भगवान बड़े कि भगवान का नाम बड़ा ? –पूज्य बापू जी

भगवान बड़े कि भगवान का नाम बड़ा ? –पूज्य बापू जी


जब हनुमान जी को मृत्युदंड देने उद्यत हुए श्रीराम जी !

(पिछले अंक में आपने पढ़ा कि देवर्षि नारद जी के बताये अनुसार हनुमान जी ने भरी सभा में विश्वामित्र जी को पीठ दिखायी और उनके सामने पूँछ झटक दी । इसे अपना अपमान जानकर विश्वामित्र जी ने श्रीरामजी को आज्ञा दी कि वे हनुमानजी को मृत्युदंड दें । इससे हनुमान जी राम जी के प्रति चिंतित हो गये । अब आगे….)

देवर्षि नारदजी कहते हैं- “हनुमान तुम चिंता क्यों करते हो ? मैंने तुमको काम सौंपा है तो यह मेरा काम है ।”

हनुमानजीः “तो मैं क्या करूँ ?”

“अभी निश्चिंत हो के सो जाओ । अभी तो रात है । जो होगा, सुबह होने के बाद होगा न !”

तुलसी भरोसे राम के, निश्चिंत होई सोय ।

अनहोनी होनी नहीं, होनी होय सो होय ।।

सुबह हुई । नारदजी बोलेः “देखो हनुमान ! जो अनंत ब्रह्माण्डों में रम रहा है उसी मूल तत्त्व से जुड़कर प्राण चलते हैं, हाथ उठता है, वही तो राम है ।

जीव राम घट-घट में बोले, ईश्वर राम दशरथ घर डोले ।

बिंदु (हिरण्यगर्भ, ब्रह्मा, मन) राम का सकल पसारा, ब्रह्म राम है सबसे न्यारा ।।

‘जैसे घटाकाश, मठाकाश, मेघाकाश और महाकाश – ये चार दिखते हैं लेकिन आकाश चारों में एक है । ऐसे ही वही सर्वव्यापक राम सत्यस्वरूप है, वही मेरा मूल है और श्रीराम जी का हाथ भी उसी मूल की सत्ता से उठता है ।’ – ऐसा चिंतन करके जब रामजी का तीर चले तो तुम बोल देनाः ‘जय श्री राम ! भाव उसी ब्रह्म राम पर रखना । फिर देखो क्या होता है !”

रामचन्द्र जी ने बराबर बाण का संधान किया । हनुमान जी बोलें- ‘जय श्री राम !….’ तो गदा को छूने के पहले ही बाण ‘सट्’ करके नीचे गिर जाय । इस प्रकार रामजी का सारे बाण खत्म हो गये, अब एक बाण बचा । राम जी ने यह संकल्प करके संधान किया कि ‘यह मेरा बाण सफल हो ।’

नारदजी समझ गये कि राम जी भी उसी राम-तत्त्व में विश्रांति पाकर बाण के साथ संकल्प जोड़ रहे हैं तो विश्वामित्र जी को कहाः “देखो, हनुमानजी के प्राण अभी शेष हैं । राम रजी इतनी तीव्रता से बाण मारते हैं और वह हनुमान जी की गदा को छूता तक नहीं । अगर राम जी और भी कुछ करके मार भी देंगे तो महाराज ! लोग बोलेंगे कि ‘विश्वामित्र ऋषि अपमान न सह सके, रामजी के सेवक को मरवा दिया ।’ आपके नाम पर कलंक आ जायेगा । अतः अब आप खड़े होकर कह सकते हैं कि ‘रामचन्द्र जी ! हम इस हनुमान को क्षमा करते हैं ।’ तो लोगों के मन में आपके प्रति सद्भाव होगा, हनुमानजी का भी सद्भाव बढ़ेगा और रामजी का सिर आपके चरणों म  अहोभाव से झुकेगा । धर्मसंकट से रामजी भी बच जायेंगे, हनुमान जी भी बच जायेंगे और आपका नाम कलंक से बच जायेगा । अब बाजी आपके हाथ में है ।”

विश्वामित्रजीः “नारद ! तुम बड़े बुद्धिमान हो । बहुत-बहुत ठीक कहा है तुमने ।”

विश्वामित्र जी खड़े हो गये, बोलेः “हे श्रीराम ! रुक जाओ । हम हनुमान को क्षमा करके प्राणदान देते हैं ।”

‘साधो….. साधो….. ! जय श्री राम ! जय विश्वामित्र ! जय हो, जय हो !!’ जयघोषों से सारा वातावरण गूँजने लगा ।

नारद जी खड़े हो गये, बोलेः “सुनो, सुनो ! साधु स्वभाववाले सज्जनो ! सत्य के चाहक लोगो ! ‘भगवान बड़े कि भगवान का नाम बड़ा ? इसका निर्णय आज सरयू-तट पर प्रत्यक्ष हो गया । भगवान ने संधान करके इतने-इतने बाण मारे लेकिन भगवान के नाम ने उन बाणों को निरस्त कर दिया । अब इस पर कौन क्या शास्त्रार्थ करेगा ?”

रामु न सकहिं नाम गुन गाई ।

भगवान राम भी भगवन्नाम के गुणों को नहीं गा सकते ।

तो भगवान का नाम और फिर जब वह ब्रह्मवेत्ता सदगुरु के द्वारा मिल जाया है और उसका अर्थ समझ से अगर कोई जपता है तो महाराज ! उसके जन्म-जन्मांतर के कुसंस्कार, पाप-ताप मिट जाते हैं । भगवन्नाम, गुरुमंत्र जपने से 84 नाड़ियों, 25 उपत्यकाओं, 5 शरीरों और 7 मुख्य केन्द्रों में सात्त्विक भगवद्-आन्दोलन पैदा होते हैं । भगवन्नाम अकाल मृत्यु को टालता है, बुद्धि में सत्य का संचार करता है और जब सद्गुरु ने भगवन्नाम दिया है तो वह नाम ‘गुरुमंत्र’ अर्थात् बड़ा मंत्र हो जाता है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल-मई 2020, पृष्ठ संख्या 11,12 अंक 328-329

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