयद सद्दे दोजख मिलन सजाइया जो कोई सानू अराइ आखें भिजती पिंगा पाइया ।* “भाभी जान अब कयामते गिरे या फिर जनाजा निकले हमे रत्ती भर भी परवाह नहीं। हम तो खरा सौदा कर चुके हैं। अपने गुरु के कदमों में बेमोल बिक चुके हैं । इस सिर के लिए कोई दूसरी दहलीज नहीं।” *बुल्लेशाह इक सौदा कित्ता न कुछ लाहा टोटा लित्ता* भाभीया बोली लेकिन आप? बुल्लेशाह तुरंत टोकते हुए बोले “बस काफी हो गया अब आप जाइए यहां से हमे अब इनायत के बागे बहारो मे ही रहना है । उन्हीके पाक पनाहो मे हमारा अमन चैन और रूहे करार है।”—————————————————आगे की कहानी कल के पोस्ट में दिया जायेगा …

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